अगर आपसे पूछा जाए कि भारत का सबसे खतरनाक सांप क्या है तो तुरंत जवाब होगा – कोबरा. ज्यादातर लोग यही जवाब देते हैं. इंडियन कोबरा, किंग कोबरा. कुछ गांव में रहने वाले लोग करैत सांप का नाम लेंगे लेकिन असल में भारत का सबसे खतरनाक सांप रसेल वाइपर (Russell’s Viper) माना जाता है. ये ना केवल बहुत आक्रामक है बल्कि तेजी से हमला करता है. इसका विष इतना जहरीला है कि खून जमाने लगता है.
रसेल वाइपर सांप का वैज्ञानिक नाम Daboia russelii है. इसका विष हेमोटॉक्सिक होता है, इसी वजह से ये खून को जमा देता है. भारत में सांपों के काटने से होने वाली मौतों में इसका सबसे बड़ा योगदान है. ये तकरीबन हर जगह मिल जाता है. ये मानव बस्तियों के करीब ही ज्यादा मिलता है.
इसके काटने के बाद मरीज को तेज दर्द, सूजन और रक्तस्राव के लक्षण दिखाई देते हैं. अगर समय पर इलाज नहीं मिले तो मौत पक्की है. भारत में हर साल सांपों के काटने से लगभग 50,000 लोगों की मृत्यु होती है, इसमें सबसे बड़ा हिस्सा रसेल वाइपर का होता है. कोबरा या क्रेट जैसे सांप तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करते हैं, लेकिन उनके प्रभाव को एंटी-वेनम से आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है. बशर्ते इलाज समय पर हो. रसेल वाइपर के विष का असर इतना जटिल होता है कि कई बार एंटी-वेनम भी पूरी तरह प्रभावी नहीं हो पाता, खासकर अगर देरी हो जाए.
फुंफकार बहुत तेज और डरावनी
रसेल वाइपर का स्वभाव बेहद आक्रामक होता है. यह सांप शांत रहने के बजाय खतरा महसूस होने पर तेजी से हमला करता है. इसकी फुंफकार बहुत तेज और डरावनी होती है, ये इसे और भी खतरनाक बनाती है. यह सांप अपने शरीर को “S” आकार में मोड़कर तेजी से आगे बढ़ता है. अपने लंबे नुकीले दांतों से गहरा काट लेता है, जिससे बड़ी मात्रा में विष शरीर में प्रवेश कर जाता है.
इसकी हमलावर प्रकृति इसे उन सांपों से अलग करती है जो आमतौर पर भागने की कोशिश करते हैं, जैसे किंग कोबरा. रसेल वाइपर का ये व्यवहार इसे मानव संपर्क में आने पर और भी घातक बनाता है.
सेल वाइपर अक्सर खेतों, जंगलों, और ग्रामीण इलाकों में पाया जाता है. यह सांप चूहों और छोटे कीड़ों को खाता है. (wiki commons)
खेतों और जंगलों में सबसे ज्यादा
भारत एक कृषि प्रधान देश है. रसेल वाइपर अक्सर खेतों, जंगलों, और ग्रामीण इलाकों में पाया जाता है. यह सांप चूहों और छोटे कीड़ों को खाता है. ये किसानों और ग्रामीणों के लिए बड़ा खतरा बन जाता है. खेतों में काम करते समय या रात में घर के आसपास लोग अनजाने में इसके संपर्क में आ जाते हैं. भारत की घनी आबादी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी इस खतरे को और बढ़ा देती है.
दूसरे सांपों से ज्यादा जहर
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में सर्पदंश के इलाज को लेकर ज्यादा गंभीरता नहीं दिखती. रसेल वाइपर के काटने से गुर्दे की विफलता, रक्तस्राव, और सेप्सिस जैसी मुश्किलें पैदा हो जाती हैं, जो इलाज को मुश्किल बनाती हैं.इसमें विष की मात्रा भी अन्य सांपों की तुलना में अधिक होती है. ये बार-बार काट सकता है.
इसका रंग भूरा या पीला-भूरा होता है, जिस पर गहरे धब्बे होते हैं. (wiki commons)
इसकी पहचान आसान नहीं
रसेल वाइपर की पहचान करना आसान नहीं है. इसका रंग भूरा या पीला-भूरा होता है, जिस पर गहरे धब्बे होते हैं.ये आसानी से मिट्टी या झाड़ियों में छिप जाता है. रसेल वाइपर की साधारण दिखने वाली बनावट इसे और खतरनाक बनाती है, क्योंकि लोग इसे हल्के में ले सकते हैं.
मानसून में सक्रियता बढ़ जाती है
रसेल वाइपर की गतिविधि मानसून के दौरान बढ़ जाती है, जब खेतों में पानी भर जाता है. चूहे बाहर निकलते हैं. यह समय भारत में कृषि कामों का भी चरम होता है, जिससे मानव-सांप संपर्क की संभावना बढ़ जाती है. ये काफी बच्चे देता है. जिससे यह अन्य सांपों की तुलना में अधिक ज्यादा होता है.
काटने के कितनी देर बाद खून जमना शुरू हो जाता है
रसेल वाइपर के काटने के बाद खून के थक्के बनने की प्रक्रिया, जिसे कोएगुलोपैथी कहते हैं, इसके विष के हेमोटॉक्सिक प्रभाव के कारण ये शुरू होती है. ये प्रक्रिया आमतौर पर काटने के कुछ मिनटों से लेकर 30 मिनट के भीतर शुरू हो सकती है.
रसेल वाइपर का विष रक्त में प्रोटीन और कोशिकाओं को प्रभावित करता है, जिससे डिसेमिनेटेड इंट्रावास्कुलर कोएगुलेशन (DIC) जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है. इसमें पहले खून असामान्य रूप से थक्के बनाना शुरू करता है. इसके बाद रक्त के थक्के जमाने वाले कारक (क्लॉटिंग फैक्टर्स) तेजी से खत्म हो जाते हैं, फिर ब्लीडिंग शुरू हो जाती है.
विशेषज्ञों के अनुसार, रसेल वाइपर के काटने के बाद खून के थक्के बनने की शुरुआत 15-30 मिनट में देखी जा सकती है तुरंत चिकित्सा सहायता मिलने पर यानि पॉलीवैलेंट एंटी-वेनम का इंजेक्शन इस प्रक्रिया को रोक सकता है. इसके काटने के तुरंत बाद नजदीकी अस्पताल पहुंचना जरूरी है.
कैसे होता है प्रभाव
शुरुआती प्रभाव (5-30 मिनट) – काटने के बाद कुछ मिनटों में स्थानीय सूजन, दर्द, और रक्तस्राव शुरू हो सकता है. इस दौरान विष रक्त में फैलना शुरू करता है और थक्के बनने की प्रक्रिया प्रभावित होती है.
गंभीर प्रभाव (1-6 घंटे) – अगर इलाज न हो, तो 1 से 6 घंटों के भीतर खून के थक्के बनने और फिर ब्लीडिंग की खतरनाक स्थिति बन जाती है. मसूड़ों से खून, नाक से रक्तस्राव, या मूत्र में खून जैसे लक्षण दिख सकते हैं.
जटिलताएं (12-24 घंटे) – बिना इलाज के, यह स्थिति गुर्दे की विफलता या मल्टी-ऑर्गन फेल्योर तक बढ़ सकती है.