हाइलाइट्स
पूर्व प्रधानमंत्रियों के स्मारक आमतौर पर दिल्ली में ही बनाए जाते हैंस्मारक निर्माण का खर्च केंद्र सरकार वहन करती हैस्मारक का प्रबंधन संस्कृति मंत्रालय करता है
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का स्मारक बनाने के लिए केंद्र सरकार कोई जगह देख रही है. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की स्मृति के लिए जिन स्थानों पर विचार किया जा रहा है, उनमें किसान घाट के पास का क्षेत्र, पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का स्मारक, और राष्ट्रीय स्मृति स्थल शामिल हैं, जो राष्ट्रपतियों, उप-राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों के मेमोरियल के लिए तय स्थान हैं.
भारत में दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री का स्मारक बनाने की प्रक्रिया में कई चरण शामिल होते हैं. यह प्रक्रिया केंद्रीय सरकार, संबंधित मंत्रालयों, और अन्य संस्थाओं के तालमेल से पूरी होती है.
सवाल – कौन देता है इसका प्रस्ताव?
– सबसे पहले स्मारक बनाने का प्रस्ताव दिया जाता है, जो आमतौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO), संबंधित मंत्रालय (जैसे संस्कृति मंत्रालय), या दिवंगत नेता के परिवार द्वारा किया जाता है. फिर केंद्रीय कैबिनेट या संबंधित प्राधिकरण इस प्रस्ताव पर विचार करता है. इसकी स्वीकृति देता है.
सवाल – फिर कैसे होता है स्थान का चयन?
– प्रधानमंत्रियों के स्मारक के लिए भूमि आमतौर पर दिल्ली जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर ही दी जाती है. दिवंगत प्रधानमंत्री की राजनीतिक यात्रा से जुड़े स्थानों को प्राथमिकता दी जाती है. हालांकि देश के कई प्रधानमंत्रियों के अंतिम संस्कार दिल्ली से बाहर हुए और उनके स्मारक भी बाहर हैं.
सवाल – भारत के किन प्रधानमंत्रियों का अंतिम संस्कार दिल्ली से बाहर हुआ और उनके स्मारक कहां हैं?
– वीपी सिंह का अंतिम संस्कार प्रयागराज में हुआ और उनका स्मारक भी वहां संगम के किनारे है.
– पी.वी. नरसिम्हा राव का अंतिम संस्कार हैदराबाद में हुआ, उनका स्मारक भी वहीं है.
– मोरारजी देसाई – उनका अंतिम संस्कार मुंबई में हुआ लेकिन स्मारक अहमदाबाद में है
– चरण सिंह – उनका अंतिम संस्कार बागपत में हुआ लेकिन स्मारक दिल्ली में ही है
– चंद्रशेखर सिंह – उनका अंतिम संस्कार बलिया में हुआ लेकिन स्मारक दिल्ली में है
सवाल – दिल्ली में क्यों बनाए जाते हैं पूर्व प्रधानमंत्रियों के स्मारक?
– इसकी मुख्य वजह है कि दिल्ली भारत की राजधानी है. देश के राजनीतिक केंद्र के रूप में जाना जाता है. दिल्ली में प्रधानमंत्री का कार्यालय और संसद भवन भी है. लिहाजा देश के नेताओं के स्मारक को राजधानी में रखना एक परंपरा सी बन गई है.
सवाल – क्यों कुछ प्रधानमंत्रियों के स्मारक दिल्ली से बाहर हैं?
– कई बार परिवार की इच्छा होती है कि प्रियजन का अंतिम संस्कार और स्मारक उनके जन्मस्थान या किसी अन्य पवित्र स्थान पर हो. कभी कभी राजनीतिक कारणों से भी स्मारक को दिल्ली से बाहर बनाया जाता है.
सवाल – स्मारक के लिए जगह तय करने और इसे आवंटित करने का काम कौन करता है?
– जगह तय करने का काम गृह मंत्रालय, पीएमओ के साथ मिलकर आवास और शहरी विकास मंत्रालय द्वारा किया जाता है. फिर इसकी आवंटन प्रक्रिया आवास और शहरी विकास मंत्रालय (MoHUA) द्वारा की जाती है।
सवाल – कौन बनाता है इसकी डिजाइन?
– स्मारक का डिजाइन तैयार करने के लिए एक राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता आयोजित की जाती है. स्मारक के डिजाइन और निर्माण की निगरानी के लिए विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया जाता है. स्मारक निर्माण के लिए पर्यावरण संबंधी आवश्यक अनुमतियां प्राप्त की जाती हैं.
सवाल – इसके लिए पैसा कहां से आता है. कौन खर्च करता है इस पर धन?
– स्मारक निर्माण का खर्च आमतौर पर केंद्र सरकार के बजट से वहन किया जाता है. कभी-कभी निजी दान या राजनीतिक दलों के सहयोग से भी निधि प्राप्त की जाती है.
सवाल – निर्माण की निगरानी और गुणवत्ता पर कैसे नजर रखी जाती है?
– निर्माण कार्यों के लिए केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD) या अन्य सरकारी एजेंसियों को नियुक्त किया जाता है. संबंधित समिति निर्माण की गुणवत्ता और समय सीमा पर नज़र रखती है.
सवाल – स्मारक बनने के बाद क्या होता है?
– स्मारक का उद्घाटन आमतौर पर प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, या अन्य प्रमुख नेताओं द्वारा किया जाता है. इसके जरिए स्मारक को औपचारिक रूप से दिवंगत प्रधानमंत्री की स्मृति को समर्पित किया जाता है.
सवाल – इसका रखरखाव, प्रबंधन और संचालन कौन करता है?
– स्मारक का प्रबंधन संस्कृति मंत्रालय, राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (NMA), या अन्य संस्थाओं द्वारा किया जाता है. स्मारक से संबंधित संग्रहालय, पुस्तकालय, या अन्य गतिविधियों के माध्यम से आय उत्पन्न की जाती है. हालांकि केंद्र सरकार भी इसके लिए बजट एलोकेट करती है. अगर स्मारक राज्यों में है तो राज्य सरकारें भी इसमें सहयोग दे सकती हैं. सार्वजनिक दान या कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के तहत योगदान से भी वित्तीय मदद मिलती है.
– राजघाट (महात्मा गांधी): केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित और प्रबंधित
– शक्ति स्थल (इंदिरा गांधी): दिल्ली में संस्कृति मंत्रालय द्वारा रखरखाव
– सदैव अटल (अटल बिहारी वाजपेयी): दिल्ली में संस्कृति मंत्रालय द्वारा रखरखाव
ये प्रक्रिया आमतौर पर सरकारी दिशा-निर्देशों और प्रोटोकॉल के तहत होती है.
सवाल – ये स्मारक बनने में आमतौर पर कितना समय लगता है?
– ये स्मारक आमतौर पर एक साल में तैयार हो जाते हैं. लेकिन कभी कभी ज्यादा समय भी लगता है. राजीव गांधी का स्मारक बनने में करीब दो साल लग गए थे. महात्मा गांधी का राजघाट तीन सालों में बना था.
Tags: Dr. manmohan singh, Manmohan singh, Prime Minister of India
FIRST PUBLISHED :
December 31, 2024, 14:12 IST