DNA: एक लाख सैनिकों की मौत, तबाह अर्थव्यवस्था! रूस से 3 साल की जंग के बाद जेलेंस्की ने क्या पाया

11 hours ago

Zelensky trump meeting white house: रूस और यूक्रेन के बीच पिछले 3 साल से युद्ध जारी है, जिसके अब खत्म होने की उम्मीद जगने लगी है. इस युद्ध को ख़त्म करने के लिए तमाम पक्षों ने कई शर्तों लगा रखी हैं. आइए जानते हैं कि किसकी क्या शर्तें हैं और इन शर्तों को पूरा करने के लिए कौन कितना तैयार है. अगर ये शर्तें मान ली जाती हैं तो किसको फ़ायदा और किसको नुक़सान होगा? इस विश्लेषण के केंद्र में 3 अहम किरदार हैं. ट्रंप, पुतिन और जेलेंस्की.

ट्रंप इस युद्ध को खत्म करने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं. ये इसलिए क्योंकि उन्हें सीजफायर का वर्ल्ड लीडर बनना है और शांति का नोबल पुरस्कार जीतना है. ट्रंप को इस महापंचायत से भी उतनी ही उम्मीद है जितनी अलास्का में पुतिन के साथ मुलाकात को लेकर थी. पुतिन से मुलाक़ात के बाद ट्रंप ने गेंद यूक्रेन के पाले में डाल दी. 

यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी देने को यूएस तैयार!

ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की अगर चाहें तो रूस के साथ युद्ध लगभग तुरंत समाप्त कर सकते हैं या फिर वो लड़ाई जारी रख सकते हैं. याद कीजिए इसकी शुरुआत कैसे हुई थी. ओबामा का दिया गया क्रीमिया वापस नहीं मिलेगा और यूक्रेन नेटो में शामिल नहीं होगा. कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलतीं.

दूसरी तरफ ट्रंप के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि पुतिन ने अमेरिका को यूक्रेन के लिए मज़बूत सुरक्षा गारंटी देने पर सहमति जाहिर की है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यूक्रेन को नेटो में औपचारिक रूप से शामिल किए बिना उसे सुरक्षा गारंटी देने के लिए रूस और अमेरिका तैयार है. 

वहीं अगर रूस के राष्ट्रपति पुतिन की बात करें तो मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ ट्रंप के साथ मुलाक़ात में पुतिन ने साफ़ कर दिया था कि युद्ध तभी ख़त्म होगा जब यूक्रेन दोनेत्सक और लुहांस्क पर अपना दावा छोड़ दे. इसके बदले में उन्होंने खेरसॉन और ज़ेपोरिज़िया में लड़ाई रोकने की पेशकश की थी. साथ ही नए इलाक़ों में हमला नहीं करने का भरोसा दिया था.

युद्ध खत्म करने के लिए पुतिन की 3 शर्तें

इन बातों का निष्कर्ष निकालें तो अमेरिका और रूस की तरफ़ से यूक्रेन के सामने कुछ शर्तें साफ़ होती हैं.

- पहली शर्त ये है कि क्रीमिया पर रूस का कब्ज़ा बना रहेगा और यूक्रेन को क्रीमिया कभी वापस नहीं मिलेगा.

- दूसरी शर्त ये है कि दोनेत्सक और लुहांस्क पर भी यूक्रेन को अपना दावा छोड़ना होगा.

- तीसरी शर्त ये है कि यूक्रेन को नेटो की सदस्यता नहीं मिलेगी, उसे सुरक्षा गारंटी ज़रूर मिल सकती है.

मारे जा चुके हैं यूक्रेन के 1 लाख सैनिक

यानी एक तरह से ज़ेलेंस्की को ट्रंप याद दिला रहे हैं कि जिसकी लाठी उसकी भैंस. ज़ेलेंस्की अगर ट्रंप की बातें मानने के लिए तैयार हो जाते हैं तो उनके पास पाने के लिए कुछ नहीं होगा. न तो यूक्रेन को नेटो की सदस्यता मिलेगी, न ही रूस वो इलाक़े लौटाएगा जिन पर उसका कब्ज़ा हो चुका है. फिर यूक्रेन के लोग ये ज़रूर पूछेंगे कि जब युद्ध का यही नतीजा हासिल होना था तो इतने लंबे समय तक युद्ध के मैदान में वो क्यों टिके रहे.

जिस युद्ध की वजह से यूक्रेन के लगभग 1 लाख सैनिक और 12 हज़ार से ज़्यादा आम लोग मारे गए हैं. 1 करोड़ लोगों को पलायन करना पड़ा और यूक्रेन की अर्थव्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो गई. उस पर इतनी देर से फ़ैसला क्यों. यही वजह है कि ट्रंप के साथ बातचीत से पहले ज़ेलेंस्की ने युद्ध ख़त्म करने के लिए इन शर्तों को ठुकरा दिया है.

ज़ेलेंस्की ने अपनी पोस्ट में साफ़ किया कि युद्ध की शुरुआत रूस ने की थी और इसे ख़त्म करना भी उसी की ज़िम्मेदारी है. यूक्रेन के लोग अपनी जमीन और स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे हैं. हमारी सेना दोनेत्स्क और सुमी में आगे बढ़ी है. क्रीमिया को कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए था, जैसे हमने 2022 में कीव, ओडेसा और खारकिव को नहीं छोड़ा. 1994 में भी यूक्रेन को तथाकथित 'सुरक्षा गारंटी' मिली थी लेकिन वो काम नहीं आई.

कई बार बदल चुका है यूक्रेन का नक्शा

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ ट्रंप के साथ बैठक में ज़ेलेंस्की का मुख्य ज़ोर 3 मुद्दों पर रहेगा. पहला मुद्दा है यूक्रेन में आम लोगों की हत्या बंद हो. दूसरा मुद्दा है रूस पर और ज़्यादा प्रतिबंध लगाए जाएं और तीसरा मुद्दा है पहले स्थायी युद्धविराम हो, उसके बाद सुरक्षा गारंटी मिले. 

आगे बढ़ने से पहले ये जानना भी ज़रूरी है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान यूक्रेन का नक्शा किस तरह बदल गया है. बारी-बारी से रूस के आक्रमण की वजह से यूक्रेन का कितना हिस्सा अब रूस के कब्ज़े में है. 2014 से अब तक रूस ने यूक्रेन के क्रीमिया, खेरसॉन, ज़ेपोरिज़िया, दोनेत्स्क, लुहांस्क पर कब्ज़ा जमा लिया है. यानी कुल मिलाकर यूक्रेन के लगभग 1 लाख 14 हजार 500 वर्ग किलोमीटर पर रूस का कब्ज़ा है जो यूक्रेन के कुल क्षेत्रफल का 19 प्रतिशत है. 

यानी अगर यूक्रेन ने अपने क़दम पीछे खींचे तो उसका पांचवां हिस्सा हमेशा-हमेशा के लिए रूस का हो जाएगा. इसी डर से रूस की जिन मांगों को अमेरिका आगे बढ़ा रहा है, ज़ेलेंस्की ने बारी बारी से उन्हें खारिज कर दिया. यही वजह है कि बैठक से पहले ऐसा लग रहा है कि व्हाइट हाउस में टकराव का एक और मंच तैयार हो गया है.

जब ओवल हाउस में भिड़ गए थे ट्रंप-जेलेंस्की

टकराव से याद आती है ट्रंप और ज़ेलेंस्की के बीच एक और मुलाक़ात की. आज जब व्हाइट हाउस के ओवल हाउस में डॉनल्ड ट्रंप और वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की की मुलाक़ात होने वाली है तो 6 महीने पहले की उस तस्वीर को कैसे भुलाया जा सकता है जब बैठक के दौरान दोनों नेता बच्चों की तरह आपस में भिड़ गए थे.

28 फरवरी को हुई ये बैठक भी व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में हुई थी. ज़ेलेंस्की दोनों देशों के बीच क़ीमती खनिजों पर समझौते के लिए अमेरिका  गए थे. लेकिन जल्द ही दोनों नेता एक-दूसरे पर आरोप लगाने लगे जिसकी वजह से दोनों देशों के बीच खनिज को लेकर समझौता नहीं हो पाया था. ट्रंप ने ज़ेलेंस्की की जमकर आलोचना की और कहा कि यूक्रेन युद्ध हार रहा है और उन्हें लाखों लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करने का कोई अधिकार नहीं है.

ट्रंप ने ज़ेलेंस्की को धमकाते हुए कहा कि वो रूस के साथ समझौता करें नहीं तो नतीजे भुगतने होंगे. ज़ेलेंस्की ने ट्रंप के दावे को खारिज कर दिया और कहा कि वो किसी भी कीमत पर अपने देश की रक्षा करेंगे. दोनों नेताओं की उस तीखी नोक-झोंक का वह वीडियो दुनियाभर में वायरल हो गया था. 

आज की बैठक पर पूरी दुनिया की टिकी निगाहें

यहां तक कि दोनों नेताओं के बीच हुई तीखी बहस की वजह से मुलाक़ात के बाद होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस को भी रद्द कर दिया गया और ज़ेलेंस्की को व्हाइट हाउस से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. नाराज़ ट्रंप ने ज़ेलेंस्की के साथ लंच को भी रद्द कर दिया था. ये मुलाक़ात इतनी कड़वी थी कि बैठक के बाद भी ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर पोस्ट कर ज़ेलेंस्की पर कई आरोप लगाए थे. हालांकि इस कड़वी मुलाकात के बाद दोनों नेताओं के बीच 2 बार मुलाक़ात हो चुकी है.

अप्रैल में पोप फ्रांसिस के अंतिम संस्कार के दौरान वैटिकन में दोनों नेता मिले थे और उसके बाद जून में नेटो शिखर सम्मेलन के दौरान नीदरलैंड्स में दोनों नेता मिल चुके हैं. ये दोनों बैठक अच्छे माहौल में हुई थी. नीदरलैंड्स में मुलाक़ात के बाद तो ट्रंप ने ज़ेलेंस्की की तारीफ़ भी की थी. ज़ेलेंस्की ने भी आज होने वाली मीटिंग से पहले अपने सोशल मीडिया पोस्ट में ख़ुद को बातचीत के लिए बुलाने जाने को लेकर ट्रंप का आभार जताया है. वो भी एक नहीं बल्कि दो-दो बार. इस पृष्ठभूमि में आज की बैठक पर पूरी दुनिया की नज़र टिकी हुई है.

व्हाइट हाउस में अब से थोड़ी देर बाद महापंचायत शुरू होनेवाली है. महापंचायत में सरपंच ट्रंप के साथ पांच पंच यानी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर, जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्त्ज, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, इटली की PM जॉर्जिया मेलोनी और फिनलैंड के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर स्टब मौजूद रहेंगे. साथ ही यूरोपीय यूनियन की अध्यक्ष उर्सुला वान डेर लेयेन और NATO महासचिव मार्क रूटे भी बैठक में शामिल होंगे.रूस-यूक्रेन जंग में इन देशों का भी बहुत कुछ दांव पर लगा है.

नाटो देश क्यों कर रहे यूक्रेन की मदद?

ये देश NATO के सदस्य हैं और पिछले तीन साल से युद्ध में यूक्रेन की मदद कर रहे हैं. इसलिए आज व्हाइट हाउस में हो रही महापंचायत में ये देश भी मौजूद हैं. मित्रों मशहूर शायर राहत इंदौरी का शेर है. 

लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में

यहां पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
 
कुछ ऐसा ही हाल रूस-यूक्रेन की लड़ाई में ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, फिनलैंड जैसे देशों का भी है. लड़ाई यूक्रेन की जमीन पर हो रही है..लेकिन नुकसान इन देशों का भी है. यूरोपीय देशों के नुकसान को अब आप विस्तार से समझिए. सबसे पहले हम आपको रूस और यूरोपीय देशों के आर्थिक रिश्ते की जानकारी देते हैं. यूरोपीय देश युद्ध से पहले रूस से अपनी खपत का करीब 30 प्रतिशत तेल खरीदते थे. इसमें जर्मनी और फिनलैंड जैसे देश सबसे बड़े खरीदार थे.

रूस पर निर्भर हैं यूरोपीय देश

यूरोपीय देश गैस खपत का 40 प्रतिशत रूस से खरीदते थे. जर्मनी और इटली जैसे देश तो सबसे बड़े खरीदार थे. नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन से रूस जर्मनी को सीधे गैस देता था. यूरोपीय यूनियन खपत का करीब 45 प्रतिशत कोयला रूस से खरीदता था. इसमें जर्मनी खासतौर पर रूस पर निर्भर था.

यानी संक्षेप में कहानी ये है कि यूरोपीय देश अपनी ऊर्जा से जुड़ी जरूरत का बड़ा हिस्सा रूस से आय़ात कर पूरा करते थे. एक तरफ ये देश ऊर्जा से जुड़ी अपनी जरूरत पूरा करने के लिए रूस पर निर्भर हैं तो दूसरी तरफ ये देश रूस की मजबूत सैन्य ताकत से डरते हैं. इसलिए रूस के खिलाफ इन देशों ने यूक्रेन की मदद की.

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