Last Updated:August 21, 2025, 11:33 IST
Presidential Reference Case: गवर्नर को विधानसभा से पारित विधेयक को मंजूरी देने के लिए कितने समय तक अपने पास रख सकता है? इस मामले में अब प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सीजेआई जस्टिस बीआर गवई की पीठ सुनवाई कर रही है.

Presidential Reference Case: विधानसभा से पारित विधेयक को राज्यपाल मंजूरी देने के लिए अनिश्चित काल तक तक अपने पास रख सकते हैं? इस मुद्दे पर उठे संवैधानिक सवाल का अब सुप्रीम कोर्ट की पीठ जवाब तलाश रही है. सुप्रीम कोर्ट की दो जजों पीठ ने इस मामले में गवर्नर के लिए समयसीमा तय कर दी थी. इसपर राष्ट्रपति ने प्रेसिडेंशियल रेफरेंस के तहत दिए गए संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट से 14 सवालों का जवाब मांगा है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की पीठ इसपर सुनवाई कर रही है. सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की ओर से ऐसी दलील दी गई, जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से सवाल पूछा कि क्या चुनी हुई सरकार को राज्यपाल के भरोसे छोड़ा जा सकता है. बता दें कि तमिलनाडु, केरल, पंजाब जैसे राज्यों की विधानसभाओं से पास विधेयक को राज्यपाल ने अपने पास रोके रखा. अब यह मामला राष्ट्रपति भवन होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है.
प्रेसिडेंशियल रेफरेंस केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह महत्वपूर्ण सवाल पूछा कि क्या एक निर्वाचित सरकार को केवल राज्यपाल की मनमानी पर छोड़ दिया जा सकता है, यदि उसे किसी विधेयक पर अनिश्चितकाल तक असहमति जताने का अधिकार मिल जाए. सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल किसी विधेयक पर सहमति दे सकते हैं, उसे राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं, पुनर्विचार के लिए लौटा सकते हैं या फिर उसे रोक सकते हैं. उन्होंने कहा कि यदि राज्यपाल सहमति रोकते हैं तो वह विधेयक गिर जाता है और उसे दोबारा वापस लाने का कोई रास्ता नहीं रहता.
सुप्रीम कोर्ट का सवाल
एसजी तुषार मेहता की दलील पर CJI बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सवाल किया कि तो क्या इसका मतलब यह हुआ कि बहुमत से चुनी हुई सरकार भी राज्यपाल की मर्जी पर निर्भर होगी? क्या हम राज्यपाल को अपील अथॉरिट जैसा बना रहे हैं? इस पीठ में सीजेआई गवई के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदूरकर भी शामिल हैं. तुषार मेहता ने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि कोई सीमावर्ती राज्य विदेश नीति से जुड़े मुद्दे पर विधेयक पारित कर दे तो राज्यपाल उस पर सहमति नहीं दे सकते. ऐसे में उनके पास केवल ‘withhold’ यानी रोकने का ही विकल्प बचता है. उन्होंने स्पष्ट किया कि यह अधिकार बहुत कम और दुर्लभ परिस्थितियों में प्रयोग किया जाना चाहिए, लेकिन यह संवैधानिक रूप से निहित शक्ति है.
बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
August 21, 2025, 11:22 IST