Last Updated:August 21, 2025, 12:57 IST
Mumbai Rain: मुंबई में बारिश के दौरान बाढ़ का कारण पुराना बुनियादी ढांचा, गायब होते वेटलैंड्स और जलवायु परिवर्तन है. शहर का जल निकासी तंत्र समुद्र पर निर्भर है, जिससे भारी बारिश और हाई टाइड के समय बाढ़ आती है.

Mumbai Rain: जब भी मॉनसून की पहली फुहार आती है, तो ज्यादातर शहरों में लोग उसका स्वागत करते हैं. लेकिन मुंबई में लोग डर जाते हैं. जो शहर अपनी रफ्तार और कभी न रुकने वाले जब्जे के लिए जाना जाता है, बारिश के बाद कुछ घंटों में ही थम सा जाता है. यह सोचकर अजीब लगता है कि अरब सागर के किनारे स्थित यह आधुनिक महानगर कुछ ही इंच बारिश में क्यों घुटनों पर आ जाता है. आखिर क्यों हर साल ‘सपनों की नगरी’ बारिश में ‘पानी की नगरी’ बन जाती है? सड़कें पानी में डूब जाती हैं, ट्रेनें रुक जाती हैं और दफ्तर जाने वाले लोग घुटनों तक और कभी-कभी कमर तक गहरे पानी भरे रास्तों से गुजरते हैं. दुनिया के सबसे बड़े शहरों में से एक में जिंदगी अस्त-व्यस्त हो जाती है. पुराना बुनियादी ढांचा, गायब होते वेटलैंड्स और जलवायु परिवर्तन – इन सबने मिलकर मुंबई में मानसून को हर गुजरते साल के साथ बदतर बना दिया है.
मुंबई में बाढ़ क्यों आती है यह समझने के लिए आपको यह देखना होगा कि इस शहर का भूगोल क्या है. मूल रूप से सात द्वीपों का एक समूह यह शहर सदियों से चली आ रही भूमि सुधार परियोजनाओं के जरिए एक साथ जुड़ा हुआ है. मुंबई का जल निकासी तंत्र काफी हद तक समुद्र पर निर्भर करता है. शहर का पानी नालों के माध्यम से समुद्र में जाता है. आधुनिक मुंबई का अधिकांश भाग समुद्र तल से मुश्किल से कुछ ऊपर है. लेकिन कुछ इलाके जैसे दादर, माहिम और कुर्ला के कुछ हिस्से हाई टाइड (उच्च ज्वार) के निशान से नीचे हैं. जब भारी बारिश और हाई टाइड एक साथ आते हैं तो समुद्र का जलस्तर बढ़ जाता है. ऐसे में नालों के गेट बंद कर दिए जाते हैं ताकि समुद्र का पानी शहर में वापस न आए. इस वजह से, शहर का पानी बाहर नहीं निकल पाता और निचले इलाकों में जमा हो जाता है जिससे बाढ़ जैसी स्थिति पैदा होती है.
पुरानी जल निकासी व्यवस्था
मुंबई की भूमिगत वर्षा जल निकासी प्रणाली ब्रिटिश काल की है. उसे प्रति घंटे केवल 25 मिमी बारिश को संभालने के लिए डिजाइन किया गया था. यह प्रणाली 1900 में तो काम कर सकती थी, लेकिन 2025 में यह काम नहीं करेगी. वर्तमान में, जिस गति से बारिश होती है, वह इस प्रणाली की क्षमता से कहीं अधिक है. 1990 के दशक की शुरुआत में इस व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन के लिए BRIMSTOWAD नामक एक बड़ी अपग्रेड योजना प्रस्तावित की गई थी. महत्वाकांक्षी और महंगी होने के बावजूद वर्षों तक यह मुश्किल से ही आगे बढ़ पायी. राजनीतिक देरी, धन की कमी और लालफीताशाही के कारण जब मुंबई को अपनी सबसे भीषण बाढ़ का सामना करना पड़ा, तब भी शहर सदियों पुराने नालों पर निर्भर था.
दफ्तर और काम पर जाने वाले लोग घुटनों तक और कभी-कभी कमर तक गहरे पानी भरे रास्तों से गुजरते हैं.
अर्बन प्लानिंग में खामियां
आधुनिक मुंबई का निर्माण इस बात का ध्यान रखे बिना किया गया है कि पानी कैसे बहता है. अनियोजित निर्माण के जरिए खाड़ियां संकरी कर दी गई हैं, वेटलैंड्स भर दिए गए हैं और तूफानी पानी के रास्ते बंद कर दिए गए हैं. कुछ इलाकों में झुग्गी-झोपड़ियां और ऊंची इमारतें प्राकृतिक जल निकासी मार्गों के ठीक ऊपर बसी हैं. यहां तक कि नए विकास कार्य जो स्मार्ट और बाढ़-रोधी होने का दावा करते हैं, अक्सर जमीनी हकीकत को नजरअंदाज कर देते हैं. डेवलपर पानी सोखने वाली जमीन पर कंक्रीट बिछा देते हैं. सड़कों में उचित ढलान नहीं है और फुटपाथ बहुत ऊंचे हैं. यही वजह है कि पानी जहां गिरता है, वहीं रुक जाता हैं.
मैंग्रोव और झीलों का विनाश
मैंग्रोव और झीलों जैसे प्राकृतिक जल-अवशोषण क्षेत्रों को शहरी विकास के लिए भर दिया गया है. दशकों तक मुंबई के मैंग्रोव प्राकृतिक स्पंज की तरह काम करते रहे. वे अतिरिक्त वर्षा जल को सोखते रहे, प्रदूषकों को छानते रहे और ज्वार-भाटे को धीमा करते रहे. मैंग्रोव समुद्र और शहर के बीच एक सुरक्षात्मक दीवार का काम करते रहे. लेकिन विकास ने भारी नुकसान पहुंचाया है. पिछले कुछ दशकों में शहर के 40 प्रतिशत से ज्यादा मैंग्रोव गायब हो गए हैं. उन्हें अक्सर आवासीय परियोजनाओं, कूड़ाघरों या बुनियादी ढांचे के लिए अवैध रूप से साफ कर दिया जाता है. यह एक व्यावहारिक नुकसान है जिसके दुष्परिणाम दिखाई देते हैं. इनके बिना पानी जो कभी फैलने की जगह रखता था अब घरों और सड़कों पर भर जाता है.
मौसम का बदलता पैटर्न
अरब सागर में गर्मी बढ़ रही है और भले ही यह दूर की बात लगे लेकिन यह बदल रहा है. इसे ऐसे समझें- गर्म होता समुद्र एक विशाल भाप मशीन की तरह काम करता है. यह हवा में और नमी छोड़ता है जो फिर तेज और अचानक बारिश में बदल जाती है. पहले मुंबई में बारिश लगातार लहरों के रूप में आती थी. पिछले कुछ वर्षों में मुंबई में बारिश का पैटर्न बदल गया है. अब कम समय में बहुत ज्यादा बारिश हो रही है, जिससे ड्रेनेज सिस्टम पर बहुत ज्यादा दबाव पड़ता है. अरब सागर में बने कम दबाव वाले क्षेत्र और अन्य मौसमी प्रणालियां मानसूनी हवाओं को और तेज कर देती हैं, जिससे मुंबई में मूसलाधार बारिश होती है. अब, अक्सर एक साथ बरसती है, मानो आसमान खुल गया हो. जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि 1950 के दशक से ये तीव्र वर्षा-तूफान तीन गुना बढ़ गए हैं और ये और भी आम होते जाएंगे.
मीठी नदी का अतिक्रमण और अन्य कारण
मीठी नदी मुंबई के लिए एक महत्वपूर्ण जल निकासी चैनल है. लेकिन उसके किनारे अतिक्रमण और कचरे से भरे हुए हैं. इससे नदी की गहराई और चौड़ाई कम हो गई है, जिससे वह भारी बारिश का पानी नहीं संभाल पाती. मुंबई के नालों में अक्सर प्लास्टिक और अन्य कचरा जमा हो जाता है, जिससे पानी का बहाव रुक जाता है और जलभराव की समस्या बढ़ जाती है. हर साल बारिश से पहले नालों की सफाई के दावे किए जाते हैं, लेकिन अक्सर यह काम अधूरा रह जाता है. जिससे जल निकासी प्रणाली की क्षमता कम हो जाती है. जहां पानी निकालने के लिए एडवांस पंप मौजूद हैं वहां भी उन्हें अक्सर समय पर चालू नहीं किया जाता. ये सभी कारक मिलकर मुंबई में बारिश के दौरान बाढ़ और जलभराव का कारण बनते हैं.
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
August 21, 2025, 12:54 IST