पंजाब के वो महाराजा, जिनको हिटलर ने गिफ्ट में दी12 इंजनों वाली बड़ी कार

3 weeks ago

हाइलाइट्स

महाराजा पटियाला अंग्रेजों के काफी प्रिय थेवह अक्सर यूरोप घूमने जाया करते थेहिटलर ने उन्हें ऐसी कार गिफ्ट में दी, जो केवल 06 ही बनी थी

यूं तो भारत के सभी राजा-महाराजा कारों के खासे दीवाने थे. खासकर महंगी कारों के. उस जमाने में भारत में जो भी कारें आती थीं, वो विदेश से ही आती थीं.  उन दिनों भारतीय राजा महाराजाओं की सबसे पसंदीदा कार रोल्स रॉयस थी. पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह के पास यूं तो रॉल्स रॉयस कारों का पूरा बेड़ा था लेकिन उनके पास एक ऐसी कार थी, जो और किसी राजा के पास नहीं थी. ये उस जमाने की मशहूर मेबैक कार थी, जो उनको खुद जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने उपहार में दी थी.

वैसे बहुत से लोग हैरान भी होंगे कि आखिरकार पटियाला के इस महाराजा का हिटलर से क्या संबंध था. और क्यों जर्मन तानाशाह ने महाराजा भूपिंदर सिंह को यह शानदार कार उपहार में दी थी?

पटियाला रियासत की स्थापना मुगल सत्ता के पतन के बाद बाबा आला सिंह द्वारा 1763 में की गई थी. 1857 के विद्रोह के दौरान अंग्रेजों को दिए गए समर्थन के कारण इस रियासत के राजा अंग्रेजों के प्रिय बन गए.

सबसे धनी राज्यों में एक 
पंजाब के उपजाऊ मैदानों से होने वाली विशाल आय ने इसे भारत के सबसे धनी और सबसे शक्तिशाली राज्यों में एक बना दिया. पटियाला के शासकों ने अफगानिस्तान, चीन और मध्य पूर्व में कई लड़ाइयों में ब्रिटिश सेना को समर्थन देकर उनकी करीबी हासिल कर ली.

ये है वो मेबैक कार जो महाराजा पटियाला भूपिंदर सिंह को हिटलर ने गिफ्ट में दी थी. (फाइल फोटो)

कार से लेकर गहनों तक की दीवानगी
पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह (1891-1938) का व्यक्तित्व बड़ा था. प्रतिष्ठा भी बहुत. शराब, औरतें, गहने, स्पोर्ट्स कार – हर चीज के लिए उनकी दीवानगी गजब की थी. उनके पास 27 से ज़्यादा रोल्स रॉयस और अनगिनत गहने थे. इसमें पेरिस के कार्टियर द्वारा बनाया गया मशहूर ‘पटियाला नेकलेस’ शामिल था. भूपिंदर सिंह राजनीतिक रूप से भी बहुत प्रभावशाली थे. चैंबर ऑफ प्रिंसेस के महत्वपूर्ण सदस्य थे.

बीसीसीआई की स्थापना करने वाले राजाओं में रहे
वह भारत में क्रिकेट के लिए नियामक संस्था, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के संस्थापक भी थे, और वास्तव में उन्होंने अपने क्रिकेटर मित्र, नवानगर के महाराजा रणजीतसिंहजी के सम्मान में रणजी ट्रॉफी की स्थापना की थी.

हिटलर पहले तो महाराजा भूपिंदर सिंह से मिलना ही नहीं चाहता था. समय ही नहीं देना चाहता था. 15 मिनट का समय दिया गया तो वह राजा का ऐसा मुरीदा हुआ कि तीन दिनों तक उनसे मिलता रहा. (फाइल फोटो)

सियासी तौर पर भी प्रभावशाली
भूपिंदर सिंह राजनीतिक रूप से भी बहुत प्रभावशाली थे। चैंबर ऑफ प्रिंसेस के एक महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में उन्होंने भारत के साथ-साथ यूरोप में भी बहुत प्रभाव डाला. वह इंग्लैंड, स्पेन, स्वीडन, नॉर्वे और कई अन्य देशों के राजाओं के निजी मित्र थे.

हिटलर ने क्यों गिफ्ट की कार 
एडॉल्फ हिटलर ने उन्हें 1935 में मेबैक कार भेंट की थी. तब महाराजा जर्मनी की यात्रा पर थे. हिटलर ने केवल दो ही शासकों को कारें उपहार में दी थीं, वो थे मिस्र के राजा फारुक और नेपाल के जोधा शमशेर राणा. माना जाता है कि हिटलर को लगता था कि अगर जर्मनी और ब्रिटिश साम्राज्य के बीच युद्ध हुआ तो पटियाला महाराजा तटस्थ रहेंगे.

ये हैं पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह, जिनको हिटलर ने 12 इंजन वाली बेशकीमती मेबैक कार गिफ्ट में दी. (फाइल फोटो)

पहले हिटलर राजा से मिलना ही नहीं चाहता था फिर …
इस उपहार की कहानी उनके पोते, पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के छोटे भाई राजा मालविंदर सिंह ने शारदा द्विवेदी की पुस्तक द ऑटोमोबाइल्स ऑफ द महाराजा में बताई. उन्होंने बताया, “मेरे दादा महाराजा भूपिंदर सिंह 1935 में जर्मनी गए. एडॉल्फ हिटलर से मिलने के लिए कहा. तब उन्हें बहुत अनिच्छा से उन्हें 10 से 15 मिनट दिए. जब वो मिले और बातचीत में लगे तो 15 मिनट 30 और फिर 60 मिनट हो गए. फिर फ्यूहरर ने दादा से दोपहर के भोजन के लिए रुकने को कहा. फिर अगले दिन और फिर तीसरे दिन वापस आने को कहा. तीसरे दिन, उन्होंने उन्हें लिग्नोज़, वाल्थर और लूगर पिस्तौल जैसे जर्मन हथियार और एक शानदार मेबैक कार उपहार में दी.

मेबैक ने ऐसी केवल 6 कारें ही बनाईं थीं
इस प्रकार की केवल छह मेबैक कारें ही बनाई गई थीं. ये बहुत पॉवरफुल कार थी, जिसमें 12 ज़ेपेलिन इंजन लगे हुए थे, जिससे बोनट का आकार बहुत बड़ा हो गया था. ये मैरून रंग की कार थी. इसमें ड्राइवर और आगे एक और व्यक्ति बैठ सकते थे. पीछे तीन व्यक्ति बैठ सकते थे.

इसको राजा ने कहां रखा भारत लाकर 
इस असाधारण कार को भारत भेजा गया. पटियाला के मोती बाग पैलेस के गैरेज में महाराजा की 27 रोल्स रॉयस सहित कई अन्य गाड़ियों के बीच इसको रखा गया. जब द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ा, तो मेबैक कार को महाराजा ने महल के अंदर ही छिपा दिया. इसका कभी इस्तेमाल नहीं किया गया.

क्या था इस कार का नंबर 
महाराजा भूपिंदर सिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटे महाराजा यादविंद्र सिंह ने उनका स्थान लिया. 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ. उसमें रियासतों का विलय हुआ तो पटियाला को अन्य राज्यों के साथ मिलाकर PEPSU (पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ) बनाया गया. यह वह समय था जब पंजाब में पहली बार कार का पंजीकरण हुआ था, जिसका नंबर प्लेट ‘7’ था.

महाराजा ने इस कार का क्या किया 
अन्य राजसी परिवारों की तरह पटियाला राजघराने ने भी नए समय के हिसाब से ढलने के लिए अपनी बहुत सी संपत्ति बेच दी. कई चीजें तोहफे में दे दी गईं, जिनमें हिटलर का तोहफा – मेबैक भी शामिल रही. राता भूपिंदर सिंह ने इसको अपने एडीसी को दे दिया. हालांकि बाद में एडीसी ने भी इसे बेच दिया. अब ये अमेरिका में एक निजी संग्रहकर्ता के पास है. अब इसकी कीमत 5 मिलियन डॉलर (05 करोड़ डॉलर) के करीब है. भूपिंदर सिंह पहले भारतीय थे जिनके पास अपना निजी विमान था, उन्होंने पटियाला में हवाई पट्टी बनवाई थी.

Tags: Patiala news, Rolls Royce, Royal Traditions

FIRST PUBLISHED :

August 27, 2024, 14:02 IST

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