Last Updated:June 29, 2025, 11:57 IST
India’s lion numbers soar: भारत में शेरों की जनसंख्या पिछले पांच महीनों में तीन गुनी हो गई है. मई 2025 में भारत में शेरों की आबादी बढ़कर 891 हो गई है. गुजरात में गिर से बाहर इनकी संख्या 497 तक पहुंच गई है. लेक...और पढ़ें

गुजरात में गिर अभयारण्य के अंदर एक शेर चहलकदमी कर रहा है. भारत में पिछले पांच सालों में शेरों की संख्या में एक तिहाई की वृद्धि हुई है.
हाइलाइट्स
भारत में शेरों की संख्या 891 तक पहुंचीगुजरात के 11 जिलों में शेरों की नई आबादीविशेषज्ञ शेरों के बढ़ते मानव-पशु संघर्ष से चिंतितIndia’s lion Numbers Soar: गुजरात के वन विभाग ने साल 2020 के बाद पहली बार पिछले महीने देश में शेरों की आबादी के अनुमान के परिणाम जारी किए. जनगणना के अनुसार भारत में शेरों की आबादी पिछले पांच सालों में 32 प्रतिशत बढ़कर 891 हो गई है. भारत में शेरों की आबादी विशेष रूप से गुजरात में केंद्रित है. भारत में शेरों के संरक्षण के प्रयास लंबे समय से गिर वन और गुजरात के आसपास के क्षेत्रों पर केंद्रित रहे हैं. खासकर 1965 में गिर राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य के निर्माण के बाद से आज शेर गिर क्षेत्र के बाहर फैल गए हैं और उन्होंने अलग-अलग अपने ठिकाने बना लिए हैं. अब गुजरात के 11 जिलों में शेर पाए जाते हैं.
लेकिन पहली बार जनगणना में गिर में मुख्य आबादी (394) की तुलना में नौ अलग जगहों पर अधिक शेरों की गिनती की गई. गिर के बाहर उनकी आबादी 497 तक पहुंच गई है. इनमें गिर के पड़ोसी तीन जिलों में उनकी नई आबादी शामिल हैं. जिनमें बरदा वन्यजीव अभयारण्य, जेतपुर शहर के आसपास के क्षेत्र और बाबरा और जसदान कस्बों के आसपास के क्षेत्र शामिल है. ये सभी क्षेत्र गुजरात में हैं.
बरदा बना शेरों का दूसरा घर
जनगणना रिपोर्ट ने गुजरात में बड़े शेरों के लिए बरदा वन्यजीव अभयारण्य को ‘दूसरे घर’ के रूप में चिह्नित किया है. यह एक तरह से राज्य और केंद्र सरकारों के रुख का समर्थन करता है. जिन्होंने अधिक शेरों के रहने के लिए बरदा को विकसित और प्रबंधित करने के पक्ष में तर्क दिया था. वास्तव में यह मार्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा घोषित प्रोजेक्ट लॉयन के प्राथमिक लक्ष्यों में से एक है. केंद्र सरकार ने इसके लिए 29 अरब रुपये का फंड दिया था.
विशेषज्ञ इससे चिंतित
किन विशेषज्ञों का कहना है कि शेरों की बढ़ती संख्या भारत में इस प्रजाति के भविष्य के सामने आने वाली चुनौतियों को छुपाती है. उनके अनुसार इस बात पर सवाल बने हुए हैं कि क्या देश मानव-पशु संघर्ष को कम करने और जानवरों के दीर्घकालिक संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त कदम उठा रहा है. 25 जून को गुजरात के अमरेली जिले में एक शेर ने एक पांच वर्षीय लड़के को खेत से घसीटकर मार डाला. हम जनगणना के प्रमुख निष्कर्षों और भारत में बिग कैट के लिए आगे आने वाली समस्याओं पर रोशनी डालेंगे.
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कैसे की गई शेरों की गिनती?
गुजरात वन विभाग के अनुसार शेरों की आबादी का अनुमान 11-13 मई तक दो 24 घंटे की रिकॉर्डिंग शेड्यूल के ज़रिए लगाया गया था. राज्य के शेर परिदृश्य को 735 नमूना क्षेत्रों में विभाजित किया गया था, जिनमें से प्रत्येक को एक गणनाकर्ता और दो सहायक गणनाकर्ताओं को सौंपा गया था. रिपोर्ट के अनुसार, शेरों का पता लगाया गया और डिजिटल कैमरों से उनकी तस्वीरें ली गईं. दोहराव से बचने के लिए आस-पास के नमूना क्षेत्रों के साथ क्रॉस-सत्यापन किया गया. एक रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि बाघ संरक्षण के विशेषज्ञ और पूर्व में भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) से जुड़े रहे यादवेंद्रदेव झाला ने आगाह किया कि ‘दोहरी गिनती’ की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. साथ ही दो दिवसीय अभ्यास में ‘समय की कमी के कारण’ कुछ शेरों की गिनती छूट गई होगी.
गणना के तरीके पर सवाल
अल जजीरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1985 से शेर संरक्षण से जुड़े अनुभवी वन्यजीव जीवविज्ञानी रवि चेल्लम ने उस प्रणाली के तर्क पर सवाल उठाया. जिसके तहत फील्ड स्टाफ को लगातार दो दिनों तक 24 घंटे सतर्क रहने की आवश्यकता होती है. उन्होंने कहा, “फील्ड स्टाफ की थकान और सतर्कता की कम होती स्थिति की कल्पना की जा सकती है. मुझे यह विश्वास करना मुश्किल लगता है कि इस तरह के दृष्टिकोण से विश्वसनीय और सटीक डेटा एकत्र किया जा सकता है.” दोनों विशेषज्ञों के अनुसार, अलग-अलग शेरों की पहचान करने के लिए अधिक मजबूत और विश्वसनीय वैज्ञानिक तरीके हैं, जैसे शेरों की तस्वीरों को मूंछों के पैटर्न के साथ जोड़ना – जो मानव उंगलियों के निशान के समान है. फिर भी झाला ने कहा कि वास्तविक संख्या संभवतः जनगणना संख्या से बहुत अलग नहीं होगी.
क्यों तेजी से बढ़ रही शेरों की संख्या
अल जजीरा के मुताबिक विशेषज्ञों का कहना है कि गुजरात सरकार की नीतियों और शेरों की अनुकूलनशीलता की वजह से शेरों की संख्या में वृद्धि हुई है. झाला के अनुसार, जब तक भोजन और आश्रय उपलब्ध है और जानवरों पर हमला नहीं किया जाता है तब तक शेर अपनी आबादी बढ़ाते रहेंगे. उन्होंने कहा, “मवेशियों के रूप में भोजन उपलब्ध है, मृत शवों को साफ किया जा सकता है, साथ ही शिकार के लिए जंगली मवेशी भी उपलब्ध हैं.” झाला ने कहा कि गुजरात सरकार का पशुधन हानि के लिए मुआवजा लगभग बाजार मूल्य के बराबर है और वर्तमान बाजार दरों को दर्शाने के लिए नियमित रूप से संशोधित किया जाता है.” इसने मानव-शेर सह-अस्तित्व को जारी रखने की अनुमति दी है. झाला ने कहा, “इस बीच नई जनगणना से पता चलता है कि गुजरात के तटीय जिले भावनगर और राज्य के तट से सटे इलाकों में – गिर के शुष्क पर्णपाती आवासों से दूर – अब 212 शेर हैं. तट के किनारे आक्रामक प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा प्रजाति (एक प्रकार का मेसकाइट) की कांटेदार झाड़ियां दिन भर शेरों के लिए शरण प्रदान करती हैं. वे रात में भोजन करने के लिए बाहर आ सकते हैं.”
कितने शेर रह सकते हैं गुजरात में?
2010 से गुजरात में शेरों की आबादी दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है. उनका क्षेत्रीय दायरा 75 प्रतिशत बढ़कर 20,000 से 35,000 वर्ग किलोमीटर (7,700 से 13,500 वर्ग मील) हो गया है. हालाकि, केवल 1800 वर्ग किलोमीटर ही संरक्षित क्षेत्रों के अंतर्गत आता है, जिसमें से केवल 250 वर्ग किलोमीटर ही शेरों के लिए है. जनगणना के अनुसार 45 प्रतिशत शेर गैर-वनीय क्षेत्रों जैसे बंजर भूमि, कृषि भूमि और मानव आवास के निकट पाए गए. चेल्लम ने कहा, “उन्हें खुले कुओं में गिरने, भारी वाहनों और ट्रेनों से कुचले जाने, बिजली का झटका लगने और संक्रमण होने का खतरा रहता है.” उन्होंने बताया कि शेरों को अक्सर असामान्य स्थानों जैसे घरों की छतों, होटलों के बेसमेंट पार्किंग स्थलों और व्यस्त राजमार्गों पर देखा गया है. चेल्लम ने तर्क दिया, “पूरे क्षेत्र में शेरों की संख्या अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा हो गई है.” उनका कहना है, “मानव बस्तियों में शेरों की आबादी बढ़ाना समझदारी नहीं है. सवाल यह भी है कि लोग अपने पड़ोस में एक बड़े मांसाहारी जानवर को कितना बर्दाश्त करने को तैयार हैं?”
लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा है?
नवंबर में प्रकाशित कंजर्वेशन बायोलॉजी जर्नल में मानव-शेर संघर्ष पर किए गए अध्ययन के अनुसार गुजरात में पशुओं द्वारा हमले की रिपोर्ट करने वाले गांवों की संख्या में प्रति वर्ष 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. जबकि प्रति वर्ष मारे गए पशुओं की संख्या में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इस शोधपत्र में 2012-2017 के दौरान एकत्र किए गए डेटा का उपयोग किया गया है. अध्ययन के सह-लेखक झाला ने मानव-शेर संघर्ष के बढ़ने की आशंका जताई है. उन्होंने कहा, “बड़े मांसाहारी जानवरों के साथ रहना आसान नहीं है. आपको यह सिखाया जाता है कि आप अपने बच्चों को रात में खेतों में घूमने नहीं दे सकते, आपको अपनी झोपड़ियों के पास की घास-फूस साफ करनी होगी, शाम के समय खेतों में शौच के लिए बाहर जाने से बचना होगा, आपको अपने पशुओं के लिए चारदीवारी की जरूरत होगी.” चेल्लम ने कहा, “जबकि शेरों की संख्या में वृद्धि को कई लोग और खास तौर पर सरकार सकारात्मक संकेत के तौर पर देख रही है. लेकिन वास्तविकता यह है कि अधिक से अधिक शेर खुद के साथ-साथ हजारों लोगों की जान को भी जोखिम में डाल रहे हैं. लोगों द्वारा शेरों को परेशान करने के कई मामले सामने आए हैं और शेरों द्वारा लोगों पर हमला करने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है.”
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New Delhi,Delhi