Last Updated:July 29, 2025, 16:34 IST
Shimla Agreement : गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में सैम मानेकशॉ के उस कथित बयान का जिक्र किया कि शिमला समझौते में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार भुट्टो ने इंदिरा गांधी को 'मूर्ख' बनाया था.

हाइलाइट्स
अमित शाह ने शिमला समझौते पर सैम मानेकशॉ का बयान पेश कियाशाह ने इंदिरा गांधी पर पाकिस्तान को रियायत देने का आरोप लगायाशिमला समझौते में युद्धबंदियों की वापसी और LoC का निर्धारण हुआShimla Agreement: गृहमंत्री अमित शाह ने मंगलवार को लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा में हिस्सा लिया. अमित शाह और भाजपा के अन्य नेता अक्सर कांग्रेस और विशेष रूप से इंदिरा गांधी पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि उन्होंने शिमला समझौते में पाकिस्तान को रियायतें दीं और 1971 की जीत का पूरा फायदा नहीं उठाया. अमित शाह ने इस संदर्भ में फील्ड मॉर्शल सैम मानेकशॉ के कथित बयान को पेश किया. अमित शाह ने यह दावा कि सैम मानेकशॉ ने कहा था कि शिमला समझौते में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने इंदिरा गांधी को ‘मूर्ख’ बनाया.
सैम मानेकशॉ का मानना था कि भुट्टो ने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की भारी सैन्य हार के बावजूद एक अनुकूल समझौता करके भारत को मात दे दी थी. भुट्टो ने युद्ध के बाद की स्थिति का कुशलतापूर्वक अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया. उन्होंने कश्मीर जैसे प्रमुख मुद्दों पर कोई खास रियायत दिए बिना भारत से बड़ी संख्या में पाकिस्तानी युद्धबंदियों को वापस करवा लिया.
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क्या था शिमला समझौता
यह समझौता 2 जुलाई 1972 को भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुआ था. यह 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद हुआ था, जिसमें भारत ने पाकिस्तान को हराया था और बांग्लादेश का जन्म हुआ था. इस समझौते का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाना, शांति स्थापित करना और भविष्य के विवादों को द्विपक्षीय बातचीत से हल करना था. समझौते में युद्धबंदियों की वापसी, नियंत्रण रेखा (LoC) का निर्धारण (1971 की युद्धविराम रेखा को LoC में बदला गया) और द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने के प्रावधान शामिल थे.
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मानेकशॉ का कथित बयान
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने 1971 के युद्ध में भारतीय सेना का नेतृत्व किया था. वह अपनी स्पष्टवादिता और बेबाकी के लिए जाने जाते थे. उनके बारे में यह बात कही जाती है कि उन्होंने शिमला समझौते के परिणामों पर असंतोष व्यक्त किया था. कुछ लोग उनके हवाले से कहते हैं कि भुट्टो ने इंदिरा गांधी को ‘मूर्ख’ बनाया था. या दूसरे शब्दों मे कहा जाए तो भारत ने युद्ध में मिले सैन्य लाभ को राजनयिक वार्ता की मेज पर गंवा दिया. हालांकि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मानेकशॉ के इस खास बयान का कोई सीधा और सत्यापित लिखित रिकॉर्ड या सार्वजनिक भाषण का दस्तावेज उपलब्ध नहीं है. जहां उन्होंने इन सटीक शब्दों का उपयोग किया हो. इस बयान का जिक्र अक्सर अनौपचारिक बातचीत, जीवनी या मौखिक इतिहास के संदर्भ में किया जाता है.
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मजबूत स्थिति में होने के बाद लाभ गंवाया
कई रक्षा विशेषज्ञ और इतिहासकार मानते हैं कि भारत ने 93,000 पाकिस्तानी युद्धबंदियों को रिहा करने और बिना किसी बड़ी क्षेत्रीय रियायत के पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से अपनी सेना वापस बुलाने का फैसला किया. जबकि उसके पास एक मजबूत बातचीत की स्थिति थी. इस दृष्टिकोण से मानेकशॉ जैसे सैन्य नेताओं को यह लग सकता था कि राजनयिक स्तर पर अधिक लाभ लिया जा सकता था. यह सच है कि 1971 के युद्ध में भारत ने प्रचंड जीत के बाद एक मजबूत स्थिति में होते हुए भी कुछ महत्वपूर्ण रियायतें दीं. मानेकशॉ के इस कथित बयान को इसी भावना की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है, जिसे बाद में राजनीतिक बहस में भी इस्तेमाल किया जाता रहा है. यह निश्चित रूप से कहना मुश्किल है कि सैम मानेकशॉ ने ठीक इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल किया था कि ‘भुट्टो ने इंदिरा गांधी को ‘मूर्ख’ बनाया.
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शाह ने कांग्रेस-गांधी परिवार पर किया कटाक्ष
अमित शाह ने लोकसभा में अपने भाषण में इंदिरा गांधी और सरदार पटेल का उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि सरदार पटेल के अथक परिश्रम की वजह से भारत एकजुट होकर मजबूत लोकतंत्र बना. उन्होंने सरदार पटेल को लोकतंत्र के सफल होने में अहम भूमिका निभाने वाला बताया. साथ ही अमित शाह ने कहा कि इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े किए, जो एक बहुत बड़ी जीत थी जिस पर भारत को गर्व करना चाहिए. उन्होंने बताया कि जंग के बाद शिमला समझौते में पीओके मांगना ही भूल गए और 15 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन भी दे दी गई. उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान के 195 अधिकारियों पर युद्ध अपराध के मुकदमे चलने थे, लेकिन भुट्टो ने उन्हें बचा लिया. अमित शाह ने कांग्रेस और गांधी परिवार को पाकिस्तान और चीन के प्रति नरम रुख के लिए कटाक्ष भी किया.
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मानेकशॉ और 1971 का युद्ध
1971 के शुरुआती महीनों में पूर्वी पाकिस्तान जिसे अब बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है में हालात बिगड़ते ही युद्ध के बादल मंडराने लगे थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चाहती थीं कि ढाका में एक लोकप्रिय निर्वाचित सरकार स्थापित करने के लिए भारतीय सेना युद्ध में शामिल हो. हालांकि, मानेकशॉ ने जल्दबाजी में कोई कदम उठाने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि उनके कवच को आगे बढ़ाने में समय लगेगा और मानसून के आगमन से नदियां सागर में बदल जाएंगी. उन्होंने यह भी कहा कि चीन को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. उन्होंने तैयारी के लिए छह-सात महीने का समय मांगा, जिसके दौरान उन्होंने एक व्यापक रणनीति तैयार की. इसके बाद उसी वर्ष दिसंबर में मानेकशॉ के नेतृत्व में भारतीय सेना ने अंततः युद्ध में प्रवेश किया और पाकिस्तानी सेना के विरुद्ध विजय प्राप्त की. केवल एक पखवाड़े तक चले इस युद्ध में 90,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया गया और पाकिस्तान के आत्मसमर्पण तथा एक नए राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश के जन्म के साथ इसका अंत हुआ.
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