नीतीश को लालू का ऑफर, मीसा का वेलकम और तेजस्वी की 'ना'! सियासी सीन को समझिये

13 hours ago

Last Updated:January 14, 2025, 16:02 IST

Bihar Politics News: सत्ता की चाहत...उसकी छटपटाहट और उसे न प्राप्त कर पाने का मलाल, क्या होता है... यह बिहार में इन दिनों खूब दिख रहा है. राजद की ओर से धड़ाधड़ ऑफर के बीच चढ़ता सियासी तापमान विपक्ष की आशा भरी उम्मीद को पंख...और पढ़ें

हाइलाइट्स

लालू यादव की बेटी मीसा भारती के बयान से बढ़ी राजनीतिक सरगर्मी.नीतीश कुमार का स्वागत किये जाने की बात को लेकर राजनीति गरमाई.नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द घूमती राजनीति में दांव-पेंच को समझना जरूरी.

पटना. लालू प्रसाद यादव की बड़ी बेटी और राज्यसभा सांसद मीसा भारती ने मकर संक्रांति के अवसर पर बिहार की राजनीति को लेकर बड़ा बयान देते हुए कहा कि आज से नई शुरुआत हो रही है, नीतीश कुमार हमारे गार्जियन हैं. उनके लिए हमारे दरवाजे हमेशा खुले हुए हैं. मीसा भारती ने सीएम नीतीश कुमार के एक बार फिर महागठबंधन में शामिल होने की लेकर साफ शब्दों में कहा कि-राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं. नीतीश जी जब भी आना चाहें उनका स्वागत है. उनके लिए दरवाजा हमेशा खुला हुआ है, क्योंकि परिवार के सदस्य के लिए आमंत्रण की जरूरत नहीं होती. एक दिन पहले ही तेज प्रताप यादव ने भी इसी तरह का बयान दिया था जिसके बाद से ही बिहार की राजनीति में कयासबाजियां फिर से तेज हो गई हैं.

बता दें कि सबसे पहले राजद के प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव और विधायक भाई वीरेंद्र के बयान आए थे. इसके बाद स्वयं राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने खुला ऑफर दे डाला था. लेकिन, इस पर नीतीश कुमार की खामोशी बनी रही. लेकिन, उस दौरान गौर करने लायक बात थी कि तेजस्वी यादव के बोल भी नीतीश कुमार को लेकर नर्म पड़ गए थे. इसी बीच फिर नीतीश कुमार का महागठबंधन में रहने से इनकार और एनडीए में ही बने रहने का इकरार वाला बयान आ गया. इसके बाद तेजस्वी यादव की ओर से भी ‘ना’ हो गई और वह फिर से नीतीश कुमार पर हमलावर होते दिखे.

आरजेडी के अच्छे दिन आने वाले हैं?
बिहार के इस सियासी सीन को संक्षेप में समझें वर्तमान राजनीति की यही कहानी है. अब एक बार फिर इस कहानी में टर्न और ट्विस्ट आता तब दिखा मकर संक्रांति से एक दिन पहले तेजप्रताप यादव और आज मीसा भारती ने का बयान आया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए राजद के दरवाजे खुला होने की बात खुलेआम कही गई. यह बात इसलिए भी अधिक सुर्खियों में आ गई क्योंकि हिंदू संस्कृति के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन से ही शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है. कहते हैं कि इसके बाद लग्न और मुहूर्त सही हो जाता है और सब अच्छा-अच्छा करने की शुरुआत हो जाती है. ऐसे में सवाल है कि बिहार की राजनीति में भी विपक्ष (आरजेडी) के लिए अच्छे दिन आने वाले हैं?

समझिये राजनीति की इस कहानी को
बीते दिनों के बयानों पर गौर करें और प्रदेश की चढ़ती-उतरती राजनीति पर का विश्लेषण करें तो फिलहाल इसमें सरगर्मी तो दिख रही है, लेकिन ठहरे हुए पानी में पत्थर मारने जैसी हलचल अभी नहीं दिख रही. इसकी एक बानगी तब भी दिखी जब मीसा भारती के बयान से इतर मकर संक्रांति के ही दिन जिस तरह से एनडीए के नेताओं ने जदयू कार्यालय में एकजुटता दिखाई और भोज पर एक साथ बैठे. यही नहीं एक स्वर में जेडीयू, बीजेपी, एलजेपी और हम के प्रदेश अध्यक्षों ने एनडीए की जीत का दावा किया और सीएम नीतीश कुमार को फिर से मुख्यमंत्री बनाने के लक्ष्य का ऐलान भी किया. जाहिर है बिहार की राजनीति की कहानी फिलहाल की यही स्थिति कमोबेश बयां कर जाती है.

जो बाहर दिखे वही अंदर भी हो जरूरी नहीं
इसके साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का चिराग पासवान की पार्टी दफ्तर जाना, लालू यादव के ऑफर के बाद भी नीतीश कुमार का राबड़ी देवी के आवास पर नहीं जाना. पशुपति कुमार पार के भोज में भी सीएम नीतीश कुमार का नहीं जाना और जदयू कार्यालय में एनडीए के नेताओं का जमावड़ा, फिर टारगेट यह कि- 2025… फिर से नीतीश. निश्चित तौर पर बिहार की राजनीति की कहानी को एक किनारे जरूर ले आ रही है. लेकिन, क्या राजनीति इतनी आसान चीज है… जो बाहर से दिखता है वही अंदर भी होता है?

राजनीति में नये मोड़ की संभावना की खोज
दरअसल, निगाहें अब 18 जनवरी को राष्ट्रीय जनता दल की बड़ी बैठक पर टिक गई है जिस दिन लालू प्रसाद यादव की अध्यक्षता में राजद के बड़े नेता से लेकर छोटे कार्यकर्ता तक पटना में होंगे. इसी दिन राहुल गांधी की पटना की धरती पर मौजूदगी को बिहार की राजनीति में नए मोड़ की संभावनाओं से जोड़कर देखा जा रहा है. यहां ध्यान देने की बात है कि अभी भी नीतीश कुमार पर तेजस्वी यादव सीधा हमला बोलने से बच रहे हैं और सीएम नीतीश के इर्द-गिर्द के नेताओं पर उनका निशाना अधिक रहता है.

नीतीश के लिए एनडीए छोड़ना आसान नहीं
हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि बिहार की सियासत में आपको जो भी बातें और बयान देखने -सुनने को मिल रहे हैं, वह आरजेडी सोची समझी रणनीति का हिस्सा है. आरजेडी नीतीश कुमार के प्रति कहीं से भी अपमानजनक व्यवहार करते हुए नहीं दिखना चाहती, क्योंकि यह सीधा वोट बैंक से रिश्ता रखता है. वहीं, नीतीश कुमार को सम्मान देते हुए दिखना हमेशा ही आरजेडी के लिए फायदेमंद साबित होगा. तो नीतीश कुमार से दूर-दूर पास-पास वाली राजनीति चलती रहेगी. वहीं, नीतीश कुमार भी अपने लिए भ्रम की स्थिति बनाए रखेंगे. यहां यह भी बताना जरूरी है कि फिलहाल नीतीश कुमार के लिए एनडीए छोड़कर जाने के हालात भी नहीं दिख रहे.

सियासत सध जाए तो अच्छा वरना अंगूर खट्टा!
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि बिहार में सत्ता गठबंधन और नेतृत्व, दोनों में बदलाव की बातों में बहुत दम नहीं है. इसलिए कि तेजस्वी यादव अब हमेशा चाहेंगे कि मुख्यमंत्री अब वही बनें, लेकिन यह भी सच है कि नीतीश कुमार उनको बनाएंगे नहीं. बड़ी बात यह भी है कि विधानसभा चुनाव इसी वर्ष होने हैं तो सत्ता में आकर वह बहुत अधिक कुछ कर पाएंगे भी  हीं. निश्चित तौर पर तेजस्वी यादव अभी राजनीतिक बदलाव की ओर नहीं देख रहे हैं, लेकिन यह भी हकीकत है कि सत्ता तो सत्ता है, वह चंद महीनों की हो या चंद दिनों की या फिर वर्षों की…सध जाए तो बहुत अच्छा, वरना अंगूर खट्टा …तो इंतजार करिये राजनीति के नये टर्न का!

First Published :

January 14, 2025, 16:02 IST

homebihar

नीतीश को लालू का ऑफर, मीसा का वेलकम और तेजस्वी की 'ना'! सियासी सीन को समझिये

Read Full Article at Source