Last Updated:July 09, 2025, 13:28 IST
Moslim Politics in Bihar: बिहार की गलियों से लेकर दिल्ली के सियासी गलियारों तक 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले एक ही सवाल गूंज रहा है-मुस्लिम वोटर किसके साथ जाएगा? 2 करोड़ 10 लाख की आबादी वाले पूरे बिहार की जनसं...और पढ़ें

मुस्लिम मतदाओं के सामने राजनीतिक दलों को चुनने का विकल्प बेहद कम.
हाइलाइट्स
किशनगंज, पूर्णिया, अररिया और कटिहार की 24 सीटों पर मुस्लिम वोटर करते रहेे हैं जीत और हार का फैसला. 80-85% पसमांदा मुस्लिमों की सामाजिक-आर्थिक चुनौतियां, 3-5% अशराफ की सियासी हिस्सेदारी पर सवाल. राजद-कांग्रेस का 'MY' समीकरण से बिहार में मुस्लिम वोटरों को महागठबंधन के लिए एकजुट करने की कोशिश.पटना. बिहार की राजनीति में जाति और धर्म का ताना-बाना सत्ता के तख्त को तय करता है और इसमें मुस्लिम वोटरों का रोल किसी ‘किंगमेकर’ से कम नहीं. 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले जब सड़कों पर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव बिहार बंद के लिए कदमताल कर रहे हैं तो बिहार की गलियों से लेकर पटना के सियासी गलियारों तक एक सवाल गूंज रहा है-मुस्लिम वोटर इस बार किसके पाले में जाएगा? बिहार में 17.7% मुस्लिम आबादी और उनकी जातिगत विविधता सियासी दलों के लिए एक जटिल पहेली है. आइए इस मुस्लिम फैक्टर की गहराई में उतरते हैं. मुस्लिम आबादी और जातिगत गणित2023 की बिहार जाति जनगणना के अनुसार, राज्य की कुल आबादी में मुस्लिम 17.7% हैं जो हिंदुओं (81.99%) के बाद दूसरा सबसे बड़ा समुदाय है. बिहार में मुस्लिम आबादी मुख्य रूप से सीमांचल, खास कर किशनगंज, अररिया, पूर्णिया, कटिहार और मिथिलांचल, विशेषकर दरभंगा, मधुबनी , समस्तीपुर जैसे जिलों में केंद्रित है. किशनगंज में मुस्लिम आबादी 68% है जो बिहार में सबसे ज्यादा है. इसके बाद पूर्णिया में 38%, अररिया में 43% और कटिहार में 44% है. इन जिलों की 24 विधानसभा सीटें सत्ता की कुंजी मानी जाती हैं.
मुस्लिम समुदाय में जातिगत विभाजन भी सियासत को प्रभावित करता है. मुस्लिमों में अशराफ यानी उच्च वर्ग, जैसे सैयद, शेख, पठान और पसमांदा यानी अजलाफ और अरजाल, जैसे अंसारी, कुंजड़ा, नाई की हिस्सेदारी है. अशराफ की आबादी करीब 3-5% है जो शिक्षित और आर्थिक रूप से बेहतर स्थिति में हैं. पसमांदा मुस्लिम आबादी का बड़ा हिस्सा, लगभग 80-85% हैं, लेकिन सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े हैं. कुलहैया (अररिया, पूर्णिया में 20 लाख) और शेरशाहबादी जैसी जातियों को अति पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया है. यह जातिगत गणित वोटिंग पैटर्न को और भी उलझन वाला बनाता है.
बिहार में मुस्लिम-यादव समीकरण राजद की राजनीति का आधार है. लालू यादव और तेजस्वी यादव इस पर एकाधिकार समझते हैं.
सियासी दबदबा, सीटें और प्रभाव
सीमांचल की 24 सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक हैं जहां औसतन 36-37% मतदाता मुस्लिम हैं. किशनगंज की ठाकुरगंज, कोचाधामन और बहादुरगंज; पूर्णिया की अमौर, बैसी और अररिया की जोकीहाट जैसी सीटों पर मुस्लिम वोटर जीत-हार तय करते हैं. वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल 24 सीटों पर राजद-कांग्रेस गठबंधन ने मजबूत प्रदर्शन किया, जिसमें राजद को 80 और कांग्रेस को 27 सीटें मिलीं. हालाँकि, AIMIM ने 5 सीटें जीतकर सभी रानजीतिक पंडितों और राजनीतिक दलों को चौंकाया, लेकिन बाद में 4 विधायक राजद में शामिल हो गए.
मुस्लिम नेता: पुराने दिग्गज और नए चेहरे
बिहार की सियासत में मुस्लिम नेताओं का प्रभाव आजादी के बाद से रहा है. सैयद महमूद, मोहम्मद तस्लीमुद्दीन और अब्दुल इब्राहिम जैसे नेता संसद पहुंचे, जबकि नवाबजादा सैयद, ताजुद्दीन और शकूर अहमद जैसे नाम विधानसभा में चमके. वर्तमान में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद के अब्दुल बारी सिद्दीकी, अख्तरुल इस्लाम शाहीन और मोहम्मद नेयाज़ अहमद जैसे नेता मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं. AIMIM के अख्तरुल इमान सीमांचल में उभरते चेहरा हैं. पसमांदा आंदोलन के नेता अली अनवर ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के अध्यक्ष हैं और वह सामाजिक-आर्थिक मुद्दों को उठाते रहे हैं.
सरकार बनाने में मुस्लिम वोटर का रोल
बिहार में मुस्लिम वोटर सत्ता के समीकरण को पलटने की ताकत रखते हैं. 2020 के चुनाव में राजद-कांग्रेस गठबंधन को 42% वोट मिले, जिसमें मुस्लिम वोटरों का बड़ा योगदान था. राजद का ‘MY’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण उसकी ताकत है जिसमें मुस्लिम वोटर 18% तक प्रभाव डालते हैं. हालांकि, पसमांदा मुस्लिमों का एक हिस्सा जदयू और बीजेपी की ओर भी जाता है खासकर नीतीश कुमार की EBC और महादलित नीतियों के कारण. वक्फ बिल जैसे मुद्दों ने 2025 में पसमांदा वोटरों को बीजेपी-एनडीए की ओर आकर्षित करने की कोशिश को बढ़ाया है.
मुस्लिम समुदाय के लिए नीतीश कुमार की अलग तरह की राजनीति, मुस्लिमों के विकास को आधार बनाकर करते हैं राजनीति.
किस पार्टी को मिलता है मुस्लिम वोट?
ऐतिहासिक रूप से, मुस्लिम वोटर राजद और कांग्रेस की ओर झुकते हैं, क्योंकि ये दल सेक्युलर छवि और बीजेपी विरोध के आधार पर वोट मांगते हैं. लालू प्रसाद यादव का ‘MY’ समीकरण इसकी मिसाल है. हालांकि, नीतीश कुमार की जदयू ने भी पसमांदा और कुलहैया जैसे समुदायों को अपनी नीतियों (जैसे शराबबंदी और EBC आरक्षण) से आकर्षित किया है. बीजेपी भी वक्फ बिल और पसमांदा कल्याण योजनाओं के जरिए इस वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में है, लेकिन उसका हिंदुत्व एजेंडा मुस्लिम वोटरों के बीच अविश्वास पैदा करता है. वहीं, बिहार की सियासत में अब असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम वोटों के लिए बड़ा फैक्टर साबित हो रहे हैं. सीमांचल में बीते चुनाव में उनकी पार्टीको 14 प्रतिशत से अधिक वोट और 5 सीटों पर जीत इसको साबित करता है.
मुस्लिम फैक्टर की अहमियत
बिहार की सियासत में मुस्लिम वोटर एक ऐसा ध्रुव है जिसके बिना सत्ता का गणित अधूरा है. सीमांचल की 24 सीटों पर उनका दबदबा और ‘MY’ समीकरण की ताकत उन्हें किंगमेकर बनाती है. लेकिन, पसमांदा और अशराफ के बीच सामाजिक-आर्थिक अंतर और शिक्षा की कमी ने उनके सियासी प्रतिनिधित्व को सीमित रखा है. 2025 का चुनाव इस बात का इम्तिहान होगा कि क्या मुस्लिम वोटर राजद-कांग्रेस के साथ अपनी वफादारी बरकरार रखेंगे या नीतीश और बीजेपी का पसमांदा कार्ड कामयाब होगा. तेजस्वी यादव का जोश और राहुल का सेक्युलर एजेंडा इस बार मुस्लिम वोटरों को एकजुट करने की कोशिश में है, लेकिन बीजेपी का विकास और हिंदुत्व का जवाबी दांव सियासत की लड़ाई को दिलचस्प बना रहा है.
पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें
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