Last Updated:July 16, 2025, 12:00 IST
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई कानून की मदद करने से रोकने के लिए डर फैलाता है, तो वो आतंकवादी ही कहलाएगा. फिर भले ही उसपर कोई आतंकवाद कानून लागू न हुआ हो.

सुप्रीम कोर्ट
हाइलाइट्स
सेना के मुखबिर को गोली मारने वाले शख्स को कोर्ट ने आतंकवादी माना.आरोपी ने IPC के तहत सजा मिलने पर रिहाई की मांग की थी.कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर की रिहाई नीति को चुनौती देने की अनुमति दी.आतंकवाद सिर्फ बम धमाके या बंदूक चलाने तक ही सीमित नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने अब इसपर बड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई किसी को इसलिए मार दे ताकि बाकी लोग डर जाएं और कानून की मदद न करें, तो ये भी आतंकवाद ही है. भले ही उसपर कोई आतंक विरोधी कानून ना लगा हो.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, जम्मू-कश्मीर में एक केस हुआ था, जिसमें तीन लोगों को AK-47 से गोली मार दी गई थी. इन तीन में से एक आदमी सेना का मुखबिर, यानि कि सेना को जानकारी देने वाला था. इस हत्याकांड में शामिल एक आदमी, गुलाम मोहम्मद भट, पिछले 27 सालों से जेल में है. अब उसने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई कि उसे छोड़ा जाए, क्योंकि उसे आतंकवाद कानून (जैसे TADA या UAPA) के तहत सजा नहीं हुई, बल्कि सिर्फ हत्या के लिए जेल भेजा गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- डर फैलाना ही तो आतंक है
गुलाम मोहम्मद भट के वकील ने कहा कि चूंकि उनके मुवक्किल को आतंकवाद से जुड़े कानून के तहत दोषी नहीं ठहराया गया, इसलिए उसे रिहा किया जाना चाहिए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को सीधे तौर पर खारिज कर दिया.
कोर्ट ने कहा कि अगर किसी को इसलिए मारा गया ताकि लोग डर जाएं और पुलिस या सेना से कुछ न कहें, तो ये डर फैलाना हुआ. यही आतंकवाद है. ये सोचकर लोगों में खौफ भरना कि अगर उन्होंने कुछ बोला तो उनकी भी जान जा सकती है, ये किसी भी समाज के लिए बहुत खतरनाक है.
हथियार मिले तो कैसे कह सकते ‘सिर्फ हत्या’ थी?
जम्मू-कश्मीर सरकार की तरफ से कोर्ट में बताया गया कि वारदात की जगह से सिर्फ बंदूक ही नहीं, बल्कि ऐसे हथियार भी मिले थे जिनसे ग्रेनेड फेंके जा सकते हैं. यानी ये कोई मामूली झगड़ा या गुस्से में की गई हत्या नहीं थी, बल्कि पूरी प्लानिंग के साथ खौफ पैदा करने के इरादे से किया गया हमला था.
कोर्ट में चुनौती देने की इजाजत
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी के वकील को ये तो इजाजत दे दी कि वे जम्मू-कश्मीर की “रिहाई की नीति” (Remission Policy) को कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं. लेकिन कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया कि अगर कोई काम डर और दहशत फैलाने के लिए किया गया है, तो उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता और ऐसे अपराधियों को रिहा करने की बात भी नहीं होनी चाहिए.
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New Delhi,Delhi