India-China Trade: चीन के विदेश मंत्री वांग यी 18 और 19 अगस्त को भारत के दौरे पर थे. इस दौरान उन्होंने अपने समकक्ष एस जयशंकर और एनएसए अजित डोभाल से बातचीत की. इन बैठकों में भारत और चीन के बीच कई समझौते हुए. इसके मुताबिक भारत और चीन ने लिपुलेख दर्रे के जरिए एक बार फिर से ट्रेडिंग पर सहमति जताई है. वांग यी के भारत आने के बाद शिपकी ला और नाथु ला दर्रों से भी ट्रेड शुरू होगा. अब भारत-चीन के बीच इस सहमति को लेकर नेपाल ने आपत्ति जताई है.
नेपाल सरकार ने बुधवार (20 अगस्त) को लिम्पियाधुरा, लिपुलेख, और कालापानी, जो महाकाली नदी के पूर्व में स्थित हैं, को नेपाल का अभिन्न अंग होने की पुन: पुष्टि की, यह प्रतिक्रिया भारत-चीन लिपुलेख व्यापार समझौते के जवाब में थी. लिपुलेख पर नेपाल सरकार का रुख भारत और चीन के बीच हाल ही में हुए उस समझौते के बाद आया है, जिसमें इस सप्ताह की शुरुआत में चीनी विदेश मंत्री वांग यी की भारत की आधिकारिक यात्रा के दौरान लिपुलेख के माध्यम से सीमा व्यापार को फिर से खोलने का निर्णय लिया गया. इसके बाद नेपाल के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर इस बात का दावा किया कि देश का संविधान स्पष्ट रूप से लिम्पियाधुरा, लिपुलेख, और कालापानी को नेपाल के आधिकारिक नक्शे का हिस्सा मानता है.
भारत नेपाल संबंधों में सीमा मुद्दा बना टीस की वजह
नेपाल के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, 'नेपाल सरकार ने लगातार भारत सरकार से आग्रह किया है कि वह उस क्षेत्र में सड़क निर्माण/विस्तार या सीमा व्यापार जैसी गतिविधियों को न करे. इसने अपने मित्रवत पड़ोसी, चीन, को भी विधिवत सूचित किया है कि यह क्षेत्र नेपाली क्षेत्र के अंतर्गत आता है.' भारत-नेपाल संबंधों में सीमा मुद्दा एक लंबे समय से टीस की वजह बना हुआ है. इस घटनाक्रम से दोनों देशों के बीच विवाद फिर से भड़कने की संभावना है. नेपाल का कहना है कि वह अपने मित्रवत पड़ोसी भारत के साथ सबूतों के आधार पर मुद्दों को हल करने के लिए प्रतिबद्ध है.
भारत ने दिया करारा जवाब
नेपाल के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी किए गए बयान में आगे कहा गया, 'नेपाल और भारत के बीच घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण संबंधों की भावना से प्रेरित होकर, नेपाल सरकार ऐतिहासिक संधियों और समझौतों, तथ्यों, नक्शों और साक्ष्यों के आधार पर दोनों देशों के बीच सीमा मुद्दों को राजनयिक माध्यमों से हल करने के लिए प्रतिबद्ध है.' इस बीच, भारतीय विदेश मंत्रालय ने नेपाल के बयान पर प्रतिक्रिया दी. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि क्षेत्रीय दावों पर नेपाल पूरी तरह से गलत है और ऐतिहासिक तथ्य नेपाल के दावों का समर्थन नहीं करते हैं. रणधीर जायसवाल ने कहा कि दोनों देशों के बीच यहां से दशकों से ट्रेड हो रहा है.
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क्या है भारत-नेपाल के बीच का लिपुलेख विवाद?
लिपुलेख विवाद भारत और नेपाल के बीच एक लंबे समय से चला आ रहा सीमा विवाद है, जो मुख्य रूप से लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी क्षेत्रों को लेकर है, जो महाकाली नदी के पूर्व में स्थित हैं. यह विवाद ऐतिहासिक संधियों, नक्शों और क्षेत्रीय दावों की परस्पर विरोधी व्याख्याओं के कारण शुरू हुआ. आइए आपको विस्तारपूर्वक बताते हैं क्या है ये विवाद
नेपाल का दावा
नेपाल का कहना है कि लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी उसके क्षेत्र का हिस्सा हैं, जैसा कि 1816 की सुगौली संधि में परिभाषित है, जिसमें महाकाली नदी को भारत और नेपाल के बीच सीमा के रूप में मान्यता दी गई थी. नेपाल का दावा है कि यह क्षेत्र उसके आधिकारिक नक्शे में शामिल है, जिसे 2020 में संवैधानिक रूप से अपडेट किया गया था.
भारत का दावा
भारत का कहना है कि ये क्षेत्र उसके नियंत्रण में हैं और ऐतिहासिक रूप से उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा रहे हैं. भारत का तर्क है कि नेपाल के दावे ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं हैं और एकतरफा दावे अस्वीकार्य हैं.
लिपुलेख दर्रा और व्यापार
लिपुलेख दर्रा भारत और चीन के बीच व्यापार और तीर्थयात्रा (मानसरोवर यात्रा) के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग रहा है. 1954 से भारत और चीन के बीच इस दर्रे के माध्यम से व्यापार होता रहा है, जो हाल के वर्षों में कोविड और अन्य वजहों से बंद कर दिया गया था.
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