दक्षिण की काशी! भारत का वो मंदिर जहां जीवों की नहीं, पौधों की दी जाती है बलि!

3 days ago

Last Updated:March 28, 2025, 12:59 IST

Vemulawada Temple: तेलंगाना के वेमुलावाड़ा श्री पार्वती राजराजेश्वर स्वामी मंदिर में भक्त पौधों के रूप में धर्म के प्रतीक बैल की बलि देते हैं. श्रद्धालु इसे मनोकामना पूर्ण करने का माध्यम मानते हैं.

दक्षिण की काशी! भारत का वो मंदिर जहां जीवों की नहीं, पौधों की दी जाती है बलि!

वेमुलावाड़ा मंदिर

तेलंगाना के प्रसिद्ध वेमुलावाड़ा श्री पार्वती राजराजेश्वर स्वामी मंदिर को ‘दक्षिण की काशी’ और ‘हरिहर क्षेत्र’ के रूप में जाना जाता है. यह मंदिर अपनी अनूठी परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है, जिनमें धर्म के प्रतीक स्वरूप बैल की बलि चढ़ाने की प्रथा प्रमुख है. श्रद्धालु मानते हैं कि इस अनुष्ठान से उनकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं.

पवित्र स्नान के बाद गाय का गोबर अर्पण
मंदिर में आने वाले भक्त पहले गुंडम में स्नान करते हैं और फिर अपने परिवार के साथ भगवान को गाय का गोबर अर्पित करते हैं. इसे शुद्धिकरण और पुण्य प्राप्ति का माध्यम माना जाता है. यह धार्मिक अनुष्ठान भक्तों की आस्था को और मजबूत करता है.

मंगलवार को देवी को चढ़ाया जाता है प्रसाद
सोमवार को भगवान श्री राजराजेश्वर स्वामी के दर्शन करने के बाद भक्त मंगलवार को संबद्ध मंदिर बद्दीपोचम्मा थल्ली में बोनाला प्रसाद, हल्दी और केसर अर्पित करते हैं. उनका विश्वास है कि इससे जीवन में सुख-समृद्धि आती है. परंपरा के अनुसार, भगवान के दर्शन के बाद देवी के दर्शन करना अनिवार्य माना जाता है. भक्तजन देवी से प्रार्थना करते हैं, “माँ, सब पर दया दृष्टि रखो.”

विशेष बलि प्रथा का अनूठा स्वरूप
मंदिर की एक विशिष्टता यह भी है कि यहाँ परंपरागत पशु बलि नहीं दी जाती, बल्कि धर्म के प्रतीक स्वरूप बैल की बलि पौधों के माध्यम से दी जाती है. भक्त मानते हैं कि गीले वस्त्र पहनकर धर्मगुंडम में स्नान करने के बाद, कमल के रूप में धर्म के अवतार बैल की बलि देने से उनकी इच्छाएँ पूरी होती हैं. इस अनूठी परंपरा को देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं.

भीड़ से गुलजार रहता है मंदिर परिसर
वेमुलावाड़ा मंदिर के साथ-साथ भीमेश्वर मंदिर और बद्दीपोचम्मा मंदिर जैसे संबद्ध धार्मिक स्थल भी भक्तों से भरे रहते हैं. देवी को बोनाला प्रसाद चढ़ाने के लिए श्रद्धालु कतारों में खड़े रहते हैं, जिससे बद्दीपोचम्मा मंदिर के आसपास के इलाकों में चहल-पहल बढ़ जाती है. यह भक्ति भाव और धार्मिक परंपरा का जीवंत उदाहरण है.

मंदिर की आर्थिक और धार्मिक महत्तावे
मुलावाड़ा श्री पार्वती राजराजेश्वर स्वामीवर का नाम अपनी अनूठी धार्मिक परंपराओं के कारण खास महत्व रखता है. यह भेंट इस तथ्य को दर्शाती है कि राजन्ना मंदिर की आय का बड़ा हिस्सा गाय के प्रसाद से आता है. पुजारियों और वैदिक विद्वानों के अनुसार, गाय जो धर्म के देवता का प्रतीक मानी जाती है, उसके लिए प्रतिदिन सुबह विशेष पूजा-अर्चना की जाती है.

First Published :

March 28, 2025, 12:59 IST

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