योगी का ये कहना कितना सही कि आगरा को शिवाजी के नाम से जानते हैं, क्या हकीकत

3 days ago

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आगरा में एक संबोधन में कहा कि आगरा को लोग आमतौर पर शिवाजी के नाम से जानते हैं. क्या ये बात वाकई सही है. आखिर शिवाजी का आगरा से कोई रिश्ता है. इसके साथ ये भी जानेंगे कि आगरा का रिश्ता मुगलों से क्यों कहा जाता है. मुगलों से पहले आगरा किसका था.

योगी का ये कहना कुछ हद तक सही छत्रपति शिवाजी का संबंध आगरा से रहा है. हालांकि ये रिश्ता करीब तीन महीने का था. जब औरंगजेब ने उन्हें यहां धोखे से बुलाकर नजरबंद कर दिया था. इसके बाद वो योजना बनाकर इसे से निकलने में सफल रहे. ये किस्सा बहुत सुना और पढ़ा जाता है.

औरंगजेब ने शिवाजी को आगरा बुलाया
1666 में शिवाजी महाराज को मुगल सम्राट औरंगजेब ने आगरा में अपने दरबार में बुलाया. मौका औरंगजेब के 50वें जन्मदिन का था, जब उस मौके पर आगरा के दरबार में एक समारोह हो रहा था. हालांकि औरंगजेब ने इस समारोह के जरिए शिवाजी को एक साजिश के तहत ही बुलाया था.

औरंगजेब का मकसद कुछ और ही था
वह शिवाजी को ना केवल अपने अधीन करना चाहता था बल्कि कमजोर भी. जब शिवाजी आगरा पहुंचे तो उन्हें वह सम्मान नहीं दिया गया. दरबार में भी जब वो गए तो उन्हें अपमानित महसूस हुआ. औरंगजेब ने उन्हें आमंत्रित जरूर किया लेकिन दरअसल उसका मकसद कुछ और ही था.

शिवाजी को औरंगजेब ने धोखे से आगरा बुलाकर नजरबंद कर दिया था. (image generated by Meta ai)

शिवाजी को नजरबंद कर दिया गया
फिर शिवाजी को औरंगजेब ने नजरबंद कर दिया. उन्हें आगरा के जयपुर भवन (अब इस नाम का कोई भवन आगरा में नहीं) में रखा गया. ये आगरा में एक खास जगह थी. ये भवन जयपुर के राजा द्वारा बनवाया गया था. मुगल दरबार के अधीन हो चुका था. शिवाजी को उनके पुत्र संभाजी और कुछ विश्वासपात्र साथियों के साथ वहां रखा गया. वो वहां करीब तीन महीने रहे.

नजरबंदी करीब तीन महीने चली
शिवाजी 12 मई, 1666 को आगरा पहुंचे थे. उनकी नजरबंदी मई से 17 अगस्त 1666 में तब तक चली, जब तक कि वो अपने पुत्र संभाजी और कुछ साथियों के साथ आगरा से भागने में सफलता नहीं हो गए. ठोस अनुमान के आधार पर, शिवाजी को आगरा में लगभग 90 से 100 दिनों तक नजरबंद रखा गया.

नजरबंदी के दौरान औरंगजेब के विश्वस्त अधिकारी और सैनिक शिवाजी की दिन-रात निगरानी करते थे. ( image generated by Meta ai)

निगरानी के लिए सैनिक और अधिकारी मुस्तैद किए गए
उनकी सेवा और निगरानी के लिए औरंगजेब ने विश्वस्त अधिकारियों और सैनिकों को जयपुर भवन के आसपास नियुक्त किया. नजरबंदी की निगरानी की जिम्मेदारी फुलाद खान नामक एक मुगल अधिकारी को दी गई. फुलाद खान आगरा किले का कोतवाल था. औरंगजेब का भरोसेमंद माना जाता था. इसके अलावा कुछ सशस्त्र पहरेदार और मुगल सैनिक भी निगरानी के लिए तैनात किए गए ताकि नजरबंदी में शिवाजी की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके. वह वहां से निकल नहीं पाएं.

मिठाई के टोकरे में बैठकर शिवाजी बच निकले
शिवाजी ने अपनी चतुराई से इस निगरानी को धता बताते हुए मिठाई के टोकरों में छिपकर भागने की योजना बनाई. इस दौरान उनके साथ उनके कुछ विश्वासपात्र माधव राव और अन्य लोग मदद कर रहे थे. ये काम उन्होंने इतनी सफलता के साथ किया कि टोकरी में छिपकर पहले जयपुर भवन से निकले और फिर आगरा से भी.

उनका मुगलों के साथ लगातार संघर्ष चलता रहता था. इसका असर आगरा पर पड़ता ही रहा होगा. (image generated by Meta AI)

यही है शिवाजी का आगरा से रिश्ता
यह घटना इतिहास में उनकी बुद्धिमत्ता और साहस के एक उदाहरण के रूप में प्रसिद्ध है. प्रत्यक्ष तौर पर इतिहास में शिवाजी का आगरा से यही रिश्ता लिखा गया है. अप्रत्यक्ष तौर पर ये कह सकते हैं कि आगरा मुगलों की राजधानी या केंद्र होने के कारण हमेशा उनके अभियानों के निशाने पर रहा. उनका मुगलों के साथ लगातार संघर्ष चलता रहता था. इसका असर आगरा पर पड़ता ही रहा होगा.

इतिहास क्या कहता है
हालांकि शिवाजी के अभियानों का मुख्य केंद्र दक्कन और पश्चिमी भारत (महाराष्ट्र, कर्नाटक, आदि) रहा, न कि आगरा पर सीधा हमला. आगरा से भागने के बाद शिवाजी की यह कहानी मराठा इतिहास में बहुत प्रसिद्ध हुई. इस तरह, आगरा उनकी वीरता की कथा का हिस्सा बन गया. इसके अलावा कोई अन्य ठोस और प्रत्यक्ष संबंध शिवाजी और आगरा के बीच इतिहास में कहीं भी है.

जयपुर हाउस अब आगरा में किस हाल में
इतिहास कहता है कि आगरा में “जयपुर भवन” (इस भवन को हाल में इस नाम से उल्लेख किया गया) नाम से कोई प्रसिद्ध या आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त इमारत का स्पष्ट उल्लेख ऐतिहासिक स्रोतों में नहीं मिलता. हो सकता है शिवाजी को नजरबंद रखा गया था, लिहाजा इस वजह से उस भवन को “जयपुर भवन” नाम दिया गया हो. क्योंकि जिस भवन में आगरा में शिवाजी को रखा गया था वो जयपुर के राजा (मिर्जा राजा जय सिंह) से संबंधित था, जिन्होंने औरंगजेब के दौर में शिवाजी को आगरा बुलाने में भूमिका निभाई थी.

इतिहासकार ये भी मानते हैं कि जिस भवन में शिवाजी रहे होंगे, हो सकता है कि वो जयपुर के राजा की संपत्ति या उनके प्रभाव क्षेत्र का हिस्सा रहा होगा. इस भवन की सटीक पहचान और वर्तमान स्थिति के बारे में स्पष्ट जानकारी सीमित है. आगरा में “जयपुर भवन” नामक कोई विशिष्ट संरचना आज के समय में प्रसिद्ध नहीं है. शायद वो भवन समय के साथ नष्ट हो गया हो.

आगरा में कौन सी इमारतें अभी फेमस
आज आगरा में मुख्य रूप से ताजमहल, आगरा किला, और फतेहपुर सीकरी जैसे यूनेस्को स्थल ही प्रसिद्ध हैं. हालांकि आगरा में कई मुगलकालीन इमारतें समय के साथ लुप्त हो गईं. केवल वो ही बचीं, जिन्हें पुरातत्व विभाग ने संरक्षित किया

इन सभी बातों का ऐतिहासिक स्रोत क्या है
जाने माने इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने “शिवाजी और उनका समय” (Shivaji and His Times) किताब लिखी, जो शिवाजी के जीवन और उनकी आगरा यात्रा के बारे में विस्तार से बताती है. इसमें नजरबंदी के स्थान का उल्लेख है, हालांकि “जयपुर भवन” नाम स्पष्ट रूप से नहीं दिया गया है. इसे संभवतः जयपुर के राजा जय सिंह से जुड़ा हुआ माना जाता है.

मराठा इतिहास क्या कहता है
मराठा और मुगल इतिहास के दस्तावेजों में आगरा में शिवाजी की नजरबंदी का जिक्र है, लेकिन विशिष्ट भवन की मौजूदा स्थिति पर कोई टिप्पणी नहीं है. आगरा के मुगलकालीन स्थानों पर लिखे गए ग्रंथों में जयपुर भवन का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता. अनुमान लगाया जाता है कि यह या तो नष्ट हो गया या इसका नाम बदल गया.

अब की स्थिति
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI): ASI की आधिकारिक वेबसाइट और आगरा के संरक्षित स्मारकों की सूची में “जयपुर भवन” का कोई उल्लेख नहीं है.

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