Last Updated:July 02, 2025, 11:08 IST
Bihar Chunav 2025 : बिहारर चुनाव 2025 के आगाज की आहट के बीच नेताओं के बयानों में तल्खी बढ़ गई है. बीते 10 दिनों में 'मौलाना', 'मुल्ला', 'नमाजवाद', 'समाजवाद', 'छपरी', 'टपोरी' और 'लफुआ' जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर...और पढ़ें

बिहार चुनाव से पहले गर्माहट क्यों आई?
हाइलाइट्स
बिहार में सियासी माहौल में गर्मी के मायने क्या हैं?तेजस्वी पर क्यों एनडीए हमलावर हो गई है?क्या बिहार चुनाव 2025 में कुछ बड़ा होने वाला है?बिहार चुनाव 2025: बिहार चुनाव 2025 में महफिल शुरू होने से पहले ही लहरिया लूटने की होड़ शुरू हो गई है. नेता माहौल के बनाने के चक्कर में बोलने की आजादी का नाजायज फायदा उठाने लगे हैं. सभी दलों के नेताओं के बोल बिगड़ने लगे हैं. आरजेडी ने इसकी शुरुआत की तो बीजेपी भी पीछे नहीं रही. कुलमिलाकर बिहार में चुनावी महफिल अब जमने लगा है. नेताओं के बयानों में तल्खी इस कदर बढ़ गई है कि कार्यकर्ता जोश के मारे कहीं मार न कर ले? बीते 10 दिनों में ‘मौलाना’, ‘मुल्ला’, ‘नमाजवाद’, ‘समाजवाद’, ‘छपरी’, ‘टपोरी’ और ‘लफुआ’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर नेताओं ने सियासी माहौल को गर्म कर दिया है. ये बयान न केवल वोट बैंक को ध्यान में रखकर दिया जा रहा है बल्कि ध्रुवीकरण की कोशिश को भी दर्शाते हैं. आइए इन बयानों के सियासी निहितार्थ पर नजर डालें. नेताओं के 10 विवादास्पद बयान, जिसने मानसून के बीच बिहार चुनाव में गर्मी बढ़ा दी है.
1- 1 जुलाई को 2025 को आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा, ‘बीजेपी वाले मुझे नमाजवादी और मौलाना कहते हैं, लेकिन ये छपरी, टपोरी और लफुआ लोग बिहार की जनता को बेवकूफ नहीं बना सकते.’
2- 1 जुलाई 2025 को बीजेपी प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कहा, ‘बिहार में जो खुद को समाजवादी कहते हैं, उनका असली चेहरा नमाजवादी है. ये संविधान का सम्मान नहीं करते, इन्हें सिर्फ शरिया और हलाला चाहिए’
3- 1 जुलाई 2025 बीजेपी नेताओं का प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘नमाजवादियों का असली चेहरा बेनकाब हो चुका है. बिहार में समाजवाद का ढोंग करने वाले संविधान विरोधी हैं.’
4- 30 जून 2025 को आरजेडी नेता ने कहा, बीजेपी वाले समाजवाद को बदनाम करने के लिए नमाजवाद जैसे शब्द गढ़ रहे हैं. ये बिहार के गरीबों और पिछड़ों को बांटना चाहते हैं.’
5- 29 जून को तेजस्वी यादवने कहा, ‘बीजेपी के लफुआ और छपरी नेताओं को जवाब जनता वोट से देगी. हम समाजवाद के रास्ते पर हैं.’
6- 28 जून को जेडीयू नेता ने कहा, ‘आरजेडी वाले मौलाना और मुल्ला की बात छोड़ें, पहले बिहार में विकास की बात करें.’
7- 27 जून को कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, ‘बीजेपी का नमाजवाद का नैरेटिव बिहार में सांप्रदायिकता फैलाने की साजिश है. हम समाजवाद के लिए लड़ रहे हैं’
8- 26 जून 2025 को बीजेपी के एक विधायक ने कहा, ‘आरजेडी के मौलाना और नमाजवादी बिहार को पीछे ले जाना चाहते हैं. हम विकास की बात करते हैं.’
9- 25 जून को लालू यादव के बड़े लाल तेज प्रताप यादव ने कहा, ‘बीजेपी के टपोरी और लफुआ लोग समाजवाद को नहीं समझ सकते. हम लालू जी के रास्ते पर हैं.
9- 24 जून को आरजेडी के एक बड़े नेता ने कहा, बीजेपी वाले मुल्ला और मौलाना कहकर मुस्लिम वोटरों को डराना चाहते हैं, लेकिन बिहार की जनता समझदार है.’
10- बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, ‘तेजस्वी यादव ने संविधान को कूड़ेदान में फेंकने की बात कहकर संसद का अपमान किया है.’
इन बयानों से साफ है कि बिहार चुनाव से पहले सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और सामाजिक समीकरणों को साधने की कोशिश तेज हो गई है. बीजेपी का ‘नमाजवाद’ बनाम ‘समाजवाद’ का नैरेटिव मुस्लिम वोटरों को आरजेडी और महागठबंधन से दूर करने की रणनीति का हिस्सा है. बिहार में 17% मुस्लिम आबादी एक निर्णायक कारक है और आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन इस वोट बैंक पर मजबूत पकड़ रखता है. बीजेपी का यह बयान मुस्लिम-विरोधी छवि को मजबूत कर सकता है, जो गैर-मुस्लिम और हिंदू वोटरों को एकजुट करने की कोशिश है.
क्या अलग होने जा रहा है इस बार बिहार चुनाव?
वहीं, तेजस्वी यादव और आरजेडी नेता ‘छपरी’, ‘टपोरी’ और ‘लफुआ’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल बीजेपी के नेताओं को निम्न स्तर का दिखाकर युवा और ग्रामीण वोटरों को भावनात्मक रूप से जोड़ने की रणनीति है. ये शब्द बिहार की स्थानीय बोली से लिए गए हैं, जो आम जनता में आसानी से गूंज सकते हैं. हालांकि, ऐसे बयान सियासी बहस को निम्न स्तर पर ले जाते हैं और विकास जैसे मुद्दों से ध्यान भटका सकते हैं. चुनाव पर प्रभाव
बिहार में 243 विधानसभा सीटों पर होने वाले चुनाव में 8 करोड़ मतदाता निर्णायक होंगे. इन बयानों से साफ है कि महागठबंधन और एनडीए दोनों ही जातिगत और सांप्रदायिक समीकरणों को साधने में जुटे हैं.