पटना. बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर का हाल रामायण के ‘काकभुशुंडि’ वाले पात्र की तरह होता जा रहा है, जिसमें कथा सुनाते-सुनाते यश मिलने के बजाए अपयश मिलने लगता है. राजनीति में आने के बाद ‘पीके’ जिस काम में भी हाथ डालते हैं, परिणाम विपरीत आ जाता है. बिहार में हजारों किलोमीटर पैदल यात्रा कर प्रशांत किशोर ने जनसुराज पार्टी का गठन किया. लेकिन, हाल ही में बिहार विधानसभा की चार सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे के बाद पीके का बिहार में राजनीतिक भविष्य डगमगाने लगा है. बड़ी उम्मीद से जनसुराज पार्टी ज्वाइन करने वाले नेता अब पार्टी छोड़कर जाने लगे हैं. इस बीच पीके ने अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने के लिए बीपीएससी परीक्षा रद्द कराने की मांग कर रहे छात्रों का साथ दिया तो बदनामी मिलने लगी. पीके भी खान सर और रहमान सर की तरह छात्रों के आंदोलन में शरीक होने आए थे, लेकिन रविवार को लाठीचार्ज के बाद से वह विलेन बन गए हैं.
रविवार की घटना के बाद छात्रों के साथ-साथ राजनीतिक दलों के नेता भी पीके पर पीठ दिखाकर भागने का आरोप लगा रहे हैं. प्रशांत किशोर आए तो थे छात्रों के बीच हीरो बनने, लेकिन अब वह छात्रों के विलेन बनते दिख रहे हैं. क्योंकि, छात्रों के साथ-साथ कई पार्टियों के नेताओं ने भी पीके को निशाने पर लिया है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या बिहार की राजनीति में पीके अभी भी फिट नहीं बैठ रहे हैं? युवाओं में पैठ बनाने चले थे, लेकिन छात्रों ने गो बैक-गो बैक के नारे क्यों लगाए? क्या प्रशांत किशोर की राजनीति बिहार में भटक गई है या विपक्षी दल पीके पर आरोप लगा-लगाकर भटकाना चाहते हैं?
प्रशांत किशोर की राजनीति किधर जा रही है?
बिहार की राजधानी पटना में बीते 18 दिसंबर से बीपीएससी परीक्षा रद्द करने की मांग को लेकर छात्र प्रदर्शन कर रहे हैं. वहीं, बीपीएससी पहले ही साफ कर चुकी है कि पटना के जिस सेंटर पर बीपीएससी प्रश्नपत्र फाड़े गए थे और जिस सेंटर पर हंगामा हुआ था, सिर्फ उसी सेंटर के परीक्षार्थियों के लिए दोबारा से एग्जाम कंडक्ट होंगे. लेकिन, छात्र पूरे राज्य के करीब 900 सेंटर्स के एग्जाम रद्द करने की मांग कर रहे हैं. छात्रों को विपक्षी दलों के नेताओं का समर्थन मिल रहा है. प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी ने भी बीते रविवार को पटना में छात्रों के प्रदर्शन में बढ़ चढ़कर भाग लिया था. लेकिन, सोमवार को लाठीचार्ज से ठीक पहले प्रशांत किशोर धरना स्थल छोड़कर चले गए, जिससे छात्र उनके प्रति काफी नाराज हैं.
क्यों प्रशांत किशोर विपक्ष के निशाने पर हैं?
तेजस्वी यादव, पप्पू यादव और जेडीयू जैसी पार्टियां प्रशांत किशोर पर छात्रों के साथ छलावा करने का आरोप लगाया है. बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने तो प्रशांत किशोर को लेकर यहां तक कह दिया कि वह लाठीचार्ज के दौरान भाग गए. पप्पू यादव ने कहा कि प्रशांत की वजह से छात्रों पर लाठीचार्ज हुआ है. वहीं सत्ताधारी दल जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने तो प्रशांत किशोर को राजनीतिक भगोड़ा तक कह दिया.
तेजस्वी यादव ने क्यों बंद कर लिया नीतीश कुमार के लिए दरवाजा, पर्दे के पीछे क्या पक रहा था?
प्रशांत किशोर बेशक लाठीचार्ज को लेकर नीतीश कुमार पर तरह-तरह के आरोप लगा रहे हैं. लेकिन, सोमवार को पुलिस के लाठीचार्ज से कुछ ही मिनट पहले धरना स्थल से गायब होना कई सवाल खड़े कर रहे हैं. इस पर पीके कहते हैं, ‘मैंने छात्रों को भी समझाया था. मैं भागा नहीं था. क्योंकि, पांच छात्रों को मुख्य सचिव से वार्ता करनी थी. मैंने उन छात्रों से कहा था कि आपलोग बातचीत कीजिए. अगर बातचीत साकारात्मक नहीं रहती है तो फिर हमलोग आंदोलन की आगे की रूपरेखा तय करेंगे. लेकिन, अगर बातचीत बन जाती है तो आंदोलन करने की क्या जरूरत है? लेकिन, मेरी बातों को छात्र गलत तरीके से ले लिए. रही बात एफआईआर दर्ज करने की तो अगर छात्रों को हमने उकसाया है तो पुलिस गिरफ्तार कर ले.’
बिहार की मौजूदा राजनीति में प्रशांत किशोर की स्थिति रामायण में काकभुशुंडि वाले पत्र की तरह होता जा रहा है. काकभुशुंडि एक ऋषि थे, जो रामचरितमानस के पात्रों में से एक थे. काकभुशुंडि को राम के एक भक्त के रूप में जाना जाता है. लेकिन, शाप के कारण वह कौवा का रूप धारण कर लिए और जब भी प्रवचन देते कोई नहीं सुनता. क्योंकि, कौवा होने की वजह से उनके प्रवचन को गंभीरता से नहीं लेता था. लोगों को पता नहीं था कि काकभुशुंडि एक मुनि भी हैं, जो शिव के शाप की वजह से कौवा बन गए. ऐसे में बिहार की राजनीति में पीके यानी प्रशांत किशोर की भी स्थिति कमोबेश ‘काकभुशुंडि’ की तरह ही हो गई है, जिसके पास काबिलियत और ज्ञान का भंडार है, लेकिन कोई समझने वाला नहीं है.
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FIRST PUBLISHED :
December 31, 2024, 15:33 IST