महाभारत: गांधारी ने क्यों दिया भाई को शाप, फिर कृष्ण पर क्यों उतरा गु्स्सा

1 month ago

Last Updated:February 28, 2025, 13:16 IST

Mahabharat Katha: महाभारत के युद्ध में गांधारी ने केवल दो लोगों को श्राप दिया. इसमें एक उनका अपना भाई शकुनि था और दूसरे कृष्ण. क्या हुआ इसका असर.

 गांधारी ने क्यों दिया भाई को शाप, फिर कृष्ण पर क्यों उतरा गु्स्सा

हाइलाइट्स

महाभारत युद्ध के बाद गांधारी और धृतराष्ट्र पांडवों के प्रति क्रोध से भरे हुए थेगांधारी के श्राप से शकुनि का परिवार और राज्य कभी नहीं उबर सकाश्रीकृष्ण को भी गांधारी ने जो श्राप दिया, उसका गहरा असर पड़ा

महाभारत के युद्ध में धृतराष्ट्र और गांधारी ने अपने 100 पुत्रों को खो दिया. उनके दुख का कोई ठिकाना नहीं था. आखिर युद्ध ने उनके घर के सारे चिराग बुझा दिये थे. धृतराष्ट्र भी पांडवों पर नाराज थे और गांधारी भी. कुछ हद तक उनका गुस्सा उन पर उतरा भी लेकिन उस तरह नहीं. उन्होंने पांडवों पर तब भी नरमदिली दिखाई लेकिन गांधारी ने युद्ध के बाद दो लोगों को भयंकर श्राप दिया, जिसमें एक उनका साजिशी भाई शकुनि था. जिसके बारे में हर कोई यही मानता है इस पूरे विनाश की जड़ में वही था.

शकुनि गांधारी भाई था. जब गांधारी की शादी धृतराष्ट्र से हुई तो शकुनि भी हस्तिनापुर आकर रहने लगा. उसने कुरु वंश को अपने परिवार की बर्बादी के लिए जिम्मेदार माना तो अपनी बहन की नेत्रहीन धृतराष्ट्र के साथ शादी के लिए भी कसूर दिया. बाद में कुछ घटनाएं ऐसी हुईं, जिसमें धृतराष्ट्र के गुस्से का शिकार भी उसके पिता और परिवार के लोग हुए.

शकुनि ने शुरू से साजिशें की
महाभारत कहती है कि शकुनि ने ठान लिया था कि वो इस वंश का नाश करके रहेगा. इसलिए शकुनि ने कौरवों के बचपन से ही साजिश के बीच इस तरह बोने शुरू किये कि उनकी कभी पांडवों ने नहीं बनी. पांडवों ने जितने भी कष्ट उठाए, उसके पीछे शकुनि की साजिशें ही थीं. जिसके लिए वह धृतराष्ट्र को हमेशा उकसाता था. महाभारत का युद्ध भी इसी साजिश की पराकाष्ठा थी.

गांधारी ने कई बार भाई को सावधान किया
गांधारी को मालूम था कि किस तरह उसका भाई दुर्योधन को भड़काता रहता है और उसने उसे बचपन से इस तरह तैयार किया कि उसने पांडवों को अपना दुश्मन माना. इसके लिए गांधारी समय समय पर अपने भाई को बाज आने के लिए कहती थीं. गुस्सा करती थीं. लेकिन शकुनि पर कभी इसका असर नहीं हुआ.

तब वह शकुनि पर क्रोधित हो उठीं
महाभारत युद्ध के दिनों में ये नजर आने लगा कि सभी कौरव विनाश की ओर बढ़ रहे हैं. अंत में सभी खत्म हो गया. राजपाट खत्म हो गया. दुर्योधन को बुरी मौत मिली. महाभारत के आखिरी दिनों में गांधारी इस बुरी तरह अपने भाई पर क्रोधित हो उठीं कि उसे भयंकर श्राप दिया.

श्राप का असर कैसे शकुनि और उसके राज्य पर पड़ा
गांधारी ने शकुनि को श्राप दिया कि जिस तरह उसने हस्तिनापुर में द्वेष और क्लेश फैलाया, उसका फल उसको मिलेगा. इस युद्ध में वह तो मारा ही जाएगा बल्कि उसके गांधार में भी कभी शांति नहीं रहेगी. गांधार में हमेशा गृह युद्ध चलता रहेगा. शांति और समृद्धि नहीं पनप सकेगी. ऐसा ही हुआ. वह अपने पुत्रों की मृत्यु का जिम्मेदार पांडवों से भी ज्यादा दो लोगों को मानती थी, जिसमें एक शकुनि था.

गांधारी के श्राप के कारण शकुनि का परिवार भी नष्ट हो गया. कोई बच नहीं पाया. मान्यताओं के अनुसार गांधारी के श्राप का प्रभाव आज तक गांधार प्रदेश (आधुनिक अफगानिस्तान) पर दिखाई देता है.

गांधारी ने अपने बेटों की मौत के लिए कृष्ण को जिम्मेदार ठहराया. युद्ध के कारण हुए विनाश के लिए उन्हें दोषी ठहराया. गांधारी के गहरे क्रोध और दुःख ने कृष्ण को जो श्राप दिया, उसका गहरा असर पड़ा.(X)

दूसरा श्राप कृष्ण को क्यों
अब आइए जानते हैं कि गांधारी ने दूसरा श्राप कृष्ण को क्यों दिया लेकिन उससे पहले ये जानना चाहिए पांडवों पर नाराज होने के बाद भी आखिर गांधारी ने पांडवों पर नरमदिली क्यों दिखाई, उन्हें अपने श्राप से क्यों दूर रखा.

पांडवों से बुरी तरह नाराज तब भी उन्हें छोड़ दिया
महाभारत युद्ध के बाद कुरुक्षेत्र में शव बिखरे हुए थे. हजारों महिलाएं अपने परिजनों के शव पर रो रही थीं. तभी युधिष्ठिर भाइयों और कृष्ण के साथ धृतराष्ट्र और गांधारी के पास पहुंचे. नेत्रहीन राजा ने उन्हें अपना आशीर्वाद दिया लेकिन हृदय क्रोध और तिरस्कार से भरा हुआ था. अन्य पांडवों ने भी उनसे आशीर्वाद मांगा. इसके बाद वो रानी गांधारी के पास गए और उनके पैर छूने के लिए झुके. उनसे आशीर्वाद मांगा.

अपने विवाह के दिन से गांधारी ने खुद की आंखों पर पट्टी बांधकर अपने को नेत्रहीन बना लिया था. फिर भी अपने अंतर्ज्ञान से वह जानती थी कि उसके आसपास और लोगों के मन में क्या चल रहा है. उसका दुख और पीड़ा इतनी गहरी थी कि आंखों पर पट्टी बंधी होने के बाद भी उसकी तीखी निगाह युधिष्ठि के पैर के अंगूठे पर पड़ी, जिससे वह काला पड़ गया.

गांधारी पांडवों से बुरी तरह नाराज थीं. लेकिन उसके बावजूद उन्होंने पांडवों को लताड़ा जरूर लेकिन श्राप नहीं दिया. (Image generated by Meta AI)

भीम को लताड़ा
युधिष्ठिर ने विनती की, मां गांधारी मुझे क्षमा करें. मेरी जो नियति आप उचित समझें, उसके साथ मुझे शाप दें. लेकिन गांधारी ने ऐसा नहीं लेकिन भीम को जरूर लताड़ा. कहा, भीम, तुमने युद्ध के हर नियम के खिलाफ जाकर मेरे पुत्र दुर्योधन को कमर के नीचे मारा. मेरे लिए तुम्हे क्षमा करना मुश्किल है. तुमने मेरे पुत्र दुशासन का खून पिया. क्या एक योद्धा को ऐसा आचरण करना चाहिए.

कृष्ण को ऐसा श्राप
माता गांधारी मुझे क्षमा करें. भीम बड़बड़ाया. उसके चेहरे पर भी आंसू बह रहे थे. वह बच्चे की तरह रो रहा था. लेकिन गांधारी ने भीम को भी कोई श्राप नहीं दिया. वह कृष्ण की ओर मुखातिब हुई, जिन्हें वह शकुनि के बाद इस पूरी त्रासदी के लिए जिम्मेदार मान रही थीं. उनका स्वर शांत लेकिन ठंडे गुस्से से ऐसा भरा हुआ था कि सुनने वाले भय से कांप उठे.

गांधारी के शाप का कृष्ण पर क्या हुआ
गांधारी ने कहा, तुम ही वह व्यक्ति हो. जो इस युद्ध को रोक सकते थे. तुम मेरे बेटों और परिवार के विनाश के लिए दोषी हो. आज मैं, मारे गए कौरवों की माता तुम्हें और तुम्हारे वृष्णि कुल को शाप देती हूं. आज से 36 साल के भीतर तुम्हारा परिवार और तुम्हारे रिश्तेदार एक दूसरे के हाथों नष्ट हो जाएंगे. उनकी पत्नियां और बच्चे उसी तरह रोएंगे, जैसे हम कर रहे हैं. ये गांधारी का शाप है. बाद में ऐसा ही हुआ भी.

क्यों बच गए पांडव
अब हैरानी की बात ये है कि पांडवों के प्रति तमाम गुस्से के बाद भी गांधारी और धृतराष्ट्र ने उनके प्रति नरमदिली क्यों दिखाई. उन्हें कोई श्राप क्यों नहीं दिया. उसे लेकर कई बातें कही जाती हैं.

धर्मनिष्ठा – गांधारी एक धर्मपरायण स्त्री थीं. वह जानती थीं कि पांडव धर्म के मार्ग पर चल रहे थे. युद्ध में उनकी विजय धर्म की विजय थी.

सत्य का साथ – गांधारी ने हमेशा सत्य का साथ दिया था. वह जानती थीं कि कौरवों ने अधर्म किया था और पांडवों ने धर्म का साथ दिया था.
युधिष्ठिर की विनम्रता – युद्ध के बाद युधिष्ठिर गांधारी के पास गए और उनसे क्षमा मांगी. युधिष्ठिर की विनम्रता और पश्चाताप देखकर गांधारी का मन पिघल गया. इन सभी कारणों से गांधारी ने पांडवों को शाप नहीं दिया.

आखिर श्राप का असर क्यों होता था
– प्राचीन ग्रंथों में, ऋषि-मुनियों और शक्तिशाली व्यक्तियों को आध्यात्मिक शक्ति से संपन्न माना जाता था. ये विश्वास था कि उनकी वाणी में इतनी शक्ति होती थी कि वे अपने शब्दों से वास्तविकता को बदल सकते थे. तपस्या और साधना के माध्यम से अर्जित की गई यह शक्ति श्राप को प्रभावी बनाती थी.

Location :

Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh

First Published :

February 28, 2025, 13:16 IST

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महाभारत: गांधारी ने क्यों दिया भाई को शाप, फिर कृष्ण पर क्यों उतरा गु्स्सा

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