Last Updated:July 09, 2025, 12:18 IST
Trade Unions in India: नए श्रम कानूनों और निजीकरण के खिलाफ 9 जुलाई को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया है. उम्मीद है कि इसमें 25 करोड़ से अधिक कर्मचारी भाग लेंगे.

ट्रेड यूनियनों का दावा है कि नए कानून श्रमिकों के अधिकारों को कमजोर करते हैं.
हाइलाइट्स
भारत में ट्रेड यूनियनों की ताकत अभी भी बरकरार है9 जुलाई को 25 करोड़ कर्मचारी हड़ताल में शामिल होंगेनए श्रम कानूनों के खिलाफ ट्रेड यूनियनों का विरोध जारी हैTrade Unions in India: आज यानी 9 जुलाई को एक विशाल राष्ट्रव्यापी हड़ताल होने जा रही है. यह हड़ताल मजदूर विरोधी, किसान विरोधी और कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों के खिलाफ है. इसमें प्रमुख सरकारी क्षेत्रों के 25 करोड़ से अधिक कर्मचारी विरोध प्रदर्शन करने के लिए तैयार हैं. आम हड़ताल या ‘भारत बंद’ का आह्वान 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच द्वारा किया गया है. इसे किसान संगठनों और ग्रामीण श्रमिक समूहों का समर्थन भी प्राप्त है. बैंकिंग, डाक संचालन, परिवहन और बिजली आपूर्ति सहित आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं में बड़े व्यवधान की आशंका है.
बढ़ सकता है हड़ताल का दायरा
यह हड़ताल सिर्फ औपचारिक क्षेत्र के कर्मचारियों तक सीमित नहीं है. अनौपचारिक क्षेत्र के कर्मचारी, स्व-रोजगार वाले समूह जैसे कि स्व-रोजगार महिला संघ (SEWA) और ग्रामीण समुदाय भी इसमें भाग लेंगे. इस विरोध प्रदर्शन को संयुक्त किसान मोर्चा जैसे किसान मंचों से समर्थन मिला है. संयुक्त किसान मोर्चा निरस्त किए गए कृषि कानूनों के खिलाफ ऐतिहासिक किसान आंदोलन में सबसे आगे था. एनएमडीसी लिमिटेड, इस्पात संयंत्रों और रेलवे परिचालन सहित प्रमुख उद्योगों के सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों ने भी एकजुटता व्यक्त की है.
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नए श्रम कानूनों का विरोध
इस आंदोलन का मूल कारण संसद द्वारा पारित चार नए लेबर कोड (कानून) के खिलाफ ट्रेड यूनियनों का विरोध है. ट्रेड यूनियनों का तर्क है कि चार नए श्रम कानून श्रमिकों के अधिकारों को कमजोर करते हैं. क्योंकि इसमें हड़ताल करना अधिक कठिन बनाकर, काम के घंटे बढ़ाकर और नियोक्ताओं को श्रम कानूनों का उल्लंघन करने पर दंड से बचाने का काम किया गया है. इसके अतिरिक्त वे सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के निजीकरण, नौकरियों की आउटसोर्सिंग और ठेका श्रमिकों के उपयोग का विरोध कर रहे हैं. उनका दावा है कि इससे नौकरी की सुरक्षा और उचित वेतन को खतरा है. यह पहली बार नहीं है जब इतने बड़े पैमाने पर कार्रवाई की जा रही है. 2020, 2022 और 2024 में इसी तरह की राष्ट्रव्यापी हड़तालों में लाखों कर्मचारी सड़कों पर उतरे थे. उन्होंने श्रम-समर्थक नीतियों और विवादास्पद आर्थिक सुधारों को वापस लेने की मांग की थी.
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अभी भी है दबाव बनाने की ताकत
भारत में ट्रेड यूनियनों की ताकत और प्रभाव एक जटिल मुद्दा है, जो समय के साथ बदलता रहा है. 9 जुलाई को 10 ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाई गई अखिल भारतीय हड़ताल इस बात का प्रमाण है कि वे अभी भी अपनी मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाने की ताकत रखती हैं. हालांकि, यह भी सच है कि उनका प्रभाव कुछ हद तक घटा है. भारतीय ट्रेड यूनियनें अभी भी लाखों श्रमिकों का प्रतिनिधित्व करती हैं. 9 जुलाई की हड़ताल में 25 करोड़ से अधिक कर्मचारियों के शामिल होने का दावा किया गया है. जो बैंकिंग, बीमा, परिवहन, डाक, कोयला, उद्योग, और निर्माण जैसे प्रमुख क्षेत्रों को प्रभावित कर रही है. यह दिखाता है कि उनकी पहुंच और संगठित होने की क्षमता अभी भी व्यापक है.
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12 ट्रेड यूनियन हैं मान्यता प्राप्त
भारत में वर्तमान में 12 प्रमुख यूनियनों को केंद्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों के रूप में मान्यता प्राप्त है. जिनमें भारतीय मजदूर संघ (BMS), भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (INTUC), अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC), हिंद मजदूर सभा (HMS), सेंटर ऑफ इंडिया ट्रेड यूनियंस (CITU) जैसे बड़े नाम शामिल हैं. इन यूनियनों का अपना संगठनात्मक ढांचा और प्रभाव क्षेत्र है. कई ट्रेड यूनियनों का राजनीतिक दलों के साथ गहरा संबंध है. जिससे उन्हें राजनीतिक समर्थन और प्रभाव हासिल होता है. यह उन्हें अपनी मांगों को सरकार तक पहुंचाने और नीतिगत बदलावों को प्रभावित करने में मदद करता है. ट्रेड यूनियनें लगातार श्रमिकों के अधिकारों, न्यूनतम मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, निजीकरण के विरोध और रोजगार सृजन जैसे मुद्दों पर संघर्ष कर रही हैं. 9 जुलाई की हड़ताल उनके निरंतर सक्रिय होने का प्रमाण है.
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क्या घट रहा है यूनियनों का प्रभाव?
सरकार द्वारा लाए गए नए लेबर कोड्स यूनियनों के प्रभाव को कम करने का एक बड़ा कारण माने जा रहे हैं. यूनियनों का दावा है कि ये नए कानून श्रमिकों के अधिकारों को कमजोर करते हैं, काम के घंटे बढ़ाते हैं और यूनियन सुरक्षा को कमजोर करते हैं भारत में अनौपचारिक क्षेत्र (unorganised sector) में श्रमिकों की संख्या बहुत अधिक है. यहां ट्रेड यूनियनों के लिए संगठित होना मुश्किल होता है. इसके अलावा ठेका मजदूरी (contractual labour) और आउटसोर्सिंग में वृद्धि ने भी यूनियनों के प्रभाव को कम किया है. क्योंकि ठेका श्रमिकों को अक्सर यूनियन में शामिल होने या उनके अधिकारों के लिए लड़ने में कठिनाई होती है. समय के साथ कुछ क्षेत्रों, विशेषकर निजी क्षेत्र में यूनियनों की सदस्यता में गिरावट देखी गई है. नियोक्ताओं का विरोध और श्रमिकों में नौकरी खोने का डर भी इसका एक कारण है.
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कैसे काम करती हैं ट्रेड यूनियन?
सामूहिक सौदेबाजी ट्रेड यूनियनों का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है. यूनियनें अपने सदस्यों की ओर से वेतन, काम के घंटे, लाभ और अन्य रोजगार की शर्तों पर नियोक्ताओं के साथ बातचीत करती हैं.यदि बातचीत विफल हो जाती है या श्रमिकों की मांगें पूरी नहीं होती हैं, तो ट्रेड यूनियनें हड़ताल, प्रदर्शन या अन्य औद्योगिक कार्रवाई का आह्वान कर सकती हैं. इसका उद्देश्य नियोक्ता और सरकार पर दबाव बनाना होता है. यूनियनें अपने सदस्यों को कानूनी सहायता प्रदान करती हैं, खासकर तब जब उन्हें अन्यायपूर्ण तरीके से बर्खास्त किया जाता है या उनके अधिकारों का उल्लंघन होता है. ट्रेड यूनियनें अपने सदस्यों से सदस्यता शुल्क एकत्र करती हैं, जिसका उपयोग संगठन के संचालन, कानूनी खर्चों और कल्याणकारी गतिविधियों के लिए किया जाता है. कई यूनियनें अपने सदस्यों को विभिन्न कौशल और अधिकारों के बारे में शिक्षित और प्रशिक्षित करती हैं.
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कई यूनियन होने से कमजोर हुई एकजुटता
एक ही क्षेत्र में कई यूनियनों का होना और उनके बीच आंतरिक प्रतिद्वंद्विता अक्सर श्रमिकों की एकजुटता को कमजोर करती है. उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीतियों ने भी ट्रेड यूनियनों के पारंपरिक कार्यप्रणाली को चुनौती दी है. नियोक्ता अब अधिक लचीली श्रम नीतियों को पसंद करते हैं, जिससे यूनियनों के लिए अपनी कठोर मांगों को मनवाना मुश्किल हो गया है. कुछ मामलों में, यूनियनों के नेतृत्व और कार्यप्रणाली में भी बदलाव की कमी देखी गई है. जिसकी वजह से वे बदलते औद्योगिक परिदृश्य के अनुकूल ढालने में असमर्थ हैं. लेकिन फिर भी ट्रेड यूनियनें भारत में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. उनकी संगठित शक्ति को कम करके नहीं आंका जा सकता. वे श्रमिकों के अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण आवाज बनी हुई हैं. हालांकि, बदलते आर्थिक और कानूनी परिदृश्य के कारण उनका असर कुछ हद तक कम हुआ है.
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