Supreme Court Collegium: सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम हाई कोर्ट जजों की नियुक्ति में भाई-भतीजावाद को दूर करने के लिए एक पुरानी प्रथा को खत्म कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की कोशिश है कि हाई कोर्ट के जजों की नियुक्तियों में अधिक पारदर्शिता लायी जाए. इसके लिए वो न्यायाधीशों के करीबी रिश्तेदारों को हाई कोर्ट के जजों के रूप में रिकमंड करने की प्रथा को समाप्त कर सकता है.
न्यूज-18 इंग्लिश की एक रिपोर्ट के मुताबिक पता चला है कि कॉलेजियम हाई कोर्टों को यह निर्देश देने पर विचार कर सकता है कि वे ऐसे उम्मीदवारों की सिफारिश न करें जिनके माता-पिता या निकट संबंधी सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रहे हों.
कॉलेजियम ने क्यों लिया यह निर्णय?
सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने पिछले माह के अंत में बैठक की और राजस्थान, उत्तराखंड, बॉम्बे और इलाहाबाद हाई कोर्ट में न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए केंद्र को छह नामों की सिफारिश की. हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव से जुड़े विवाद के बाद कॉलेजियम ने सख्त फैसले करने पर जोर दिया है. जस्टिस यादव ने दिसंबर में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के एक कार्यक्रम में विवादास्पद टिप्पणी की थी. जस्टिस यादव 17 दिसंबर को इस विवाद पर अपना पक्ष रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के सामने पेश हुए थे. शीर्ष अदालत ने उनके बयानों का संज्ञान लिया और इस मुद्दे पर इलाहाबाद हाई कोर्ट से रिपोर्ट मांगी थी.
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भाई-भतीजावाद पर क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को पता है कि कुछ योग्य उम्मीदवार, जो सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जजों के करीबी रिश्तेदार हैं वे उसकी नीति का शिकार हो सकते हैं. लेकिन इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा क्योंकि वे सफल वकील बनकर पैसा और शोहरत कमा सकते हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, चयन प्रक्रिया से उनके बाहर होने से पहली पीढ़ी के कई योग्य वकीलों को अदालतों में प्रवेश करने का मौका मिलेगा. जिससे सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में विविध समुदायों का प्रतिनिधित्व हो सकेगा.
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चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत वाले कॉलेजियम ने हाई कोर्ट के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए हाई कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित वकीलों और न्यायिक अधिकारियों के साथ बातचीत शुरू कर दी है. इससे पहले, शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा प्रस्तुत वकीलों और न्यायिक अधिकारियों के बायोडाटा, उनकी खुफिया रिपोर्टों, साथ ही संबंधित राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों की राय की जांच की थी.
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सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम क्या है?
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम प्रणाली न्यायाधीशों की नियुक्ति और ट्रांसफर का फैसला करती है. इस फोरम में सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश भी शामिल होते हैं. कॉलेजियम हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों/न्यायाधीशों को सुप्रीम कोर्ट में, हाई कोर्ट के न्यायाधीशों को चीफ जस्टिस और अन्य न्यायाधीशों के रूप में प्रमोशन करने का निर्णय लेता है. मतभेद की स्थिति में बहुमत मान्य होता है. हाई कोर्ट के कॉलेजियम में दो सर्वोच्च रैंक वाले दो न्यायाधीश शामिल होते हैं. यह कॉलेजियम हाई कोर्ट के पदों के लिए उम्मीदवारों का सुझाव देता है. चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों का कॉलेजियम अंतिम निर्णय लेता है.
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क्यों होती है कॉलेजियम की आलोचना?
केंद्र सरकार ने कॉलेजियम सिस्टम को स्वीकार नहीं किया है. इसने बड़ी संख्या में न्यायिक रिक्तियों के पीछे मौजूदा सिस्टम के अपारदर्शी होने की आलोचना की है. एनडीए सरकार ने 2003 में राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एनजेसी) के गठन के लिए लोकसभा में संविधान (98वां संशोधन) विधेयक पेश किया था. उसके अनुसार एनजेसी की अध्यक्षता चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया करेंगे, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश सदस्य होंगे. केंद्रीय कानून मंत्री इसके सदस्य होंगे, साथ ही राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह से नॉमिनेट एक प्रतिष्ठित नागरिक भी इसका सदस्य होगा. एनजेसी न्यायाधीशों की नियुक्ति और ट्रांसफर का निर्णय लेगा. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों सहित न्यायाधीशों द्वारा भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करेगा. 2014 में एनडीए सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम पेश किया, लेकिन 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे पलट दिया.
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कॉलेजियम के खिलाफ याचिका
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति जताई है. याचिका में नियुक्ति के लिए एक नए सिस्टम की मांग की गई है. इस मामले को वकील मैथ्यूज जे नेदुम्परा ने पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ के सामने प्रस्तुत किया. याचिका में नेदुम्परा और अन्य ने अदालत से मांग की कि कॉलेजियम को भाई-भतीजावाद और पक्षपात का पर्याय घोषित किया जाए. क्योंकि इसके परिणामस्वरूप “न्यायाधीशों के चयन और नियुक्ति में उचित अवसर से वंचित किया जा रहा है.”
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FIRST PUBLISHED :
January 4, 2025, 12:08 IST