सियासत में नया मोड़... CM नीतीश के इस कदम के बाद निशांत आएंगे पॉलिटिक्स में?

5 hours ago

Last Updated:May 15, 2025, 20:01 IST

नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार की बढ़ती सक्रियता से बिहार की राजनीति में हलचल है. 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले निशांत की संभावित एंट्री और जेडीयू की रणनीति चर्चा में है.

सियासत में नया मोड़... CM नीतीश के इस कदम के बाद निशांत आएंगे पॉलिटिक्स में?

बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार और उनके बेटे.

पटना. क्या 2025 में बिहार की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत हो रही है? क्या सीएम नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार की बढ़ती सक्रियता और जेडीयू की रणनीति बीजेपी के लिए परेशानी खड़ी करने वाली है? क्या नीतीश की विरासत को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने की तैयारी 14 मई 2025 को पूरी हो गई है? बिहार के राजनीतिक गलियारे में सीएम नीतीश कुमार की पत्नी स्वर्गीय मंजू सिन्हा की पुण्यतिथि का आयोजन चर्चा का केंद्र बन गया है. क्या बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से कुछ महीने पहले हुआ यह आयोजन नीतीश कुमार के पुत्र निशांत कुमार को नया मंच देने जा रहा है?

नीतीश कुमार ने बुधवार को अपनी स्वर्गीय पत्नी मंजू कुमारी सिन्हा की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. इस अवसर पर नीतीश अपने पुत्र निशांत कुमार के साथ पटना के कंकड़बाग स्थित मंजू कुमारी सिन्हा स्मृति पार्क और अपने पैतृक गाँव कल्याण बिगहा भी पहुंचे. इस भावनात्मक पल ने न केवल मंजू सिन्हा की स्मृति को ताजा किया, बल्कि एक बार फिर बिहार की राजनीति में निशांत कुमार की एंट्री पर चर्चा को हवा दी. निशांत कुमार, जो 49 साल के हो गए हैं, अब तक राजनीति से दूरी बनाए रखने के लिए जाने जाते थे. उनकी मां के निधन के बाद निशांत ने अध्यात्म की ओर रुख किया और सार्वजनिक जीवन से लगभग अलग-थलग रहते थे. हालांकि, 2024 के अंत से उनकी बढ़ती सार्वजनिक उपस्थिति ने यह संकेत दिया कि वह अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभालने की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं.

क्या नीतीश कुमार ने सेट कर लिया नया राजनीतिक एजेंडा?
हाल की गतिविधियां निशांत ने हाल के महीनों में कई सार्वजनिक मंचों पर हिस्सा लिया. फरवरी 2025 में मंजू सिन्हा की जयंती पर, उन्होंने पत्रकारों से खुलकर बात की और जेडीयू कार्यकर्ताओं से मेहनत करने की अपील की. मार्च 2025 में होली समारोह में वह जेडीयू के वरिष्ठ नेताओं जैसे विजय कुमार चौधरी और संजय कुमार झा के साथ नजर आए. इसके अलावा नीतीश के 75वें जन्मदिन पर लगे पोस्टरों में निशांत की तस्वीरें शामिल थीं, जिसमें ‘बिहार की मांग, सुन लिए निशांत’ जैसे नारे थे.

अब खुलकर राजनीति करेंगे निशांत?
मीडिया और कार्यकर्ताओं का दबाव जेडीयू के कुछ कार्यकर्ताओं और नेताओं ने खुलकर निशांत को राजनीति में लाने की मांग की है. केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने फरवरी 2025 में एक एक्स पोस्ट में निशांत का स्वागत किया, इसे एक स्वाभाविक प्रक्रिया करार दिया. इसी तरह, पटना में जेडीयू कार्यालय के बाहर लगे पोस्टरों ने निशांत को ‘बिहार का भविष्य’ बताया.

क्या चाहते हैं नीतीश?
निशांत का रुख निशांत ने अभी तक राजनीति में प्रवेश की स्पष्ट घोषणा नहीं की है, लेकिन उन्होंने इन अटकलों को खारिज भी नहीं किया. अप्रैल 2025 में एक बयान में उन्होंने बिहार की जनता से एनडीए को वोट देने और नीतीश को फिर से मुख्यमंत्री बनाने की अपील की, जो उनकी राजनीतिक सक्रियता का स्पष्ट संकेत था. नीतीश कुमार, जो बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं, अब 74 वर्ष के हैं. जेडीयू के भीतर उत्तराधिकार की चर्चा तेज हो रही है, खासकर तब जब नीतीश ने कभी किसी स्पष्ट उत्तराधिकारी का नाम नहीं लिया. निशांत का उभरना इस रिक्तता को भरने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.

विपक्षी नेता क्या सोचते हैं?
वंशवाद विरोधी छवि का संतुलन नीतीश हमेशा वंशवाद की राजनीति के खिलाफ रहे हैं. इसलिए, निशांत की एंट्री को सावधानीपूर्वक प्रोजेक्ट किया जा रहा है ताकि नीतीश की सुशासन बाबू की छवि को नुकसान न पहुंचे. निशांत की संभावित एंट्री पर विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने मार्च 2025 में कहा, ‘हम निशांत का राजनीति में स्वागत करेंगे. उन्हें अब समय बर्बाद नहीं करना चाहिए, वरना बीजेपी जेडीयू को निगल जाएगी.’

चुनावी रणनीति जेडीयू सूत्रों के अनुसार, निशांत 2025 के विधानसभा चुनाव में नालंदा जिले की हरनौत सीट से उम्मीदवार हो सकते हैं. हालांकि, कुछ रिपोर्ट्स दावा करती हैं कि नीतीश उन्हें विधान परिषद (एमएलसी) के जरिए राजनीति में ला सकते हैं ताकि उनकी छवि को धीरे-धीरे स्थापित किया जाए. वहीं कुछ लोग निशांत की पार्टी में भूमिका देखना चाहते हैं. निशांत को जेडीयू में संगठनात्मक भूमिका दी जा सकती है, जिससे वह नीतीश की अनुपस्थिति में पार्टी को एकजुट रख सकें. उनकी सादगी और अध्यात्मिक छवि को ग्रामीण मतदाताओं, खासकर अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के बीच स्वीकार्य बनाने की कोशिश हो रही है.

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