Last Updated:July 15, 2025, 14:45 IST
ओडिशा की निर्भया ने यौन उत्पीड़न के बाद न्याय न मिलने पर खुद को आग लगा ली. 95% झुलसी छात्रा ने 14 जुलाई को दम तोड़ा. उसकी मौत ने सिस्टम की खामियों को उजागर किया और लोगों में गुस्सा भर दिया.

हाइलाइट्स
ओडिशा की निर्भया ने न्याय न मिलने पर खुद को आग लगाई.95% झुलसी छात्रा ने 14 जुलाई को दम तोड़ा.उसकी मौत ने सिस्टम की खामियों को उजागर किया.अभी तो गंजाम का गुस्सा भी ठंडा नहीं पड़ा था. समंदर किनारे लहरों का आनंद ले रही 20 साल की कॉलेज स्टूडेंट आज भी ट्रॉमा में है. अपने बॉयफ्रेंड के साथ बीच घूमने गई इस लड़की को दस हैवानों ने घेर लिया. उसके दोस्त के हाथ -पैर बांध दिए. फिर एक के बाद एक सबने उस बेबस लड़की की इज्जत लूट ली. गोपालपुर बीच पर निर्मम और वीभत्स घटना के कुछ ही दिनों बाद बालासोर की बिटिया निशाने पर आई. कोई और नहीं बल्कि उसके टीचर की गंदी नजर ओडिशा की निर्भया पर थी. उसने एक जुलाई को ही फकीर मोहन कॉलेज में बीएड के हेड ऑफ डिपार्टमेंट पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. इंटरनल शिकायत कमेटी ने इस पर चुप्पी साधी. उसका दर्द इतना गहरा था कि उसने न्याय न मिलने पर जान देने की बात भी चिट्ठी में लिख दी थी. लेकिन प्रिंसिपल दिलीप घोष और कमेटी चुप रही. न्याय न मिलने की उम्मीद ऐसी टूटी कि उस लड़की ने कैंपस में ही खुद को आग के हवाले कर दिया. 95 परसेंट झुलसी इस स्टूडेंट ने 14 जुलाई की आधी रात भुवनेश्वर एम्स में दम तोड़ दिया.
दस दिनों तक दर्द से कराहती उस बच्ची के बारे जरा सोजिए. वो एक होनहार छात्रा थी जिसका भविष्य उज्जवल था. जिंदा रहती तो कहीं पढ़ाती. सैंकड़ों बच्चों को आगे बढ़ाती. लेकिन हार गई तो अपने सिस्टम से. जब उसे लगा कि मदद करने वाला कोई नहीं है तो उसने अपने लिए सबसे भयानक फैसला कर लिया. कॉलेज कैंपस में उसका शरीर नहीं जला बल्कि लचर सिस्टम भी स्वाहा हुआ.
उसकी मौत के साथ ही उसकी आवाज भी चली गई. जब उसकी मौत की खबर फैली तो दुख और गुस्से से लोग फट पड़े. नेता राजनीति करना चाहते हैं तो वो भी कूद पड़े. ज्वाला बनी निर्भया का कछ सेकंड्स वाला वीडियो सिहरन पैदा कर रहा है. मौत की खबर के बाद ये और वायरल हो रहा. क्या पता ये सिस्टम सुधारने में शायद मदद करे. ये अकेले उसकी कहानी नहीं है. कोलकाता से लेकर देश के हर उस हिस्से की कहानी है जहां मां सरस्वती के मंदिर सरीखे संस्थानों में आबरू लूटी जाती है.
आज उसका पार्थिव शरीर गांव पहुंचा है. अंगार बने आंसू आप इस तस्वीर में देख सकते हैं. उसका परिवार दुखी है लेकिन हिम्मत रखते हुए प्रदर्शन में शामिल हुआ. दोस्तों ने बताया कि वह शांत लेकिन मजबूत थी. क्या उसकी कुर्बानी कुछ बदल सकती है? सरकार ने जांच का वादा किया है, लेकिन लोग शक में हैं—क्या सचमुच न्याय होगा? गुस्सा अभी भी हवा में है, और लोग उस शिक्षक और सिस्टम से जवाब मांग रहे हैं.
https://x.com/RahulGandhi/status/1944972620924911929
उसकी याद क्या सिखाएगी? यह हमें दिखाता है कि बोलने की हिम्मत कितनी जरूरी है, और जब समाज अनदेखा करे तो क्या होता है. उसकी कहानी एक मुस्कान से शुरू होती है, जो उत्पीड़न से दुख में बदल गई. आज वो हमारे बीच नहीं है लेकिन उसकी चिट्ठी और फोटो अब उसकी लड़ाई की निशानी हैं.
आलोक कुमारEditor
आलोक कुमार न्यूज 18 में हिंदी डिजिटल के संपादक हैं. इनके जिम्मे कई स्पेशल प्रोजेक्ट्स हैं. पिछले दो दशकों में यूनीवार्ता, बीबीसी, सहारा, टीवी 9, टाइम्स नेटवर्क और जी ग्रुप में अलग-अलग भूमिकाओं में रहे हैं.
आलोक कुमार न्यूज 18 में हिंदी डिजिटल के संपादक हैं. इनके जिम्मे कई स्पेशल प्रोजेक्ट्स हैं. पिछले दो दशकों में यूनीवार्ता, बीबीसी, सहारा, टीवी 9, टाइम्स नेटवर्क और जी ग्रुप में अलग-अलग भूमिकाओं में रहे हैं.