पटना. बिहार की राजनीति में यादव समुदाय का प्रभाव बड़ा गहरा है. राज्य की कुल आबादी में यादवों की हिस्सेदारी करीब 14% है जो उन्हें एक बड़े वोट बैंक के रूप में स्थापित करता है. 1990 के दशक से मंडल कमीशन के बाद इस समुदाय ने सियासत में अपनी पहचान मजबूत की. लालू प्रसाद यादव ने यादवों को एकजुट कर राजद को सत्ता की कुंजी बनाया और आज तेजस्वी यादव इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. वर्ष 2025 के विधानसभा चुनाव में यह प्रभाव और भी अहम हो सकता है, क्योंकि यादव वोटरों की गोलबंदी किसी भी गठबंधन के लिए जीत का आधार बन सकती है.
बिहार जातीय जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, बिहार में यादवों की आबादी 14.26% है जो ओबीसी वर्ग का एक बड़ा हिस्सा है. कुल 26% ओबीसी आबादी में यादवों का योगदान सबसे अधिक है. इसके अतिरिक्त अति-पिछड़ी जातियों (36%) और सवर्णों (16%) के बीच यह समुदाय एक बैलेंसिंग फैक्टर के रूप में काम करता है. चुनावी सर्वेक्षणों में यादव वोटरों का झुकाव राजद की ओर 70-80% तक देखा गया है जो इस समुदाय की सियासी ताकत को बताता है.
किन जिलों में सबसे ज्यादा
यादवों का दबदबा मुख्य रूप से मध्य और उत्तरी बिहार के जिलों में देखा जाता है. पटना, समस्तीपुर, दरभंगा, मधेपुरा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर और सहरसा जैसे जिले यादव आबादी के गढ़ माने जाते हैं. इन जिलों में उनकी संख्या ग्रामीण क्षेत्रों में खेती और पशुपालन से जुड़े व्यवसायों के कारण अधिक है. शहरी इलाकों में भी उनकी मौजूदगी बढ़ रही है जो उनके वोट बैंक को और विस्तार दे रही है.
बिहार में कुल कितने यादव?
2023 की जाति आधारित गणना में बिहार में यादव जाति की आबादी राज्य-स्तरीय 14.26% यानी लगभग 1.86 करोड़ की है. जिला-वार विस्तृत डेटा सार्वजनिक रूप से प्रकाशित नहीं हुआ है. हालांकि, कुछ अनुमान के आधार पर, यादवों की आबादी मध्य और उत्तरी बिहार के जिलों में अधिक केंद्रित मानी जाती है. नीचे दिए गए अनुमान 2011 की जनगणना और 2023 के जाति सर्वेक्षण के आधार पर मोटे तौर पर तैयार किए गए हैं, लेकिन ये सटीक नहीं हैं.
पटना: यादव जाति की आबादी अनुमानित 10-12% (लगभग 7-9 लाख, कुल 70-75 लाख आबादी में) अनुमानित है.
समस्तीपुर: यादवों का मजबूत आधार होने के कारण यहां 15-18% (लगभग 7.5-9.5 लाख, कुल 50-52 लाख में) अनुमानित है.
मधेपुरा: यादवों का गढ़ मधेपुरा को माना जाता है. जिले की कुल आबादी (2025 में अनुमानित 20-22 लाख, 2011 की 20.17 लाख से वृद्धि के आधार पर) माना जाता है. यहां यादवों की हिस्सेदारी 15-20% के बीच है और आबादी लगभग 3-4.5 लाख के आसपास.
दरभंगा: इस जिले में यादव आबादी 12-15% (लगभग 5.5-7.5 लाख, कुल 47-49 लाख में) हो सकती है.
सुपौल: यादवों का प्रभावशाली क्षेत्र माना जाता है और कुल जनसंख्या का 10-15% के बीच यानी अनुमानित यादव आबादी 2.6-4.2 लाख के बीच हो सकती है.
मधुबनी: यहां 10-13% (लगभग 5-6.5 लाख, कुल 45-48 लाख में) यादवों की मौजूदगी मानी जाती है.
मुजफ्फरपुर: 12-15% (लगभग 6.5-9 लाख, कुल 57-60 लाख में) यादव जाति की जनसंख्या मानी जाती है.
सहरसा: 10-12% (लगभग 4-5 लाख, कुल 40-42 लाख में) की अनुमानित आबादी.
पूर्वी चंपारण: 10-12% (लगभग 6-7.5 लाख, कुल 60-62 लाख में) के आसपास है.
किस पार्टी को आमतौर पर यादव वोट देते हैं
यादव वोटरों का परंपरागत झुकाव RJD की ओर रहा है जहां 70-80% वोट लालू और तेजस्वी के नाम पर पड़ते हैं. हालांकि, कुछ हिस्सों में BJP और JDU ने सामाजिक इंजीनियरिंग से इनका समर्थन हासिल किया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में NDA ने यादव वोट में सेंधमारी की थी, लेकिन 2020 में यह फिर राजद की झोली में लौट आया. 2025 में यह ट्रेंड बरकरार रहने की संभावना है खासकर तेजस्वी के युवा नेतृत्व से प्रेरित होकर. कुल मिलाकर यादव समुदाय बिहार की सियासत में एक मजबूत धुरी है और 2025 का चुनाव उनके वोट बैंक की दिशा पर टिका है.
किन सीटों पर दबदबा
यादवों का प्रभाव 243 विधानसभा सीटों में से करीब 50-60 सीटों पर स्पष्ट रूप से है. खासकर जहां उनकी आबादी 20% से ज्यादा है वहां तो जीत हार का सारा समीकरण इन्हीं पर निर्भर रहता है. वैशाली का रघोपुर, समस्तीपुर का हसनपुर, पटना का बाढ़ और मोकामा के साथ मधेपुरा और सुपौल जैसी सीटें यादव प्रभाव की मिसाल हैं. 2020 के चुनाव में राजद ने इन सीटों पर मजबूत प्रदर्शन किया, जहां से कई यादव नेता जीते. 2025 में ये सीटें फिर से गर्मागर्मी का केंद्र बन सकती हैं, क्योंकि सभी पार्टियां इस वोट बैंक को साधने की कोशिश में हैं.
इस चुनाव में यादव के दिग्गज नेता
वर्तमान में तेजस्वी यादव राजद के चेहरे के रूप में यादवों के सबसे बड़े नेता हैं. उनकी युवा छवि और पिछड़े-दलित गठजोड़ की रणनीति उन्हें मजबूत बनाती है. इसके अलावा, लालू प्रसाद यादव, भले ही जेल में हों अभी भी समुदाय के लिए प्रेरणा स्रोत हैं.
लालू प्रसाद यादव बिहार के उन पुराने नेताओं में हैं जिन्होंने यादवों को सियासी ताकत बनाया. 1990 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने यादव-मुस्लिम (MY) समीकरण को मजबूत किया. इन नेताओं की विरासत आज भी यादव वोटरों के फैसले में दिखती है.
राम लखन सिंह शेरे बिहार कहे जाते थे
बिहार की राजनीति में यादव समुदाय के कई अन्य कद्दावर नेताओं ने गहरी छाप छोड़ी है. इनमें से कुछ प्रमुख नामों में राम लखन सिंह यादव रहे हैं जो बिहार कांग्रेस के एक प्रभावशाली नेता थे. इन्होंने 1960 और 70 के दशक में अपनी सक्रियता से यादव वोट बैंक को मजबूत किया. वे एक संपन्न परिवार से ताल्लुक रखते थे और अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते थे, अक्सर सभाओं में अपनी ही जाति को आलोचना करते हुए भी कांग्रेस को वोट दिलवाया.
दरोगा प्रसाद यादव जाति के पहले सीएम
बिहार के 10वें मुख्यमंत्री (1970) रहे दरोगा प्रसाद राय ने कांग्रेस के साथ अपनी सियासी पारी शुरू की. उनके बेटे चंद्रिका राय ने बाद में लालू प्रसाद यादव के साथ मिलकर राजद को मजबूती दी और उनकी पोती ऐश्वर्या राय की शादी तेज प्रताप यादव से हुई जो यादव राजनीति का नया अध्याय खोला.
वीपी मंडल ने मंडल कमीशन रिपोर्ट दी
वीपी मंडल को मंडल कमीशन के लिए जाना जाता है, यादव जाति से संबंधित थे. वे बिहार के एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से थे और समाजवादी आंदोलन से जुड़े रहे. मंडल कमीशन की रिपोर्ट जिसे 1980 में गठित किया गया था और 1990 में लागू हुआ. उन्होंने ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) को आरक्षण देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसमें यादव समुदाय भी शामिल था.
सरकार बनाने में कितना बड़ा फैक्टर
यादव वोट बैंक सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभाता है. 2015 और 2020 के चुनावों में महागठबंधन की जीत में यादवों का योगदान 40-50% सीटों पर देखा गया। NDA को सत्ता में बनाए रखने के लिए भी इस वोट बैंक को तोड़ना जरूरी है जिसके लिए BJP और JDU मिलकर काम कर रहे हैं. 2025 में अगर यादव एकजुट रहे तो महागठबंधन को 100 से ज्यादा सीटें मिल सकती हैं वरना NDA का पलड़ा भारी रहेगा.