हर मसले का हल अदालत नहीं… SC में मेहता की जोरदार दलील, फिर क्यों गुस्साए CJI?

4 hours ago

Last Updated:August 19, 2025, 18:57 IST

Supreme Court News: सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने SC में कहा कि हर समस्या का हल अदालत में खोजना जरूरी नहीं. संविधान ने राष्ट्रपति और राज्यपाल को जो विवेकाधिकार दिए हैं, उन्हें अदालत नहीं छीन सकती.

हर मसले का हल अदालत नहीं… SC में मेहता की जोरदार दलील, फिर क्यों गुस्साए CJI?SC में प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर बहस.

नई दिल्ली: संसद, राज्य विधानसभाओं और संवैधानिक पदों की सीमाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को बेहद अहम सुनवाई हुई. यह मामला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा Article 143 के तहत भेजे गए सवालों पर केंद्रित था. दरअसल, अप्रैल 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया था जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधायिका द्वारा पारित बिलों पर तय समयसीमा के भीतर निर्णय लेना होगा. अब इसी आदेश की वैधता पर बहस चल रही है. सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने सवाल उठाया कि क्या सुप्रीम कोर्ट संविधान को फिर से लिख सकता है. उन्होंने कहा, ‘क्या अदालत यह कह सकती है कि मैं कलम और कागज लेकर संविधान को फिर से लिख दूं?’ इस पर जजों ने याद दिलाया कि तमिलनाडु केस में हस्तक्षेप इसलिए हुआ क्योंकि राज्यपाल लंबे समय तक बिल अटका कर बैठे थे.

SC में तुषार मेहता की दलील

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने और भी जोरदार दलील दी. उन्होंने कहा कि हर समस्या का हल अदालत में खोजना जरूरी नहीं है. संविधान ने राष्ट्रपति और राज्यपाल को जो विवेकाधिकार दिए हैं, उन्हें अदालत नहीं छीन सकती. उन्होंने याद दिलाया कि संविधान सभा ने पहले समयसीमा रखने पर विचार किया था लेकिन बाद में उसे हटा दिया गया. यानी यह सोच-समझकर किया गया निर्णय था.

CJI बी.आर. गवई ने कहा कि अगर हर केस में कोर्ट यह जांचे कि संवैधानिक सवाल है या नहीं, तो जजों को आधी रात तक सुनवाई करनी पड़ेगी. वहीं जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा ने भी टिप्पणी की कि सलाहकार अधिकार (Advisory Jurisdiction) के तहत अदालत से राय मांगी जा सकती है, लेकिन उस राय की कई व्याख्याएं हो सकती हैं.

वेंकटरमणि ने यह भी आपत्ति जताई कि सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को ‘साधारण वैधानिक प्राधिकारी’ मान लिया, जबकि उनका पद उससे कहीं ऊंचा है. उनका कहना था कि अदालत ने अपने अधिकार से आगे जाकर नए नियम बनाने की कोशिश की है, जबकि Article 142 भी ऐसा करने की इजाजत नहीं देता.

बेहद अहम बिंदु पर आई सुनवाई

सरकार का कहना है कि संवैधानिक पदों पर अदालत नियंत्रण नहीं थोप सकती, जबकि अदालत का तर्क है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अनंतकाल तक रोका नहीं जा सकता. सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी और माना जा रहा है कि यह बहस भारत के संवैधानिक इतिहास में बेहद अहम मिसाल बनेगी. यह मामला तय करेगा कि अदालत और कार्यपालिका की सीमाएं कहां तक हैं और लोकतंत्र में बिलों के अटकने का इलाज किसके हाथ में है.

क्या है यह मामला?

राष्ट्रपति ने अदालत से यह राय मांगी है कि क्या अदालतें राष्ट्रपति और राज्यपाल जैसे संवैधानिक पदों पर समय सीमा तय कर सकती हैं. क्या संवैधानिक मौन (Constitutional Silence) को अदालत भर सकती है. और क्या इस तरह अदालत कार्यपालिका की भूमिका में दखल दे रही है.

अदालत के पहले के आदेश में कहा गया था कि राज्यपाल को Article 200 के तहत बिलों पर ‘उचित समय’ के भीतर फैसला लेना होगा. वहीं राष्ट्रपति को भी तीन महीने में निर्णय करना होगा और यदि देर हो तो कारण दर्ज करने होंगे. इसी आदेश को चुनौती देते हुए कहा गया कि संविधान में समयसीमा जानबूझकर नहीं रखी गई थी क्योंकि यह सर्वोच्च संवैधानिक पदों का अधिकार क्षेत्र है.

Deepak Verma

Deepak Verma is a journalist currently employed as Deputy News Editor in News18 Hindi (Digital). Born and brought up in Lucknow, Deepak's journey began with print media and soon transitioned towards digital. He...और पढ़ें

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Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

August 19, 2025, 18:57 IST

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