बीते दो सालों में दुनिया के कई देशों ने गर्मी के रिकॉर्ड तोड़े हैं. 2023 के बाद 2024 भी अब तक का सबसे गर्म साल हो जाना, नए साल के आने से ही सूर्खियों में है. पिछले हफ्ते ही देश की क्लाइमेट चेंज रिपोर्ट जमा की गई है.इसके मुताबिक भारत के हिमालय में जो ग्लेशियर हैं, हाल के दशकों में उनके “पीछे हटने की रफ्तार” तेजी से बढ़ गई है. आखिर ऐसा क्यों कहा गया है और ऐसा क्या हुआ है, जो रिपोर्ट में यह कहना पड़ रहा है? रिपोर्ट में भारत के बारे में और क्या क्या कहा गया है?
पीछे हट रहे हैं ग्लेशियर?
आजकल के हालात को देखते हुए हिमालय के ग्लेशियर लंबाई और क्षेत्रफल दोनों में कम और पतले हो रहे है, लेकिन रिपोर्ट में पाया गया है कि इसकी दर जगह और जलवायु हालात के मुताबिक अलग अलग ही रहती है और बदलती भी है. रिपोर्ट के अनुसार भारतीय ग्लेशियर तेजी से पीछे हट रहे हैं. सरल शब्दों में इसका मतलब ये है कि ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. लेकिन इन शब्दों का एक खास मतलब भी है जिसकी जलवायु विज्ञान में बहुत अहमियत मानी जाती है. इसके जरिए एक साथ कई बातों का पता भी चलता है.
क्या है ग्लेशियरों के पीछे हटने का मतलब
ग्लेशियर की जीभ या नथुने उसका वह सबसे निचला स्थान हैं जो सबसे पहले पिघलता है. ग्लेशियर, जिसे हिमनद भी कहा जाता है, में बर्फ बहुत ही धीमी गति से नदी के बहाव दिशा में ही बहती है. लेकिन रिपोर्ट कहा गया है कि ग्लेशियर की यह जीभ या नथुना पीछे खिसकने लगा है. यानी बर्फ अब ज्यादा तेजी से पिघलने लगी है.
हिमालय में ग्लेशियर पिघलने के शुरुआती बिंदु पीछे की ओर खिसकने लगे हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
आंकड़े जुटाने की दिक्कत
रिपोर्ट में बताया गया है कि वैसे तो हिमालय के क्षेत्रों में भूस्खलन (landslides) आम बात है, फिर इस चुनौती के साथ कठिन भूभाग की वजह से बर्फ की चादर की मोटाई को नापना कठिन रहा है इसकी वजह से आंकड़े सीमित है. अध्ययन में पाया गया है कि मिट्टी के प्रकार, वनस्पति, और मिट्टी की नमी भी ग्लेशियर के सिमटने पर असर डालते हैं.
सिमटने लगी है बर्फ की चादर
भारत की जमा की गई रिपोर्ट भारतीय मौसम विभाग के जर्नल मौसम (MAUSAM) में प्रकाशित एक अध्ययन के आधार पर है जिसने पाया है कि 1999 से लेकर 2019 के बीच में हिमालय के इलाकों में तपामान में काफी उतार चढ़ाव हुआ जिसका असर पूरी पृथ्वी के जमे हुए पानी वाले हिस्से पर हुआ है. इस हिस्से को क्रायोस्फियर कहते हैं. लेकिन इसके सिमटने का सटीक मापन तय नहीं है.
रिपोर्ट में भारतीय मानसून के पैटर्न के बदलाव की भी जानकारी दी गई है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
भारत में जलवायु परिवर्तन का असर
संयुक्त राष्ट्र के यूएन फ्रेमवर्क कन्वेन्शन ऑन क्लाइमेट चेंज की बाएनियल रिपोर्ट में बताया जाता है कि जलवायु परिवर्तन का भारत पर कैसा असर हो रहा है. इसमें भारत की जमा की हुई रिपोर्ट भी शामिल हैं. अपडेट रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन का भारत में कृषि और मानसून पर कैसा असर यह खास तौर से बताया गया है. इसके मुताबिक इसमें यह भी बताया गया है कि उत्तर पश्चिम और मध्य भारत में 2022 का अप्रैल का महीना बीते 122 सालों में सबसे गर्म था जिसका औसत तपामान 35.9 डिग्री सेल्सियस से 37.8 डिग्री सेल्सियस था जिससे गेहूं, मक्का आदि सभी फसलों में उल्लेखनीय गिरावट देखने को मिली थी.
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इसके अलावा डेयरी और पशुपालन उद्योग में भी गिरावट देखने को मिली है. वहीं मानसून के दौरान भी बारिश के असामान्य पैटर्न देखने को मिले हैं. उत्तर पूर्वी भारत, पूर्वी राजस्थान के अलावा आंध्रप्रदेश, गुजरात, ओडिशा, पश्चिमी बंगाल तटीय इलाकों में, भारी बारिश की घटनाएं ज्यादा और बार बार होने लगी हैं. दक्षिणी तट के बहुत से इलाकों में मानसून के मौसम के दिन बढ़ गए हैं. जबकि कई अन्य राज्यों में उल्टा हुआ है.
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FIRST PUBLISHED :
January 6, 2025, 14:21 IST