जब पीएम नरसिम्हा राव ने कहा, रॉ नहीं रुकेगा, चाहे अमेरिका को पसंद आए या नहीं

9 hours ago

जब दुनिया की सबसे ताकतवर महाशक्ति अमेरिका ने भारत को धमकी देने की कोशिश की, तो प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव ने बिना एक पल गंवाए ऐसा जवाब दिया कि वॉशिंगटन भी सन्न रह गया.  यह कोई फिल्मी स्क्रिप्ट नहीं, बल्कि भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ से जुड़ी एक सच्ची घटना है — जब देश की चुपचाप काम करने वाली एजेंसी और उसके रणनीतिक दायरे पर सवाल उठे, तो पीएम ने पूरी मजबूती से उसका साथ दिया. इस लेख में जानिए वो ऐतिहासिक पल जब भारत ने अमेरिका को साफ शब्दों में कहा — ‘हम अपनी सुरक्षा नीति तुम्हारी अनुमति से नहीं चलाते’

भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) के वरिष्ठ अधिकारी बी. रमन ने अपनी आत्मकथा “The Kaoboys of R&AW – Down Memory Lane” में एक ऐसा खुलासा किया है, जो भारत-अमेरिका संबंधों के छुपे हुए तनावों की परतें खोलता है.

रमन बताते हैं कि सेवानिवृत्ति से कुछ दिन पहले, उन्हें तत्कालीन रॉ प्रमुख के साथ प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव द्वारा बुलाया गया. वहां उन्हें एक बेहद संवेदनशील संदेश दिखाया गया, जो वाशिंगटन डीसी स्थित भारतीय दूतावास से आया था.

इस संदेश में बताया गया था कि अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट के एक मध्यस्तरीय अधिकारी ने भारतीय राजदूत को बुलाकर स्पष्ट चेतावनी दी कि अमेरिका को यह जानकारी मिली है कि भारत की रॉ एजेंसी पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रही है और उसे अस्थिर करने का प्रयास कर रही है. उन्होंने चेतावनी दी कि यदि भारत ने ये ‘कोवर्ट ऑपरेशन्स’ नहीं रोके, तो अमेरिका भारत और पाकिस्तान, दोनों को आतंकवाद प्रायोजक राष्ट्र घोषित करने पर विचार करेगा.

रमन ने इस संदेश को पढ़ते हुए अपनी तीव्र नाराजगी व्यक्त की: रमन लिखते हैं, “जब मैंने वह संदेश पढ़ा, तो मन किया कि स्टेट डिपार्टमेंट के अधिकारियों के ऊपर थूक दूं. उल्टी करने जैसा मन हुआ”
(यह वाक्य उनके मन में उपजे रोष और अमेरिकी दोहरे रवैये को दर्शाता है)

प्रधानमंत्री राव ने जब पूछा कि रॉ पाकिस्तान में किस तरह की गतिविधियां चला रही है, और फिर आता है वह अहम मोड़, जिसकी शुरुआत राजीव गांधी ने की थी, रमन लिखते हैं: 

1988 से, जब पंजाब में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद बढ़ने लगा और प्रमाण मिले कि 1985 के कनिष्क विमान विस्फोट का आरोपी तलविंदर सिंह परमार पाकिस्तान की ISI के संरक्षण में है, तब से रॉ ने पाकिस्तान के सिर्फ शासकीय तबकों तक ही नहीं, बल्कि समाज के उन वर्गों से भी संपर्क करना शुरू किया जो भारत के प्रति सहानुभूति रखते हैं

राजीव गांधी ने हमें कहा था कि अब केवल पाकिस्तान की सत्ता के साथ संपर्क तक सीमित न रहें, बल्कि समाज के उन वर्गों से भी संवाद करें जो भारत के प्रति शुभचिंतक हैं”

रमन बताते हैं कि यह नीति परिवर्तन रक्षात्मक नहीं, रणनीतिक था—भारत को अब सीधे संपर्कों के माध्यम से पाकिस्तान के भीतर अपने हित सुरक्षित रखने थे.

“नरसिंह राव ने पूरा मामला सुनने के बाद दो टूक कहा”
राजदूत को एक ड्राफ्ट जवाब तैयार कीजिए, जिसमें अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट के आरोपों का कड़ा खंडन किया जाए. अपनी बातचीत बंद मत कीजिए. हमें पाकिस्तानी समाज के सभी वर्गों से संपर्क बनाए रखने का पूरा अधिकार है. अगर अमेरिका को यह पसंद नहीं आता, तो हमें उसकी परवाह करने की कोई ज़रूरत नहीं है”

रमन ने वह जवाबी पत्र तैयार किया, जो उनका आख़िरी आधिकारिक दस्तावेज़ था. मैंने वह ड्राफ्ट अपने प्रमुख को दिया, जिन्होंने उसे नरसिम्हा राव को भेज दिया. मुझे नहीं पता कि नरसिम्हा राव ने वह जवाब राजदूत को भेजा या नहीं, और अगर भेजा भी हो तो किस रूप और भाषा में भेजा.

सेवानिवृत्ति के बाद, तत्कालीन आंतरिक सुरक्षा राज्यमंत्री राजेश पायलट ने भी रमन की सेवाएं उत्तर-पूर्व भारत में बतौर इंटेलिजेंस कोऑर्डिनेटर लेने का प्रस्ताव दिया, लेकिन उन्होंने विनम्रतापूर्वक इनकार कर दिया और मद्रास लौटने की इच्छा जताई.

यह किस्सा केवल एक कूटनीतिक घटना नहीं है—यह उस दौर की झलक है जब भारत ने अपनी सुरक्षा नीतियों और खुफिया रणनीतियों को अकेले मजबूती से आगे बढ़ाया, जबकि अमेरिका जैसे देशों से अपेक्षित समर्थन नहीं मिला.

आज जब भारत वैश्विक मंच पर आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में एक प्रमुख खिलाड़ी बन चुका है, तब बी. रमन की यह गवाही हमें याद दिलाती है कि यह राह हमेशा इतनी आसान नहीं थी—कई बार यह अकेले, निडर होकर चलने की राह रही.

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