पहलगाम हमले के बाद भारत के क्या-क्या विकल्प, रिटायर्ड मेजर जनरल ने बताया सबकुछ

4 hours ago

कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला एक बार फिर यह स्पष्ट करता है कि आतंकवाद की जड़ कहीं और नहीं, बल्कि पाकिस्तान की सेना में छिपी है. जब तक भारत पाकिस्तान की सेना को सीधा और सख्त जवाब नहीं देगा, ऐसे हमले थमने वाले नहीं हैं. आतंकवाद की असली फैक्ट्री वही है—और वहीं भारत को पहला प्रहार करना होगा. इसी विषय पर न्यूज़18 से खास बातचीत में मेजर जनरल शशि अस्थाना (सेवानिवृत्त) ने अहम बातों पर रोशनी डाली.

हर आतंकी हमले के पीछे एक ही चेहरा: पाकिस्तानी फौज!

प्रश्न: हालिया हालात और पाक आर्मी चीफ के बयान को आप कैसे देखते हैं?
जवाब: इस हमले में पाकिस्तानी आर्मी की भूमिका बिल्कुल साफ़ नजर आ रही है, इसमें कोई दोराय नहीं कि इसका सीधा लिंक पाकिस्तान की फौज से जुड़ता है. अभी कुछ दिन पहले ही जनरल आसिम मुनीर ने जो बयान दिया था—वो बयान महज़ बयान नहीं था, बल्कि एक तरह से ज़हर घोलने वाला इशारा था. उन्होंने उसमें न सिर्फ हिंदू-मुस्लिम की बात छेड़ी, बल्कि कश्मीर को लेकर भी उकसावेभरी बातें कहीं. पहली बार किसी पाक आर्मी चीफ ने इस तरह की भाषा इस्तेमाल की है—तो साफ है कि ये सब कुछ प्लान के तहत ही हो रहा था.

प्रश्न: भारत में अशांति और अपनी नाकामी छुपाना—पाकिस्तान की दोहरी चाल?
जवाब: असल में, इसके दो मकसद हैं—एक तो भारत में सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने की कोशिश, और दूसरा पाकिस्तान के अंदर जो हालात हैं—बलूचिस्तान हो या खैबर पख्तूनख्वा—वहाँ से लोगों का ध्यान भटकाने की चाल. अब पीओके में लोग सवाल कर रहे हैं कि जब भारतीय कश्मीर में तरक्की हो रही है, तो एलओसी के इस पार क्या हो रहा है? तो ये हमला, एक तरह से उन सवालों से बचने और अपनी नाक बचाने की कोशिश भी है.

प्रश्न: क्या ये हमले सिर्फ आतंकियों की साजिश कही जा सकती है?
जवाब: ये हमला सिर्फ एलओसी पार करके नहीं हो सकता. ये जो इलाका है, वहाँ पहुंचने के लिए लोकल सपोर्ट चाहिए, स्लीपर सेल चाहिए, हथियारों की सप्लाई चाहिए. तो ये प्लान सिर्फ कुछ आतंकियों का नहीं हो सकता—ये आईएसआई और पाक आर्मी का पूरा तंत्र काम कर रहा है, और मत भूलिए, आसिम मुनीर पहले खुद आईएसआई चीफ रह चुके हैं.

प्रश्न: क्या कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की ये सोची-समझी चाल है?
जवाब: जब पहले अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आए थे, तब दिल्ली दंगे (2020) हुए थे. अब, जब हाल ही में अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत आए हैं, तो ठीक उसी वक्त पहलगाम में आतंकी हमला हुआ. जब हमारे प्रधानमंत्री सऊदी अरब में थे, पाकिस्तान ने अपनी साजिशें फिर से शुरू कर दीं—हालाँकि बैठक पूरी हो चुकी थी, लेकिन प्रधानमंत्री को तुरंत लौटना पड़ा. अगर हम इन घटनाओं को जोड़कर देखें, तो साफ़ जाहिर होता है कि पाकिस्तान कभी नहीं चाहेगा कि भारत और सऊदी अरब के रिश्ते मजबूत हों. इसी तरह, हर बार जब भी कोई अमेरिकी नेता भारत आता है, पाकिस्तान ऐसे हमलों के ज़रिए यह दिखाने की कोशिश करता है कि कश्मीर सामान्य नहीं है, वहां हालात बिगड़े हुए हैं—और इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया जाए.

प्रश्न: क्या वक्त आ गया है कि भारत सीधे पाकिस्तानी सेना को टारगेट करे? 
जवाब: आतंकियों का फाउंटेनहेड दरअसल पाकिस्तानी फौज है—बाक़ी सब तो महज़ मोहरे हैं जो उसी की चाल चल रहे हैं. पाकिस्तान लगातार भारत द्वारा कश्मीर में किए जा रहे विकास प्रयासों को नाकाम करने की साज़िश करता है, और यही वजह है कि अब वक्त आ गया है कि आतंकवाद और हिंसा के मामलों में सीधे पाकिस्तान की सेना को निशाना बनाया जाए—क्योंकि सारी साजिशों की जड़ वही है.

प्रश्न: क्या सिर्फ सर्जिकल स्ट्राइक से आतंक रुकेगा?
जवाब: हर तरीके से उनकी ताकत को कमज़ोर करना होगा. मेरे हिसाब से इसके कई विकल्प हैं—हमारे पास कूटनीतिक विकल्प भी हैं, और अंतरराष्ट्रीय इंटेलिजेंस नेटवर्क के साथ मिलकर भी कदम उठाए जा सकते हैं. इसके अलावा आजकल ‘नॉन-काइनेटिक वॉर’ के कई माध्यम हैं—जैसे कि आर्थिक दबाव, साइकोलॉजिकल वॉर, और इंफॉर्मेशन वॉर. हमें हर दिशा से लड़ाई लड़नी होगी.

प्रश्न: क्या “ऑल आउट वॉर” विकल्प होना चाहिए?
जवाब: जहाँ तक सीधे सैन्य कार्रवाई यानी ‘ऑल आउट वॉर’ का सवाल है, मैं उसकी सिफारिश नहीं करूंगा क्योंकि उससे भारत की अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ सकता है. लेकिन इसके अलावा भी हमारे पास कई विकल्प हैं—जैसे कि फायरिंग करना, या उनके टेररिस्ट कैंप्स को निशाना बनाकर तबाह करना. अब तो उन्होंने खुद ही सीज़फायर तोड़ दिया है, तो हम उस पर भी रणनीतिक escalation कर सकते हैं.ध्यान रहे, गोला-बारूद खर्च करने में भी पैसा लगता है और इस समय पाकिस्तान गंभीर आर्थिक संकट में है. अगर हम सीमा पर अपनी फौज का जमावड़ा बढ़ाएं, तो भी पाकिस्तान के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी क्योंकि उनका वेस्टर्न फ्रंट (पश्चिमी सीमा) भी खुला हुआ है. ऐसे में उन्हें दोनों तरफ फौजी तनाव झेलना पड़ेगा और दबाव में आना तय है.

प्रश्न: NSA अजीत डोवाल जी ने Offensive डिफेन्स पर कहा था “अगर आप एक और मुंबई करेंगे, तो आप बलुचिस्तान खो बैठेंगे”
जवाब: हमें Offensive Defense अपनाना चाहिए और Proactive होना चाहिए. इसमें कोई शक नहीं है कि अगर पाकिस्तान ने कुछ किया है, तो हम भी उसकी कार्रवाई का जवाब देने के लिए Proactive हो सकते हैं, इसे covert option कहते हैं, जिसे हम ज्यादा खुलकर नहीं बोलते. लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि हमारी एजेंसियां बहुत कुछ कर सकती हैं बलुचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा में. और मैं नहीं समझता कि कोई भी कारण है कि अगर उनके स्लीपर सेल यहां पर मौजूद हैं तो पाकिस्तान में हमारे स्लीपर सेल होने चाहिए. अगर अब तक हमने ऐसा नहीं किया है, तो हमें यह करना चाहिए.

उसी तरह, अगर इस्राइल Targeted Killings कर सकता है, वैसे हम क्यों नहीं कर सकते? और कई सारी Targeted Killings, जैसे लीडर्स को मारना, ऐसी कार्रवाई की जा सकती है. आखिरकार, अमेरिका ने भी जनवरी 2020 में ईरान के एक मेजर जनरल (कासिम सुलेमानी) को मारा था, जब उन्हें लगा कि वह खतरा बन रहा है. तो हर स्तर पर जवाब दिया जा सकता है और Proactive Action लिया जाना चाहिए

प्रश्न: आपको भारत सरकार की ओर से किस मुहतोड़ जवाब की उम्मीद है?
जवाब: क्या Exact Action लिया जाएगा, ये मेरे हिसाब से हमें अब जो राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व है, उनपर छोड़ना चाहिए, क्योंकि हमें पूरा विश्वास है कि वे सही निर्णय लेंगे और उनके लिए यह भी जरूरी है कि वे यह Calculate करें कि पाकिस्तान क्या प्रतिक्रिया देगा, और Escalation Dynamics की स्थिति में आगे क्या होगा, यह भी calculate करना जरूरी है.

प्रश्न: आप देश को और कश्मीर के नागरिकों व पर्यटकों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
जवाब: हमें डरने की ज़रूरत नहीं है! यह जो हमला हुआ, यह एक घटना है, लेकिन इसके बाद जो सुरक्षा की कार्रवाई होगी, उससे कश्मीर असुरक्षित नहीं रहेगा. अमेरिका में हर रोज़ गोलीबारी होती है, और निर्दोष लोग मारे जाते हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि हम अमेरिका जाना छोड़ देंगे, तो इस पर घबराने की कोई वजह नहीं है.

दूसरी बात, अब कश्मीर के लोग खुलकर सामने आ रहे हैं, उन्हें यह समझ में आ गया है कि ये आतंकवादी उनकी भूमि पर हमला कर रहे हैं, अब स्थानीय लोग भी खुलकर कहते हैं कि यह गलत है और कश्मीरियत पर हमला हो रहा है, यह दिखाता है कि आतंकवादियों को स्थानीय समर्थन मिल रहा था, लेकिन अब यह समर्थन भी खत्म हो रहा है.

हमारे लिए सबसे ज़रूरी बात यह है कि केवल बाहरी प्रतिक्रिया का नहीं, बल्कि अंदरूनी स्तर पर भी कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए. जितने भी ओवरग्राउंड वर्कर्स और स्लीपर सेल पकड़े गए हैं, पहले इन लोगों को बहुत जल्दी छोड़ दिया जाता था, लेकिन इस बार उनके साथ सख्ती से निपटना चाहिए. ये बिल्कुल स्पष्ट है कि जो आतंकवादियों के साथ हैं, वे भी उतने ही बड़े अपराधी हैं.

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