कौन हैं सर गंगा राम? इस हिंदू का पाकिस्तानी आज भी लेते हैं इज्जत से नाम

6 hours ago

Last Updated:July 10, 2025, 15:15 IST

Sir Ganga Ram Death Anniversary: मशहूर समाजसेवा और सिविल इंजीनियर गंगा राम की आज यानी 10 जुलाई को पुण्य तिथि है. उन्होंने जो काम लाहौर के लिए किए उसकी वजह सी पाकिस्तान में लोग उन्हें बहुत इज्जत से याद करते हैं....और पढ़ें

कौन हैं सर गंगा राम? इस हिंदू का पाकिस्तानी आज भी लेते हैं इज्जत से नाम

सर गंगा राम और उनका बनवाया लाहौर म्यूजियम.

हाइलाइट्स

सर गंगा राम की पुण्य तिथि 10 जुलाई को हैलाहौर में सर गंगा राम अस्पताल 1921 में बनासर गंगा राम ने लाहौर को आधुनिक शहर बनाने में योगदान दिया

Sir Ganga Ram Death Anniversary: भारत और पाकिस्तान में कुछ ही ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्होंने विभाजन के बाद सीमा के दोनों ओर अपनी अमिट विरासत छोड़ी है. उनमें से एक हैं सर गंगा राम, जो एक सिविल इंजीनियर और परोपकारी व्यक्ति थे. उनकी छाप पाकिस्तान के लाहौर के साथ-साथ दिल्ली में भी देखी जा सकती है. दिल्ली के मशहूर सर गंगा राम अस्पताल के बारे में तो बहुत से लोग जानते हैं, लेकिन लाहौर में भी ऐसा ही एक अस्पताल है. लाहौर का अस्पताल सर गंगा राम ने 1921 में बनवाया था. दिल्ली में उनके सम्मान में बनाए गए अस्पताल से 30 साल पहले. लाहौर के सर गंगा राम अस्पताल में हर रोज हजारों मरीज अपना इलाज कराने आते हैं. 

लाहौर एक ऐसा शहर है जिसका इतिहास समृद्ध और रोचक है. इसने सदियों से अपने इतिहास में महान लोगों की निशानियां संजोकर रखी हैं. सर गंगा राम ऐसे ही एक व्यक्ति थे, जिन्होंने लाहौर को एक आधुनिक शहर के रूप में विकसित करने में बहुत बड़ा योगदान दिया. हम कह सकते हैं कि उनके समय में लाहौर ने वास्तुकला की एक नई शैली और ऊंचाई देखी. लाहौर में स्थित गंगा राम अस्पताल के कारण लाखों लोग उनके नाम से परिचित हैं. दुविधा यह है कि शायद ही बहुत कम लोग जानते होंगे कि वह कौन थे. इंजीनियर होने के साथ इतिहास में उन्हें एक होनहार कृषक के रूप में जाना जाता है. उन्होंने हजारों एकड़ बंजर जमीन को अपने इंजीनियरिंग कौशल और आधुनिक सिंचाई विधियों का उपयोग करके उपजाऊ खेतों में बदल दिया.

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लाहौर को समर्पित जीवन
सर गंगा राम ने एक इंजीनियर और एक दानदाता के रूप में अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा लाहौर को समर्पित किया. उन्हें लाहौर हाईकोर्ट, लाहौर म्यूजियम, एचिसन कॉलेज, जनरल पोस्ट ऑफिस और कैथेड्रल आदि के डिजाइन और निर्माण का श्रेय दिया जाता है. उन्होंने मेयो स्कूल ऑफ आर्ट्स (अब एनसीए), गवर्नमेंट कॉलेज यूनिवर्सिटी का केमिस्ट्री डिपार्टमेंट, मेयो अस्पताल का अल्बर्ट विक्टर विंग, हैली कॉलेज ऑफ कॉमर्स, विकलांगों के लिए रवि रोड हाउस, द मॉल पर गंगा राम ट्रस्ट बिल्डिंग और लेडी मेनार्ड इंडस्ट्रियल स्कूल का डिजाइन और निर्माण किया. उन्होंने सर गंगा राम अस्पताल, लेडी मैक्लेगन स्कूल और रेनाला खुर्द पावर हाउस का निर्माण अपने पैसों से करवाया. सर गंगा राम ने लाहौर के सबसे पॉश इलाकों में से एक मॉडल टाउन का भी निर्माण किया था. उन्होंने इन इमारतों के अलावा लाहौर को नए जल संयंत्र भी दिए. गंगा राम ने पठानकोट और अमृतसर के बीच रेलवे ट्रैक का निर्माण भी किया. वह बारह वर्षों तक लाहौर के एक्जीक्यूटिव इंजीनियर रहे. इस अवधि को ‘वास्तुकला का गंगा राम काल’ कहा जाता है.

लाहौर में सर गंगा राम अस्पताल.

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बनाया गंगा राम ट्रस्ट
गंगा राम जितने बड़े इंजीनियर थे समाज के प्रति भी उनके सरोकार उतने ही ज्यादा थे. वह बड़े पैमाने पर लोगों की सहायता करना चाहते थे. उनकी दिली ख्वाहिश थी कोई ऐसा काम करें जिससे लोगों की जिंदगी में कोई प्रभाव पड़े. इसी वजह से उन्होंने 1923 में गंगा राम ट्रस्ट की स्थापना की. गंगा राम ट्रस्ट ने लाहौर शहर के बीचों बीच सर गंगा राम चैरिटेबल अस्पताल की नींव रखी. आगे चल कर ये आधुनिक सुविधाओं से लैस अस्पताल बन गया. बाद में दिल्ली में भी सर गंगा राम अस्पताल का निर्माण किया गया. मौजूदा समय में जितना नाम दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल का नाम है, उतना ही मशहूर लाहौर वाला अस्पताल भी है. पाकिस्तान भले ही भारत के साथ दुश्मनी का भाव रखता हो, लेकिन लाहौर के लोग आज भी सर गंगा राम का नाम बेहद इज्जत से लेते हैं. 

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रुड़की से की इंजीनियरिंग
सर गंगा राम अग्रवाल का जन्म 13 अप्रैल 1851 में पाकिस्तान के पंजाब के एक गांव मंगतनवाला में हुआ था. उनके पिता दौलत राम अग्रवाल मंगतनवाला के एक पुलिस स्टेशन में जूनियर सब इंस्पेक्टर थे. बाद में, वे अमृतसर चले गए और अदालत के कॉपी-राइटर बन गए. यहां गंगा राम ने गवर्नमेंट हाई स्कूल से अपनी मैट्रिक की परीक्षा पास की और 1869 में गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर में दाखिला लिया. 1871 में उन्हें रुड़की के थॉमसन सिविल इंजीनियरिंग कॉलेज में स्कॉलरशिप मिली. उन्होंने 1873 में स्वर्ण पदक के साथ अंतिम निचली अधीनस्थ परीक्षा उत्तीर्ण की. उन्हें असिस्टेंट इंजीनियर नियुक्त किया गया और इंपीरियल असेंबली के निर्माण में मदद करने के लिए दिल्ली बुलाया गया.

लाहौर में सर गंगा राम का बनवाया हुआ जनरल पोस्ट ऑफिस.

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बंजर जमीन को बनाया उपजाऊ
पंजाब पीडब्ल्यूडी में संक्षिप्त सेवा के बाद उन्होंने खुद को खेती के लिए समर्पित कर दिया. उन्होंने मोंटगोमरी जिले अब फैसलाबाद) में सरकार से 50,000 एकड़ बंजर भूमि पट्टे पर ली और तीन साल के भीतर उस विशाल रेगिस्तान को मुस्कुराते हुए खेतों में बदल दिया. जिसकी सिंचाई एक जलविद्युत संयंत्र द्वारा निकाले गए पानी से होती थी. यह पानी एक हजार मील लंबी सिंचाई नहरों से होकर गुजरता था, जिसका निर्माण उन्होंने खुद किया था. यह अपनी तरह का सबसे बड़ा निजी उद्यम था, जो पहले देश में अज्ञात और अकल्पनीय था. सर गंगा राम ने लाखों रुपये कमाए जिनमें से अधिकांश उन्होंने दान में दे दिए. पंजाब के गवर्नर सर मैल्कम हैली के शब्दों में, “वह एक नायक की तरह जिए और एक संत की तरह दिया.” 

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बाद में दिल्ली आ गया परिवार
सर गंगा राम का निधन 10 जुलाई 1927 में लंदन में हुआ. 1947 के विभाजन के दौरान उनका परिवार दिल्ली आ गया. हालांकि, उनकी विरासत लाहौर शहर से जुड़ी रही. लेखक सआदत हसन मंटो ने अपनी कहानी ‘द गारलैंड’ में उनके योगदान को बखूबी दर्ज किया है. कहानी में मंटो ने विभाजन के दौरान की एक सच्ची घटना का वर्णन किया है. बढ़ते तनाव के बीच भीड़ ने लाहौर में सर गंगा राम के अस्पताल के सामने उनकी प्रतिमा को तोड़ने का प्रयास किया. हालांकि, इस घटना के दौरान उनमें से एक व्यक्ति घायल हो गया. जैसे ही घायल व्यक्ति गिरता है, भीड़ चिल्लाती है, “चलो उसे सर गंगा राम अस्पताल ले चलते हैं.” गंगा राम के सामाजिक कामों और उनके परोपकार करने से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘सर’ की उपाधि से सम्मानित किया. 

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लाहौर में रावी नदी के तट पर सर गंगा राम की समाधि.

लाहौर में अभी भी है गंगा राम हवेली
हाल ही में उनके निवास जो खंडहर में तब्दील हो चुका था एक व्यवसायी और एक वास्तुकार द्वारा जीर्णोद्धार किया गया. इतिहास के पन्नों में दर्ज गंगा राम हवेली का जीर्णोद्धार जून 2024 में पूरा हुआ. हवेली की जीर्णोद्धार परियोजना का नेतृत्व करने वाले फराज जैदी ने बताया कि दिलचस्प बात यह है कि विरासत का यह टुकड़ा लाहौर के हृदयस्थल गुलबर्ग में स्थित होने के बावजूद बहुत कम लोगों को इसके ऐतिहासिक महत्व का अंदाजा था. जैदी ने इंडिया टुडे को बताया, “लाहौर के बीचोबीच ऐसी जगह के बारे में किसी को पता नहीं था. एक दिन मुझे पारुल दत्ता का फोन आया जो गंगा राम की परपोती हैं. उन्होंने मुझे धन्यवाद देते हुए कहा कि वे 20 साल से इस घर की तलाश कर रही थीं. वे और उनके कुछ रिश्तेदार लाहौर आए और हमारे साथ पांच दिन तक रहे. यह देखकर अच्छा लगा कि सीमा के दूसरी तरफ लोग हमारे काम की सराहना कर रहे हैं.”

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New Delhi,Delhi

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