हाइलाइट्स
ग्रिगोरियन कैलेंडर रोमन साम्राज्य से आया है.ब्रिटिश राज ने इसे भारत में 1752 में लागू किया.1582 में जूलियन कैलेंडर से 11 दिन हटाकर इसे बनाया गया.
क्या आपको मालूम है कि जो कैलेंडर हमारे यहां माना जाता है. जिस कैलेंडर के जरिए देश में सबकुछ होता है, वो विदेशी कैलेंडर है, इसे अंग्रेजी कैलेंडर भी कहते हैं. इसे ब्रिटिश राज ने यहां लागू किया. इस कैलेंडर को जब बनाया गया था तो इसमें 11 दिन ही गायब कर दिए गए. जिस पर हर कोई हैरान रह गया.
वैसे ये भी सवाल है कि ग्रिगोरियन कैलेंडर कहां से और कैसे आया. आखिर इसमें ऐसा क्या खास है कि जो पूरी दुनिया इसे मानती है. इस कैलेंडर का अपना इतिहास है. आगे हम ये बताएंगे कि इस कैलेंडर से 11 दिन क्यों गायब कर दिए गए.
भारत में ये ग्रिगोरियन कैलेंडर अंग्रेज भारत लेकर आए, 1752 में उन्होंने इसे यहां अपने कामकाज में लागू किया. फिर जैसे जैसे जिन इलाकों पर वो काबिज होते गए, वहां इसे लागू करते चले गए.
ये कैलेंडर अंग्रेजों का भी नहीं है
दुनिया में कैलेंडर का इतिहास बहुत पुराना है. समय समय पर दुनिया के शक्तिशाली शासकों ने अपने अनुसार कैलेंडर चलवाए. उसे दूसरे देशों में फैलाने का प्रयास किया. ग्रिगोरियन कैलेंडर कई बार संशोधित हुआ है. इससे संबंधित पहले कैलेंडर की शुरुआत रोमन साम्राज्य में हुई थी. तब रोमन कैलेंडर बहुत जटिल था. रोम के शासक जूलियस सीजर ने इसमें बदलाव कर जूलियन कैलेंडर चलाया. तो ये कह सकते हैं कि ये कैलेंडर अंग्रेजी कैलेंडर नहीं है बल्कि दुनिया को रोमन साम्राज्य की देन है.
पहले यूरोप में जूलियन कैलेंडर चलता था
अब हम आपको बताएंगे कि कैलेंडर में 11 दिन क्यों गायब किए गए. पहले जूलियन कैलेंडर यूरोप में कई सदियों तक चला. जूलियन कैलेंडर में एक साल 365.25 दिन का था. वास्तव में एक साल 365.24219 दिन होने से इसमें हर एक 128 साल में एक दिन का फर्क होने लगा. 15 शताब्दियों के बाद यह अंतर 11 दिन का हो गया. इस बीच इसके महीनों में भी बदलाव होते रहे पर साल के दिन उतने ही रहे.
ग्रेगोरियन कैलेंडर रोम के पोप ग्रेगोरी 13वें ने चलाया था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
तब कैलेंडर में सीधे 11 दिन गायब हो गए
1582 में रोम के पोप ग्रेगोरी 13वें ने इस कैलेंडर में सुधार किया. जूलियन कैलेंडर की चार अक्टूबर 1582 की तारीख 11 दिन बढ़ा कर 15 अक्टूबर 1582 कर दी. तब से इसी कैलेंडर को ग्रिगोरियन कैलेंडर का नाम मिल गया. 16वीं सदी के बाद से यूरोप से लोग दुनियाभर में जाने लगे, वहां पर उपनिवेशन बनाने लगे. उन्होंने अफ्रीका, एशिया, उत्तर एवं दक्षिण अमेरिका में ग्रिगोरियन कैलेंडर चला दिया.
क्यों गायब हो गए थे 11 दिन
यह घटना 1582 में हुई थी, जब पोप ग्रेगरी XIII ने जूलियन कैलेंडर से ग्रिगोरियन कैलेंडर में परिवर्तन का आदेश दिया. उस समय, जूलियन कैलेंडर और सौर वर्ष के बीच लगभग 10 दिनों का अंतर आ गया था. इसे ठीक करने के लिए 4 अक्टूबर 1582 के बाद सीधे 15 अक्टूबर 1582 घोषित कर दिया गया. इस प्रकार, ग्रिगोरियन कैलेंडर अपनाने वाले देशों ने भी इसके 10-11 दिन “गायब” कर दिए.
ये लोगों को सुविधाजनक भी लगा
18वीं और 19वी सदी के आते आते यूरोपीय शक्ति खासतौर से ईसाई धर्म के शासकों का पूरी दुनिया पर वर्चस्व हो गया जिसकी वजह से ग्रिगोरियन कैलेंडर दुनिया के अधिकांश देशों में अलग अलग समय पर अपनाया जा चुका था. 20वीं सदी में दुनिया के देशों का आपस में व्यापार बढ़ता गया और इसके लिए उन्हें ग्रिगोरियन कैलेंडर अपनाना सुविधाजनक लगने लगा.
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भारत में ब्रिटेन ने यह कैलेंडर 1752 में लागू किया था. तब से सभी सरकारी कामकाज ग्रिगोरियन कैलेंडर में ही हो रहे हैं. वहीं आजादी के समय भी कैलेंडर को जारी रखने या उसकी जगह हिंदू कैलेंडर को अपनाए जाने पर गहन मंथन हुआ. लेकिन अंततः भारत सरकार ने ग्रिगोरियन के साथ- हिंदू विक्रम संवत को भी अपना लिया, पर सरकारी कामकाज ग्रिगोरियन कैलेंडर के अनुसार ही होते हैं.
ग्रिगोरियन कैलेंडर में भी कमियां हैं
1. लीप वर्ष की जटिलता
ग्रिगोरियन कैलेंडर में 365 दिन होते हैं, लेकिन पृथ्वी का एक वर्ष करीब 365.2422 दिन लंबा होता है. इसे संतुलित करने के लिए हर चौथे साल एक दिन (लीप दिन) जोड़ा जाता है. हालांकि यह भी पूरी तरह सटीक नहीं है और छोटे अंतर को संतुलित करने के लिए हर 400 साल में एक लीप वर्ष को हटाना पड़ता है.
2. महीनों की असमान लंबाई
महीनों की लंबाई (28, 30, और 31 दिन) असमान है, जिससे इसे याद रखना और योजनाएं बनाना मुश्किल हो सकता है. यह असमानता कैलेंडर को कम व्यावहारिक बनाती है और इसे ऐतिहासिक कारणों से अपनाया गया है.
3. सप्ताह और महीनों का असंगत संबंध
सप्ताह (7 दिन) और महीने (28-31 दिन) का कोई स्पष्ट मेल नहीं है. इसका मतलब है कि हर महीने के पहले दिन और सप्ताह के दिन (जैसे सोमवार, मंगलवार) का कोई स्थिर संबंध नहीं होता.
4. धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता
ग्रिगोरियन कैलेंडर मुख्य रूप से ईसाई धर्म पर आधारित है. इसका प्रसार यूरोपीय उपनिवेशवाद के दौरान हुआ. यह अन्य धर्मों और संस्कृतियों के कैलेंडरों को कम प्राथमिकता देता है, जैसे इस्लामिक हिजरी कैलेंडर, हिंदू पंचांग और चीनी लूनी-सोलर कैलेंडर. कुछ समुदाय इसे सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता के लिए अपर्याप्त मानते हैं.
5. सौर वर्ष के साथ पूरी तरह मेल नहीं खाना
ग्रिगोरियन कैलेंडर सौर वर्ष (ट्रॉपिकल ईयर) के करीब तो है, लेकिन पूर्ण रूप से मेल नहीं खाता. इससे लंबे समय में छोटे-छोटे अंतर पैदा हो सकते हैं.
6. “शून्य वर्ष” का अभाव
ग्रिगोरियन कैलेंडर में “शून्य वर्ष” नहीं है. यह ईसा पूर्व (BC) और ईसा पश्चात (AD) के बीच की गणना में कठिनाई पैदा करता है. खगोलशास्त्री और गणितज्ञ अक्सर “शून्य वर्ष” का उपयोग करते हैं, जिससे यह एक मानकीकरण समस्या बनती है.
इसकी कमियों के लिए क्या समाधान सुझाया जाता है
स्थिर कैलेंडर: हर महीने को समान दिनों (30 दिन) में बांटने का प्रस्ताव.
स्थायी सप्ताह प्रारूप: हर साल एक ही दिन से शुरू हो.
वैज्ञानिक कैलेंडर: सौर या खगोलीय घटनाओं पर आधारित कैलेंडर अपनाने का सुझाव.
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FIRST PUBLISHED :
January 1, 2025, 16:13 IST