24 अकबर रोड: जहां नोबेल विजेता भी 2 साल रहीं, बूटा सिंह बांटते थे लंगर का खाना

13 hours ago

Last Updated:January 14, 2025, 15:47 IST

24 अकबर रोड… एक ऐसी इमारत जो जनवरी 1978 से ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उतार-चढ़ाव से भरे इतिहास की मूक साक्षी रही है. लेकिन अगर इस इमारत की आंखें और कान होते तो क्या इतिहास के पन्नों में कुछ अलहदा विवरण दर्ज नहीं होते?...और पढ़ें

1 जनवरी 1978 को नए साल की उस सर्द दोपहर को एक खबर ने कांग्रेस ही नहीं, देश की सियासत में भी गर्मी घोल दी थी. कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष के. ब्रह्मानंद रेड्‌डी ने इसी दिन इंदिरा गांधी के पार्टी से निष्कासन की घोषणा की थी. रेड्डी के पास वाईबी चव्हाण, वसंद दादा पाटिल और स्वर्ण सिंह जैसे दिग्गज नेताओं का समर्थन था.

इस फैसले के तुरंत बाद 3 जनपथ स्थित मरागाथम चंद्रशेखर के निवास पर सीडब्ल्यूसी की बैठक हुई. 24 में से 12 सदस्य इंदिरा गांधी के साथ थे, लेकिन एआईसीसी प्रमुख रेड्‌डी किसी समझौते के मूड में नहीं थे. सीडब्ल्यूसी सदस्य बूटा सिंह, एपी. शर्मा, जीके. मूपनार, सैयद मीर कासिम, मरागाथम चंद्रशेखर और बुद्ध प्रिय मौर्य ने इंदिरा के निष्कासन को चुनौती देने के लिए रेड्डी के आवास की ओर कूच किया. बूटा सिंह ने रेड्डी से कड़े शब्दों में पूछा कि नेहरू की बेटी को कांग्रेस से निष्कासित कैसे किया जा सकता है? उन्होंने कहा, ‘वे (इंदिरा) ही कांग्रेस हैं’ और इतना कहकर बूटा सिंह रेड्डी के निवास से बाहर चले आए.

उस समय पार्टी का मुख्यालय 7 जंतर मंतर पर स्थित था. यहां कांग्रेस का अमूल्य अभिलेखागार था, जिसे खोने का दुख इंदिरा गांधी को भी था. लेकिन 24 अकबर रोड को अपना मुख्यालय बनाने के बाद जब 1980 में वे प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौटीं तो उन्होंने 7 जंतर मंतर पर दावा करने से इनकार कर दिया. उनके बेटे संजय ने इसे वापस लौटाने का मामला उठाया तो इंदिरा ने उनसे कहा था, ‘मैंने पार्टी को शून्य से शिखर तक पहुंचाया है, और वह भी एक बार नहीं, दो बार. पार्टी का यह नया परिसर कार्यकर्ताओं को आने वाले दशकों तक प्रेरित करेगा.’

नोबेल विजेता का भी था ये आशियाना
24 अकबर रोड ने केवल 1980 की प्रचंड जीत से ही इतिहास नहीं रचा था. इससे करीब दो दशक पहले 1961 में जब डाव क्हिन को भारत में बर्मा की राजदूत नियुक्त किया गया, तो उस समय 24 अकबर रोड ही उनका आशियाना बना था. डाव क्हिन नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की मां थीं. सू की उस वक्त केवल 15 साल की थीं और वे भी 24 अकबर रोड पर अपनी मां के साथ ही रहने आई थीं. वे वहां करीब दो साल रहीं. डाव क्विन बर्मा के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख लीडर स्वर्गीय आंग सान की पत्नी थीं और उन्हें खास महसूस करवाने के लिए नेहरू ने 24 अकबर रोड को ‘बर्मा हाउस’ नाम दिया था. इस भवन का निर्माण वास्तुशिल्पी सर एडविन लुटियंस द्वारा 1911 और 1925 के बीच करवाया गया था. इसे ब्रिटिश औपनिवेशिक एवं शुरुआती आधुनिक वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता था.

सू की ने 24 अकबर रोड भवन का जो कमरा चुना था, उसका इस्तेमाल बाद में राहुल गांधी ने एआईसीसी के महासचिव के रूप में किया था. सू ने यह कमरा इसलिए चुना था, क्योंकि उसमें एक बड़ा पियानो था. हर शाम एक शिक्षक उन्हें पियानो सिखाने आते थे.

24 अकबर रोड पर ही सू ने जापानी फूलों की सजावट की कला भी सीखी थी. संजय व राजीव गांधी उनके समकालीन थे और उनके साथ वे 24 अकबर रोड भवन के शानदार बगीचे में खेला करती थीं.

बूटा सिंह लंगर से लाते थे खाना
1978 से 1980 का दौर इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस के लिए बड़ा कठिन समय था. इस समय बूटा सिंह की व्यावहारिक कार्यप्रणाली से काफी मदद मिली. इस दौरान पार्टी का जो भी लीडर 24 अकबर रोड आता, बूटा सिंह पार्टी की मदद करने की खातिर उससे दान देने की गुजारिश करते. दक्षिण भारत के सांसद और नेता सौ रुपये या ज्यादा की राशि देते, लेकिन उत्तर प्रदेश तथा बिहार जैसे राज्यों के नेता 10 या 20 रुपए ही निकाल पाते. मगर बूटा सिंह तमाम राशि, चाहे वह बड़ी हो या छोटी, पूरे सम्मान और गरिमा के साथ स्वीकार करते.

दफ्तर आने वाले पार्टी सदस्यों के लिए भोजन का इंतजाम करना भी बूटा सिंह के जिम्मे ही था. जब पार्टी का पैसा कम पड़ जाता तो वे गुरुद्वारा बंगला साहिब जाकर लंगर का खाना मांगकर ले आते. कांग्रेस के भूखे कार्यकर्ता उस सादी दाल-रोटी को भी ईश्वर के दरबार से भेजे गए प्रसाद के तौर पर स्वीकार कर तृप्त होते.

बूटा सिंह कई बार सड़क पार करके 2 मोतीलाल नेहरू मार्ग पर चले जाते जो पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन के दामाद तथा सलमान खुर्शीद (जिन्होंने बाद में 24 अकबर रोड पर एआईसीसी पदाधिकारी के बतौर सेवाएं दीं) के पिता खुर्शीद आलम खान का आवास हुआ करता था. वे अक्सर शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह का भोजन उपलब्ध करवाकर बूटा सिंह की मदद करने में पीछे नहीं रहे.

राव की पार्थिव देह को नसीब न हो सका 24 अकबर रोड
पी. वी. नरसिंह राव का 9, मोतीलाल नेहरू मार्ग आवास कांग्रेस के मुख्यालय से मुश्किल से 200 मीटर दूर था. लेकिन 1996 के लोकसभा चुनावों में हार के कुछ महीनों बाद पार्टी अध्यक्ष पद से हटाए जाने के उपरांत राव ने एक बार भी मुख्यालय का दौरा नहीं किया. इसे दुर्योेग ही कहा जाएगा कि 23 दिसंबर 2004 को निधन के बाद उनकी पार्थिव देह को भी 24 अकबर रोड नसीब नहीं हुआ.

निधन की अगली सुबह राव की पार्थिव देह को फूलों से सजी सेना की गाड़ी में ले जाकर थोड़ी देर के लिए कांग्रेस कार्यालय में रखा जाना था, ताकि पार्टी के कार्यकर्ता और सदस्य इस दिवंगत नेता के अंतिम दर्शन कर सके. लेकिन यह गाड़ी मुख्य द्वार से अंदर नहीं जा सकी और लगभग 40 मिनट तक बाहर ही खड़ी रही. इस दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी और कई मंत्रियों ने वहीं पर दिवंगत नेता को पुष्पांजलि अर्पित की. वरिष्ठ पत्रकार डॉ. संजय बारू जो उस समय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार थे, के अनुसार सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल ने राव के पुत्रों को यह संदेश देने को कहा था कि अंतिम संस्कार दिल्ली के बजाय हैदराबाद में किया जाना चाहिए.

जब गिर गया 100 साल पुराना पेड़!
मई 1999 में आए आंधी-तूफान में 24 अकबर रोड के परिसर में लगा एक विशाल पेड़ धराशायी हो गया. इस हादसे में न केवल एक आठ वर्षीय लड़के की मौत हो गई, बल्कि पार्टी कार्यालय में बना एक अस्थायी मंदिर भी नष्ट हो गया. यह पेड़ करीब 100 साल पुराना था, जबकि मंदिर को कर्नाटक के एक उस संत ने बनवाया था, जिसे पार्टी का टिकट दिया गया था. टिकट पाने के अनेक अभिलाषियों का मानना था कि मंदिर के देवता और पेड़ उनकी राजनीतिक आकांक्षाओं को पूरा करने की शक्ति रखते थे.

सौ साल से भी पुराने पेड़ का केवल 10 मिनट के आंधी-तूफान में इस तरह से गिरने से कई लोगों को ताज्जुब हुआ था. जब यह खबर देर रात सोनिया तक पहुंची तो उन्होंने भी यह जानना चाहा कि आखिर इतना मजबूत पेड़ अचानक कैसे गिर सकता है. उन्हें बताया गया कि पेड़ की ‘नींव कमजोर’ थी और इसकी जड़ें लंबे समय से सड़ रही थीं. पार्टी के कुछ असंतुष्ट सदस्यों ने इस घटना की तुलना कांग्रेस पार्टी से की. उनका कहना था कि पेड़ और पार्टी दोनों शायद एक ही उम्र के थे. पेड़ अडिग प्रतीत होता था, जब तक कि वह अचानक बिना किसी पूर्व चेतावनी के गिर नहीं गया. 1999 में सोनिया की अगुवाई में कांग्रेस की स्थिति भी बेहतर नजर आ रही थी, लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे बड़े राज्यों में पार्टी की जड़ें सड़ चुकी थीं. हालांकि 24 अकबर रोड ने आलोचकों को तब गलत साबित कर दिया, जब सोनिया के नेतृत्व में कांग्रेस ने 2004 और 2009 में लगातार दो चुनावों में सफलता का परचम फहराया.

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

January 14, 2025, 15:47 IST

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