लालू के तिकड़म और तेजस्वी की मेहनत के बावजूद CM बनने का टूट न जाए सपना!

3 days ago

बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार भले जोड़-तोड़ से चल रही है, लेकिन वह विपक्षी गठबंधन इंडिया पर भारी पड़ने लगी है. खींच-तान दोनों ओर है. पर, दोनों के भीतर तनातनी अलग-अलग ढंग की है. एनडीए में सिर्फ बयानबाजी तक बात है. यानी तनातनी एक्शन मोड में नहीं दिख रहा. किसी के प्रति किसी के मन में गुबार है भी तो वह बाहर नहीं आ रहा. पर, विपक्ष की स्थिति ठीक इसके विपरीत है. आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव अपने बेटे तेजस्वी यादव को हर हाल में सीएम की कुर्सी पर बैठते देखना जाहते हैं. इसके लिए वे तरह-तरह के तिकड़म भी करते रहते हैं. तेजस्वी यादव भी अपने तईं खूब मेहनत कर रहे हैं. पर, आरजेडी का सबसे बड़ा संकट यह है कि उसके ही लोग साथ छोड़ते जा रहे हैं.

तेजस्वी का साथ छोड़ रहे हैं नेता
अपने लोगों के लगातार साथ छोड़ने से तेजस्वी कमजोर पड़ते दिख रहे हैं. इस साल फरवरी से लेकर अब तक कई बड़े नेताओं ने आरजेडी को अलविदा कह दिया है. अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव तक अगर ऐसी ही स्थिति रही तो तेजस्वी की ताकत और क्षीण होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. अफाक करीम, बुलो मंडल, देवेंद्र प्रसाद यादव, रामबली प्रसाद चंद्रवंशी, श्याम रजक के बाद अब पूर्व एमएलसी आजाद गांधी ने भी आरजेडी छोड़ दी है. ये तो ऐसे नेता हैं, जो फिलहाल किसी सदन के सदस्य नहीं हैं. विधानसभा के दो सदस्यों- चेतन आनंद और नीलम देवी ने तो फरवरी में ही तेजस्वी यादव का खेल बिगाड़ दिया था. नीतीश कुमार को विश्वासमत के दौरान झटका देने की तेजस्वी यादव और उनके पिता लालू यादव ने पूरी तैयारी कर ली थी. आरजेडी के इन्हीं दो विधायकों ने तेजस्वी की योजना पर पानी फेर दिया.

कांग्रेस से भी RJD ले लिया पंगा
कांग्रेस और आरजेडी का साथ लालू यादव के कारण लंबे समय से बना हुआ है. सोनिया गांधी के विदेशी मूल के सवाल पर लालू यादव खुल कर उनके समर्थन में खड़े थे. उनके इसी समर्थन के कारण उन्हें रेलवे का मनचाहा मंत्रालय भी मिल गया था. दरअसल उसके पहले रामविलास पासवान को रेल मंत्रालय देने की बात थी. उन्हें इसके लिए कांग्रेस ने हरी झंडी भी दे दी थी. शपथ ग्रहण के दिन पासवान को पता चला कि लालू ने दबाल डाल कर रेल मंत्रालय झटक लिया है. पुरानी बातें छोड़ भी दें तो लालू यादव ने पिछले ही साल पटना में हुई इंडिया ब्लाक की बैठक में राहुल गांधी को विपक्ष का अगुआ प्रोजेक्ट किया था. राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के क्रम में जब बिहार आए तो तेजस्वी यादव उनके ड्राइवर बन कर उन्हें बिहार की बारीकी समझा रहे थे. इससे पहले लालू यादव अपने घर राहुल को मटन बना कर खिला चुके थे. इसके बावजूद लालू यादव ने इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व राहुल गांधी से छीन कर ममता बनर्जी को सौंपने पर सहमति जता दी है. यानी कांग्रेस से भी लालू ने पंगा ले लिया है.

कभी तारणहार, अब बने हैं दुश्मन
लालू ने पहले कांग्रेस और वाम दलों का महागठबंधन बनाया. समय-समय पर महागठबंधन में कुछ और दल आए और कुछ गए भी. बिहार का महागठबंधन ही भाजपा और एनडीए विरोधी पार्टियों का इंडिया ब्लाक बनाने का प्रेरणास्रोत बना. बिहार के महागठबंधन के ही अंदाज में राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया ब्लॉक के गठन को लोकसभा चुनाव में आजमाया गया. फेल होने पर अब आपस में ही इंडिया ब्लॉक में शामिल दल टकरा रहे हैं. हरियाणा में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी की बात नहीं सुनी तो दिल्ली में आम आदमी पार्टी भी कांग्रेस से भिड़ गई है. बंगाल में ममता बनर्जी ने साथ रह कर भी कांग्रेस को किनारे कर दिया. अब तो राहुल गांधी के नेतृत्व पर इंडिया ब्लॉक आपस में ही उलझा हुआ है. आम आदमी पार्टी और टीएमसी के रुख से तो ऐसा लगता है कि वे कांग्रेस को इंडिया ब्लॉक से बाहर का रास्ता दिखा कर ही दम लेंगी.

सहनी भी मौके का कर रहे इंतजार
बिहार में विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के कभी चार विधायक चुने गए थे. VIP प्रमुख मुकेश सहनी खुद एमएलसी थे. कहने को तो विधायक वीआईपी के टिकट पर चुने गए थे, लेकिन वे मूल रूप से भाजपा के ही थे. इसलिए मौका पाकर वे सहनी का साथ छोड़ कर भाजपा में चले गए. भाजपा अगर विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी होने का दंभ भरती है तो इसमें वीआईपी के विधायकों का भी योगदान है, जो पाला बदल कर भाजपा के हो गए. इससे भड़के सहनी ने एनडीए छोड़ दिया. लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने अपने कोटे से तीन सीटें वीआईपी को देकर उन्हें तेजस्वी के नेतृत्व में सरकार बनने पर डेप्युटी सीएम का सब्जाबाग भी दिखा दिया. खैर, वीआईपी उम्मीदजवारों की लोकसभा चुनाव में हार के बाद आरजेडी को भी एहसास हो गया है कि उनको साथ लेकर सिर्फ परसेप्शन बनाया जा सकता है, चुनाव नहीं जीता सकता. सहनी के बारे में सूचनाएं आती रही हैं कि उनका मन भी डोल रहा है. हो सकता है कि वे भी मौके का इंतजार कर रहे हों.

रेवड़ियों का नहीं दिख रहा है असर
अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में फतह के लिए तेजस्वी यादव ने साल भर पहले ही कई ऐसे वादे लोगों से किए हैं, जिनसे उन्हें कामयाबी की काफी उम्मीद है. माई-बहिन मान योजना के तहत महिलाओं को 2500 रुपए मासिक सम्मान राशि देने, 200 यूनिट फ्री बिजली और सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि 400 से बढ़ा कर 1500 रुपए करने का उन्होंने वादा किया है. दूसरे राज्यों में ऐसी योजनाओं का लाभ राजनीतिक दल लेते रहे हैं. मध्य प्रदेश में भाजपा, महाराष्ट्र में महायुति, कर्नाटक में कांग्रेस और झारखंड में जेएमएम के हेमंत सोरेन ने ऐसी योजनाएं घोषित कर कामयाबी हसिल कीं. तेजस्वी को भी लगा कि हड़बड़ी में ऐसी घोषणाओं का चुनावी लाभ उन्हें भी मिलेगा. पर, पब्लिक वादों और घोषणाओं का फर्क समझती है. इसलिए तेजस्वी की रेवड़ियां भी सियासी गर्माहट पैदा करने में नाकाम साबित हो रही हैं.

नीतीश के साथ की भी उम्मीद नहीं
लालू यादव और तेजस्वी यादव के अलावा इंडिया ब्लॉक के दूसरे नेताओं को भी यह पक्का भरोसा रहा है कि नीतीश कुमार भले एनडीए के साथ अभी हैं, लेकिन वे फिर पाला बदलेंगे ही. आरजेडी नेताओं के इस भरोसे की वजह अव्वल तो नीतीश कुमार की पिछली गतिविधियां रही हैं. 2015 से अब तक उन्होंने दो बार आरजेडी से हाथ मिलाया तो दो बार भाजपा के साथ आए. भरोसे का दूसरा कारण नीतीश कुमार की समाजवादी विचारधारा रही है. नीतीश कुमार की विचारधारा कई मुद्दों पर भाजपा से मेल नहीं खाती. वक्फ संशोधन का मुद्दा हो या अंबेडकर को लेकर अमित शाह का बयान, नीतीश को ऐसी बातें पसंद नहीं. पटना में अटल बिहारी वाजपेयी के जयंती समारोह में महात्मा गांधी के भजन पर भाजपा कार्यकर्ताओं का हंगामा भी उन्हें पसंद नहीं. पर, नीतीश को इधर-उधर आते-जाते रहने से यह तो समझ है ही कि किसके साथ रहना उचित है. इसलिए अगर वे कह रहे कि अब पिछली गलती नहीं दोहराएंगे तो इसमें संदेह की गुंजाइश नहीं दिखती. एनडीए की एकजुटता जितनी प्रगाढ़ होगी, तेजस्वी की राह में रुकावटों की तादाद उतनी ही बढ़ती जाएगी. तेजस्वी के लिए इतनी रुकावटों को पार करना मुश्किल होगा.

Tags: CM Nitish Kumar, Lalu Yadav, Tejashwi Yadav

FIRST PUBLISHED :

December 31, 2024, 06:42 IST

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