Mahakumbh : महाकुंभ में जिधर देखो उधऱ स्नान करते हुए भगवा रंग के साधु संन्यासी नजर आ रहे हैं. अखाड़ों में भी लोग इसी रंग के कपड़ों में हैं. आखिर साधु संन्यासियों और भारत में पवित्रता का रंग भगवा ही क्यों है. क्यों हमारे यहां संत इसी रंग के कपड़े पहनते हैं.
News18 हिंदीLast Updated :January 22, 2025, 15:43 ISTFiled bySanjay Srivastava
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महाकुंभ 2025
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क्या आपको मालूम है कि सैकड़ों हजारों सालों से हिंदू साधू और संन्यासी भगवा रंग का वस्त्र ही धारण करते हैं. उनके वस्त्र सिले हुए नहीं होते. आखिर क्या सोचकर हिंदू साधुओं ने इस रंग को अपनाया. इसके बारे में क्या कहा जाता है.
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भारत में सैकड़ों हजारों सालों से भगवा ही साधु संन्यासियों का रंग होता है, वो इसी रंग का वस्त्र पहनते हैं तो इस रंग का टीका लगाते हैं और अपने पवित्र ग्रंथ भी वह भगवा रंग या लाल रंग के कपड़े में लपेट कर रखते हैं.
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ऐसा माना जाता है कि भगवा रंग अग्नि का प्रतीक होता है. लिहाजा इसे पवित्र और शुद्धता का प्रतीक रंग माना जाता है. केवल साधु संत ही क्यों बल्कि मंदिर में इसी रंग का ज्यादा इस्तेमाल होता है. मंदिरों के ऊपरी हिस्से इसी रंग से रंगे होते हैं तो महिला साधु भी इसी रंग के कपड़े धारण करती हैं.
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भगवा रंग को ऊर्जा और त्याग का प्रतीक चिन्ह रंग माना जाता है. ऐसा माना गया है कि भगवा रंग के कपड़े धारण करने से मन पर नियंत्रण रहता है. दिमाग शांत रहता है. हालांकि इसे लेकर अलग धर्मों की अलग फिलास्फी है. मसलन कुछ धर्म सफेद रंग को पवित्र मानते हैं तो कुछ हरे रंग को लेकिन हिंदू धर्म हमेशा से भगवा रंग को ही पवित्र मानता आया है.
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वैसे भगवा रंग के पीछे एक पौराणिक कहानी भी है. दरअसल पुराने समय में साधु संत एक जगह से दूसरी जगह जब जाते थे तो अपने साथ अग्नि को साथ लेकर चलते थे. धीरे-धीरे अग्नि के साथ साधु संत भगवा रंग का ध्वज लेकर चलने लगे. बाद में ये रंग उनके वस्त्रों में बदल गया. (news18)
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भगवा रंग या केसरिया रंग का हिंदू के साथ बौद्ध, जैन, सिख धर्मों में भी खास महत्व है. वेद, उपनिषद, पुराण श्रुति, सभी भगवा का यशोगान करते हैं. हिंदू नारियां भी सुहाग के प्रतीक के रूप में इसी रंग से अपनी मांग भरती हैं. कुल मिलाकर, सिर्फ साधु ही नहीं, वैरागी, त्यागी, तपस्वी से लेकर गृहस्थ तक, सभी भगवा वस्त्र धारण करते हैं.
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कई बार केसरिया यानि भगवा रंग को आरेंज कलर यानि नारंगी जैसा माना लिया जाता है लेकिन दोनों में अंतर है. नारंगी लाल और पीले रंग के बीच का एक रंग है, जबकि केसरिया नारंगी का एक रंग है जो पीले रंग की ओर अधिक झुकता है. केसर को अक्सर सुनहरे या पीले-नारंगी रंग के रूप में वर्णित किया जाता है.
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केसरिया रंग मुख्य रूप से कैरोटीनॉयड रसायन क्रोसिन के कारण होता है. मसाला केसर, केसर क्रोकस धागे की नोक के रंग से प्राप्त होता है. इस रंग को "नारंगी" नाम 16वीं शताब्दी में दिया गया. इससे पहले, इसे "केसरिया" या "पीला-लाल" कहा जाता था. बौद्ध भिक्षु थेरवाद परंपरा में आमतौर पर भगवा वस्त्र पहनते हैं. वज्रयान बौद्ध भिक्षुओं मैरून रंग पहनते हैं.
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हिंदू धर्म में से बहुत से धर्म निकले हैं. इन्हीं में से एक है जैन धर्म. जैन धर्म में भी साधु और संन्यासी होते हैं. जैन साधुओं में दो प्रकार होते हैं- दिगंबर और श्वेताम्बर. दिगंबर साधु बिना कपड़ों के ही रहते हैं. इसका अर्थ है कि उन्होंने सभी भौतिक चीजों को त्याग दिया है. श्वेताम्बर वो साधु होते हैं वो सफ़ेद कपड़े पहनते हैं और मुंह पर भी सफेद कपड़ा बांधते हैं.
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काले कपड़े, खुली जताएं, गले में रुद्राक्ष की माला और हाथ में नरकंकाल. ऐसे साधु खुद को तांत्रिक कहते हैं जो तंत्र-मन्त्र में माहिर होते हैं. वो डावा करते हैं कि उनके तंत्र से आप अपने मन का सब काम दूसरों से करवा सकते हैं. उनका यह भी दावा था कि उन्होंने बहुत सी बीमारियों का इलाज भी तंत्र-मंत्र से किया है. बहुत से अघोरी साधु भी काले रंग के वस्त्र पहनते हैं.