कोलकाता. कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक पीजी ट्रेनी डॉक्टर के साथ रेप और हत्या के मामले में रोज नए खुलासे हो रहे हैं. पीड़िता के पिता ने घटना के बाद से पुलिस और प्रशासन के काम से जुड़े 5 अहम सवाल उठाए हैं. आरजी कर अस्पताल और पुलिस ने इसका जवाब दिया है. पीड़िता के पिता ने कहा कि जब मेरी बेटी का शव अस्पताल में पड़ा था, तो डीसी नॉर्थ मुझे एक कमरे के कोने में ले गया और हमें पैसे देने की कोशिश की. अब कुछ लोग एक पुराना वीडियो दिखा रहे हैं, जिसमें मैं कह रहा हूं कि किसी ने मुझे पैसे नहीं दिए. पीड़िता के पिता ने कहा कि यह वीडियो घटना के कुछ दिनों बाद लिया गया था. जब कोलकाता पुलिस घटना की जांच कर रही थी. उन्होंने मुझ पर दबाव डाला कि मैं कहूं कि कोई पैसा नहीं दिया गया, क्योंकि इससे जांच पर असर पड़ सकता है. पुलिस ने इस मामले में कहा कि हमने केवल कुछ प्रोटोकॉल का पालन किया था. अगर उन्हें लगता है कि हमने कोई गलती की है, तो वे मौजूदा जांच एजेंसी को इसके बारे में बताने के लिए आजाद हैं.
पीड़िता के पिता ने दूसरा सवाल उठाते हुए कहा कि हमें बताया गया कि पुलिस को सुबह 10.10 बजे मौत के बारे में पता चला. जबकि मेरी बेटी बहुत पहले ही मृत पाई गई थी. उन्होंने कोई शारीरिक जांच क्यों नहीं किया? हमें सुबह 11 बजे बताया गया कि मेरी बेटी ने आत्महत्या कर ली है. जब हम अस्पताल पहुंचे तो हमें शव देखने की अनुमति मिलने से पहले साढ़े तीन घंटे तक इंतजार करना पड़ा. हम पर प्रिंसिपल के ऑफिस में जाने का बार-बार दबाव डाला गया, जिससे हमने इनकार कर दिया. हमसे एक खाली कागज पर हस्ताक्षर करने के लिए भी कहा गया. इस पर अस्पताल ने कहा कि इस समय का कोई भी मौजूदा प्रशासक तब मेडिकल कॉलेज का हिस्सा नहीं था. इसलिए, हम इस पर टिप्पणी नहीं कर सकते.
एफआईआर और पोस्टमॉर्टम में देरी
पीड़िता के पिता ने तीसरा सवाल उठाते हुए कहा कि रेप और मर्डर की एफआईआर और पोस्टमॉर्टम में देरी हुई. इसे शाम 5 बजे तक पूरा हो जाना चाहिए था. लेकिन यह शाम 6 बजे ही शुरू हुआ. मैंने शाम 6.30 से 7 बजे के बीच शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन एफआईआर रात 11.45 बजे दर्ज हुई. देरी क्यों हुई? इतने सारे डॉक्टर वहां मौजूद थे, फिर भी उन्होंने अप्राकृतिक मौत का मामला बना दिया. इस पर पुलिस ने कहा कि इमरजेंसी मेडिकल अफसर ने दोपहर 12.44 बजे लेडी डॉक्टर को आधिकारिक तौर पर मृत घोषित कर दिया और मृत्यु प्रमाण पत्र दोपहर 1.47 बजे जारी किया गया. दोपहर 12.45 बजे तक ‘अप्राकृतिक मौत’ (यूडी) का मामला दर्ज कर लिया गया था. परिवार ने शाम को शिकायत दर्ज कराई, लेकिन आधिकारिक तौर पर एफआईआर दर्ज करने में देरी हुई क्योंकि हमारे अधिकारी कानून-व्यवस्था की ड्यूटी में व्यस्त थे.
अंतिम संस्कार जल्दबाजी में किया गया
पीड़िता के पिता ने चौथा सवाल उठाते हुए कहा कि अंतिम संस्कार में जल्दबाजी किया गया. हम शव को कुछ और समय तक रखना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने हम पर बहुत दबाव डाला. हमारे पास शव का दाह संस्कार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. इस पर पुलिस ने कहा कि हम उनके आरोपों को चुनौती नहीं दे रहे हैं. हम उनकी मानसिक स्थिति को समझते हैं. हमने सिर्फ प्रोटोकॉल का पालन किया.
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स्थानीय पार्षद पर सवाल
पीड़िता की आंटी ने 5वां सवाल उठाते हुए कहा कि अस्पताल में परिवार से हम 15 लोग शव को घर वापस ले जाने के लिए इंतजार कर रहे थे. हमने माता-पिता को एक कार में जाते हुए देखा और हमने सोचा कि हम अपनी बेटी को लेकर एंबुलेंस के साथ उनके पीछे चले जाएंगे. लेकिन पुलिस ने हमें उनके साथ जाने की अनुमति नहीं दी और जल्दी में एंबुलेंस के साथ चले गए. हमें बताया गया कि स्थानीय पार्षद ने पुलिस के सामने खुद को स्थानीय अभिभावक के रूप में पेश किया था. उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि परिवार के सदस्य शव को ले जाने की स्थिति में नहीं थे. उन्होंने ऐसा क्यों किया? इस पर स्थानी पार्षद ने कहा कि मैं लड़की के पड़ोस में ही रहता हूं. घटना के बाद उसके पिता ने मुझे बुलाया था और इसलिए मैं उनके साथ अस्पताल गया था. मैंने केवल संकट की घड़ी में परिवार की मदद करने की कोशिश की थी. परिवार द्वारा मुझ पर लगाए गए आरोपों के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है.
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FIRST PUBLISHED :
September 6, 2024, 12:29 IST