अंजली की कहानीः पति ने छोड़ा, डॉक्टर ने शेरनी नाम दिया और फिर कैंसर को हराया

1 week ago

शिमला. जिस के लिए अंजली ने परिवार वालों से लड़ाई की और मर्जी से शादी कि मुश्किल वक्त में उसने भी उसका साथ छोड़ दिया. जब कुछ नहीं सूझा तो घर से आकर पहाड़ों की रानी को डेरा बना लिया. हालांकि, मुश्किलें कम नहीं हुई. मुश्किलों से लड़ी और एक बड़ी जंग जीत ली. कहानी कैंसर सर्वाइवर अंजलि की है. जो कि हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में रहती हैं.अंजली ने न्यूज18 के साथ अपनी पूरी कहानी शेयर की.

दरअसल, 22-23 साल की उम्र में अंजली को गर्भाशय का कैंसर हो गया था. इस खबर के बाद अंजली के पति ने उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया और मरने के लिए छोड़ दिया. लेकिन अंजली ने हार नहीं मानी. उसने न केवल कैंसर को हराया बल्कि जीवन की हर चुनौती का सामना किया.मूल रूप से अंजली बिहार की रहने वाली है. उनकी कहानी बहुत दर्दनाक है.

अंजलि का कहना है कि अगर ये कठिनाई नहीं आई होती तो उन्हें जिंदगी की लड़ाई लड़ने की सीख नहीं मिलती. शिमला में लोगों के घरों में काम करने वाली अंजली ने अपनी मर्जी से शादी की थी, लेकिन उन्हें क्या पता था कि एक दिन उन्हें अपना जीवन बचाने के लिए बिहार से भागकर अकेले शिमला आना पड़ेगा. ट्रेन के किराए के लिए गहने तक बेचने पड़े. आर्थिक तंगी के बीच इलाज के लिए बिना किसी तीमारदार के अस्पताल जाना पड़ा. इस सब के बीच शिमला में मकान मालिक, पड़ोसियों, समाजसेवियों और डॉक्टरों ने उनकी मदद की.

अंजली ने News 18 को बताया कि शादी के बाद वो अपने पति के साथ शिमला आई थी. उनके पति यहां लकड़ी का काम करते थे. साल 2007 में जब उनकी उम्र 22-23 साल की थी, तब पता चला कि उन्हें यूट्रस का कैंसर है. हालांकि अंजली के पति को ये बात डॉक्टरों ने बता दी थी, लेकिन उन्होंने इसे छुपा कर रखा और केवल सामान्य दवाई खाने के लिए कहा.

पति ने अंजलि से छुपाई थी बात

अंजली गर्भवती थीं और गर्भपात के बाद अस्पताल गईं. वहां जांच के दौरान पता चला कि उन्हें कैंसर है, लेकिन उनके पति ने ये बात उनसे छुपाई. पड़ोस में रहने वाली सनु दीदी ने अंजलि को कमला नेहरू अस्पताल जाने की सलाह दी, जहां डॉक्टर ने बताया कि उनके पति को कैंसर के बारे में पहले ही बताया गया था. ये सुनकर अंजली के पैरों तले जमीन खिसक गई. इसके बाद अंजली का पति उन्हें बिहार के सिवान जिला ले गया, जहां उसने अंजली को बहुत प्रताड़ित किया और मरने के लिए छोड़ दिया. अंजली पूरी तरह से अकेली पड़ गई थीं. किसी जान-पहचान वाले ने उन्हें एक एनजीओ के बारे में बताया, लेकिन वहां भी कोई खास मदद नहीं मिली. इलाज के लिए केवल एक बार पटना ले जाया गया. अंजली ने ठान लिया कि अगर मरना ही है तो कुछ करके मरेंगी. उन्होंने शिमला वापस आने का फैसला किया, लेकिन ट्रेन के किराए तक के पैसे नहीं थे.

अंजली ने एनजीओ के एक सिक्योरिटी गार्ड के जरिए अपनी अंगूठी, पायल और कान के आभूषण बेचे और फिर एक रात को मौका पाकर वहां से भागीं और सीधे सिवान रेलवे स्टेशन पहुंचीं. वहां से ट्रेन पकड़कर शिमला पहुंचीं. अंजली ने दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई की है.

मकान मालिक और पड़ोसियों ने मदद की

शिमला में सबसे पहले समरहिल के सांगटी क्षेत्र में पहुंचीं, जहां वो अपने पति के साथ किराए के कमरे में रहती थीं. मकान मालिक और पड़ोसियों ने उनकी मदद की. मकान मालिक दिनेश पंवर, उनके भाई हिमांशु पंवर, उनकी पत्नी और बच्चों ने अंजली का इलाज फिर से शुरू करवाया. अंजली बताती हैं कि आईजीएमसी के कैंसर अस्पताल में कीमोथैरेपी के दौरान उनके सिर के सारे बाल गिर गए थे, कई बार उल्टी आती थी, चक्कर आते थे, कुछ भी खाया नहीं जाता था, असहनीय पीड़ा होती थी, बार-बार शौच के लिए जाना पड़ता था. कोई तीमारदार साथ नहीं था, लेकिन फिर भी कोई न कोई मदद कर देता था. जब कोई नहीं होता था तो खुद ही कीमो की बोतल लेकर दीवार के सहारे शौचालय तक चली जाती थीं. कैंसर अस्पताल में कार्यरत डॉ. मनीश गुप्ता ने भी अंजली की काफी मदद की.

अंजली बताती हैं कि डॉ. मनीश उन्हें शेरनी कहकर बुलाते थे. कुछ समय के लिए एक डॉक्टर कोलकाता से यहां आए थे, जो हर रोज अंजली के लिए टॉफी लेकर आते थे. साल 2010 के पहले दिन उन्होंने अंजली को एक तोहफा भी दिया, जिससे अंजली को पता चला कि आज नया साल शुरू हो रहा है.

लोगों ने मदद की और दवाओं का खर्च भी उठाया

अंजली ने बताया कि कैंसर अस्पताल में महिलाओं का एक ग्रुप आता था, जो मरीजों की मदद करता था. उन महिलाओं ने भी अंजली की काफी मदद की. जो दवाइयां और इंजेक्शन बाहर से खरीदने पड़ते थे, उनके पैसे ये महिलाएं देती थीं. अंजली ने बताया कि नाम तो उनके याद नहीं हैं, लेकिन आपस में किसी को मिसेज परमार, मिसेज प्रेम, मिसेज वकील और रूचिका कहकर बुलाते थे. उनमें से रूचिका नाम की महिला की शिमला के लोअर बाजार में टांगरी ज्वैलर नाम की एक दुकान है. ये महिलाएं हफ्ते में दो बार कैंसर अस्पताल आती थीं और मरीजों की मदद करती थीं. अंजली ने बताया कि दिसंबर 2009 में उनकी कीमोथैरेपी शुरू हुई थी, जो मई 2010 तक चली. उसके बाद उनका इलाज कमला नेहरू अस्पताल में हुआ. यहां पर अंजली की मुलाकात समाज सेविका बिमला ठाकुर से हुई. अंजली के ऑपरेशन के बाद 1 हफ्ते तक बिमला ठाकुर ने अस्पताल में अंजली की देखभाल की थी.

मकान मालिक ने नहीं लिया किराया

अंजली ने बताया कि ऑपरेशन के बाद एक महीना तक केएनएच अस्पताल में ही रहीं. उसके बाद वापस किराए के मकान में आ गईं. मकान मालिक उनसे कमरे का किराया नहीं लेते थे बल्कि मदद करते थे. कभी राशन देते थे, कभी खाना लेकर आते थे. पड़ोस में रहने वाली लता दीदी, ईश्वर भाई और राजू भाई ने भी बहुत मदद की. राजू भाई बिहार के ही रहने वाले हैं और शिमला में लकड़ी का काम करते हैं. अंजली ने बताया कि ऑपरेशन के बाद जैसे ही कुछ आराम आता तो वो बैठकर कागज के लिफाफे बनाती थीं. एक दिन में करीब 40 लिफाफे बनाती थीं, जिसे पड़ोस के दुकानदार को बेचती थीं. 40 लिफाफे बेचकर 7-8 रुपये मिलते थे, जिससे कभी दूध खरीद लेती थीं तो कभी सब्जी. जब पूरी तरह से ठीक हुईं तो फिर काम ढूंढा, लोगों के घरों में काम करना शुरू किया.

अंजली कहती हैं कि पीछे मुड़कर जब देखती हूं तो मेरी पिछली जिंदगी मुझे आगे बढ़ने और लड़ने का हौंसला देती है. मेरे साथ जब कोई नहीं था तो मैंने खुद चलना शुरू किया, हिम्मत की, गिरते-पड़ते-संभलते आगे बढ़ती रही लेकिन हार नहीं मानी. शायद ये मेरी किस्मत थी कि इतने सारे लोगों का साथ भी मिला. अब पूरी तरह से अपनी जिंदगी से खुश हूं, अपने पैरों पर खड़ी हूं. अब मुझसे जितनी मदद हो सकती है, मैं करती हूं. जीवन में सकारात्मक सोच रखना बेहद जरूरी होता है और भगवान भी साथ देता है. अब किसी कष्ट से डर नहीं लगता है. इतना कहने के बाद अंजली ने दोनों हाथ जोड़कर देवभूमि हिमाचल और शिमला के लोगों को प्रणाम किया.

अंजली हम सबके लिए बहुत बड़ी मिसाल

समाज सेविका बिमला ठाकुर ने बताया कि अंजली हम सबके लिए बहुत बड़ी मिसाल हैं. अंजली को जब पहली बार देखा तो एक झटका सा लगा था कि इतनी कम उम्र की लड़की के साथ ऐसा कैसे हो सकता है. भगवान अगर है तो इतना क्रूर क्यों है. बिमला ठाकुर ने कहा कि किसी महिला का जब ऑपरेशन के जरिए यूट्रस रिमूव किया जाता है तो उस महिला को कम से कम 4 महीने तक कम्पलीट रेस्ट करना होता है, लेकिन अंजली का ऐसा नसीब नहीं था. उसे तो फिर भी काम करना पड़ा. उन्होंने कहा कि अंजली उन लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं जिनके पास सबकुछ होता है, लेकिन फिर भी हिम्मत हार जाते हैं. कमला नेहरू अस्पताल में कार्यरत स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. आर.जे. महाजन ने कहा कि अंजली दो बार मौत के मुंह से निकल कर आई हैं और आज आत्मविश्वास के साथ जीवन जी रही हैं. उन्होंने कहा कि महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के बारे में सजग रहने की जरूरत है. वर्तमान में सुविधाएं काफी हैं, लेकिन जरूरी है कि महिलाएं समय-समय पर अपना चेकअप करवाती रहें.

IGMC के कैंसर अस्पताल के प्रोफेसर डॉ. मनीष गुप्ता क्या बोले

आईजीएमसी के कैंसर अस्पताल के प्रोफेसर और हेड डॉ. मनीष गुप्ता ने कहा कि अंजली के बारे में ज्यादा याद तो नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि उनका संघर्ष प्रेरणादायी है. उन्होंने कहा कि हमारे समाज में महिलाएं अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता नहीं देती हैं. अपने स्वास्थ्य को दूसरे या तीसरे नंबर पर रखती हैं. यहां पर ज्यादातर महिलाएं तब पहुंचती हैं जब कैंसर की स्टेज बढ़ गई होती है. अगर समय रहते महिलाएं या पुरुष इलाज के लिए पहुंचे तो 100 में से 80 कैंसर के मरीज ठीक हो सकते हैं. अपने इलाज को इसलिए न टालें कि अभी बेटा या बेटी के एग्जाम हैं या शादी है. जब भी परेशानी महसूस हो तुरंत इलाज के लिए अस्पताल आएं और नियमित रूप से स्वास्थ्य जांच करवाते रहें. अंजली जैसी हिम्मत और दृढ़ इच्छा शक्ति बेहद जरूरी है. अंजली की कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयां आएं, हमें हार नहीं माननी चाहिए. सकारात्मक सोच और दृढ़ संकल्प से हर मुश्किल का सामना किया जा सकता है.

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