धर्माराम गांव में वानर देवता की पूजा एक अनोखी परंपरा है. यह गांव, जो निर्मल जिले के लक्ष्मणचंदा मंडल में स्थित है, में ग्रामीणों द्वारा बंदर को भगवान के रूप में पूजा जाता है. यहाँ के लोग मानते हैं कि वानर देवता उनकी इच्छाओं को पूरा करते हैं, और हर साल भक्त इस स्थान पर आकर पूजा करते हैं.
वानर देवता का मंदिर और उसका इतिहास
वानर देवता का मंदिर धर्माराम में दशकों पुराना है. इस मंदिर की स्थापना 1978 में हुई थी. ग्रामीणों का कहना है कि पहले गांव में लोग कहानियाँ और पौराणिक कथाएँ सुनकर मनोरंजन करते थे. एक दिन जंगल से एक बंदर गांव में आया और इन कहानियों को ध्यान से सुनने लगा. धीरे-धीरे वह बंदर गांव में रहने लगा और अपनी हरकतों से ग्रामीणों को परेशान करने लगा.
बंदर की मृत्यु और पूजा का आरंभ
ग्रामीणों ने बंदर को गांव से बाहर भगाने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. अंत में, सभी ने मिलकर उसे मार डाला और गांव के बाहर दफना दिया. हालांकि, कुछ समय बाद, जब गांव वाले बंदर की कब्र पर गए, तो उन्होंने उसे बाहर निकाला और उसकी पूजा करना शुरू कर दिया. यह सब देखकर गांव वालों ने तय किया कि अब इस बंदर को भगवान के रूप में पूजा जाएगा.
मंदिर का निर्माण और भक्तों की संख्या में वृद्धि
इसके बाद, गांव वालों ने चंदा इकट्ठा किया और वहां एक मंदिर बनवाया. इस मंदिर में बंदर की मूर्ति के साथ-साथ शिव लिंगम और नंदी की मूर्तियाँ भी स्थापित की गईं. जैसे-जैसे भक्तों की संख्या बढ़ी, वहां स्नानघर और कमरे भी बनाए गए. अब यह मंदिर एक प्रमुख धार्मिक स्थल बन चुका है.
हर साल होने वाला मेला और उत्सव
हर साल दिसंबर महीने में इस मंदिर में मेला लगता है. इस मेले के दौरान वानर देवता का अभिषेक किया जाता है और रथोत्सव का आयोजन भी होता है. आदिलाबाद, निर्मल, मंचिरयाला, करीमनगर जिलों और पड़ोसी महाराष्ट्र से भी भक्त इस उत्सव में शामिल होने के लिए आते हैं. यह एक ऐसा स्थान बन चुका है जहाँ भक्त न केवल त्योहारों के दौरान, बल्कि हर समय वानर देवता की पूजा करने के लिए आते हैं.
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FIRST PUBLISHED :
January 6, 2025, 15:31 IST