बिहार की मतदाता सूची संशोधन बेचैन कर देने वाली हड़बड़ी: एसवाई कुरैशी

4 hours ago

Last Updated:July 05, 2025, 12:06 IST

Voter List Revision News: पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने बिहार में चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के सघन पहचान पुनरीक्षण (SIR) पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने इसे जल्दबाजी और अव्यवहारिक करार दिया है.

 एसवाई कुरैशी

पूर्व चुनाव आयुक्त ने वोटर लिस्ट की जांच प्रक्रिया की आलोचना की है.

हाइलाइट्स

एसवाई कुरैशी ने बिहार में SIR प्रक्रिया की आलोचना की.कुरैशी ने इसे जल्दबाजी और अव्यवहारिक बताया.प्रवासी मजदूर और हाशिए के समुदाय सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे.

Voter List Revision News: पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने बिहार में चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के सघन पहचान पुनरीक्षण (SIR) पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने इसे जल्दबाजी और अव्यवहारिक कदम करार दिया है. अपने हालिया लेख में कुरैशी ने इस प्रक्रिया की वैधानिकता से ज्यादा इसकी समयबद्धता, व्यावहारिकता और राजनीतिक प्रभावों पर चिंता जताई है. बिहार जैसे बाढ़ प्रभावित और प्रवासी जनसंख्या वाले राज्य में, विधानसभा चुनाव से महज चार महीने पहले शुरू की गई यह कवायद राजनीतिक और सामाजिक गलियारों में चिंता का विषय बन गई है.

चुनाव आयोग ने SIR को संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत जरूरी बताया है, जो 18 वर्ष से अधिक आयु के भारतीय नागरिकों को मतदान का अधिकार देता है. आयोग का दावा है कि यह पुनरीक्षण मतदाता सूची को शुद्ध और अद्यतन करने के लिए है. 2003 की मतदाता सूची में शामिल लोगों को सत्यापित माना गया है, लेकिन उसके बाद पंजीकृत या नए मतदाताओं को अब स्वघोषणा पत्र और जन्म या अभिभावक प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज जमा करने होंगे. कुरैशी का कहना है कि भले ही उद्देश्य पवित्र हो, इस प्रक्रिया का अमल कई पेचीदगियों से भरा है.

कुरैशी ने बताया कि मतदाता सूची में संशोधन कोई नई बात नहीं है. 2003-04 में पूर्वोत्तर राज्यों और जम्मू-कश्मीर में पूर्ण सघन पुनरीक्षण हुआ था, लेकिन तब परिस्थितियां अलग थीं. उन मामलों में दस्तावेजों की मांग चुनाव से ठीक पहले नहीं की गई थी. 2003 के बाद से आयोग ने वार्षिक सारांश पुनरीक्षण को मानक प्रक्रिया बनाया और डोर-टू-डोर सर्वे, डिजिटलीकरण और फोटो पहचान पत्र जैसी व्यवस्थाओं ने इसे प्रभावी बनाया. लेकिन इस बार चुनाव से पहले की हड़बड़ी और दस्तावेजों की मांग ने विवाद खड़ा कर दिया है.

सबूत का बोझ मतदाता पर

इस प्रक्रिया में सबसे बड़ी चिंता यह है कि सबूत का बोझ मतदाता पर डाल दिया गया है. कुरैशी ने चेतावनी दी कि इससे प्रवासी मजदूर, दलित, आदिवासी, शहरी गरीब, मुसलमान, बुजुर्ग और महिलाएं जैसे हाशिए के समुदाय सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे, जिनके पास अक्सर आवश्यक दस्तावेज नहीं होते. अगर कोई पहले से मतदाता सूची में है और कोई धोखाधड़ी या डुप्लीकेसी का सबूत नहीं है, तो दोबारा दस्तावेज मांगना अनुचित लगता है.

उन्होंने कहा कि यह स्थिति असम के नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) की याद दिलाती है, जहां दस्तावेजों की कमी के कारण करीब 20 लाख लोग सूची से बाहर हो गए थे. विपक्ष ने भी आयोग पर बिना परामर्श के यह कदम उठाने का आरोप लगाया है. कुरैशी ने बताया कि 2002-03 और 2004 में ऐसी प्रक्रियाओं से पहले राज्यों और राजनीतिक दलों से सलाह ली गई थी. तब पूरी सूची का पुनर्निर्माण भी राजनीतिक सहमति के बाद हुआ था. इस बार परामर्श की कमी और प्रक्रिया की जल्दबाजी ने अविश्वास को बढ़ावा दिया है.

आयोग के सकारात्मक कदम

आयोग ने कुछ सकारात्मक कदम भी उठाए हैं जैसे 2003 की सूची को ऑनलाइन उपलब्ध कराना, एक लाख से अधिक बूथ स्तर के अधिकारियों को तैनात करना और दावा-आपत्ति प्रक्रिया को खुला रखना. लेकिन कुरैशी का मानना है कि ये कदम चिंताओं को कम करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. बिहार जैसे राज्य में जहां बाढ़ और प्रवास जैसे मुद्दे पहले से चुनौती हैं, यह प्रक्रिया कई लोगों को मतदान से वंचित कर सकती है.

कानूनी रूप से अनुच्छेद 324 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 आयोग को यह अधिकार देते हैं. सुप्रीम कोर्ट भी आयोग की स्वायत्तता को मान्यता देता है. लेकिन कुरैशी ने चेताया कि लोकतंत्र में केवल कानूनी वैधता काफी नहीं, नैतिक वैधता और जन विश्वास भी जरूरी है. आयोग को निष्पक्ष दिखने के साथ-साथ दस्तावेज जमा करने की समय सीमा बढ़ानी चाहिए. साथ ही, इस प्रक्रिया को पहले उन राज्यों में लागू करना चाहिए जहां चुनाव दो-तीन साल बाद हैं. बिहार में यह हड़बड़ी अनावश्यक तनाव और अविश्वास को जन्म दे रही है.

संतोष कुमार

न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स...और पढ़ें

न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स...

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