Last Updated:August 08, 2025, 12:01 IST
Supreme court Vs Allahabad High Court: सुप्रीम कोर्ट ने अपना आदेश वापस लिया है, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज को क्रिमिनल केस से हटाने की बात कही गई थी. SC ने कहा मकसद शर्मिंदा करना नहीं था.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला वापस ले लिया, जो उसने खुद 4 अगस्त को दिया था. उस पहले फैसले में कोर्ट ने कहा था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज, जस्टिस प्रशांत कुमार को अब से लेकर रिटायरमेंट तक कोई भी क्रिमिनल केस नहीं सुनना चाहिए. इसके अलावा, उन्हें अब सीनियर जज के साथ ही बैठना चाहिए.
लेकिन जब इस आदेश पर काफी सवाल उठे, तो सुप्रीम कोर्ट को अपना ही फैसला बदलना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन थे, उन्होंने साफ किया कि वो इस आदेश को वापस ले रहे हैं.
CJI ने लिखी थी चिट्ठी
दरअसल, जब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के जज पर सख्त टिप्पणी की, तो इस पर काफी आलोचना हुई. फिर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने खुद जस्टिस पारदीवाला की बेंच को एक पत्र लिखा. इसमें उन्होंने आग्रह किया कि हाईकोर्ट के जज के खिलाफ दिए गए निर्देशों पर फिर से विचार किया जाए. इतना ही नहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट के 13 जजों ने भी अपने चीफ जस्टिस को लिखा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लागू न किया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मकसद सिर्फ सुधार करना था
फैसला देने के कुछ ही दिनों बाद, यानी 8 अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला वापस लिया है. जस्टिस पारदीवाला ने कहा- ‘हमारी मंशा किसी जज को शर्मिंदा करने या उन पर आरोप लगाने की नहीं थी. हम तो सिर्फ उस आदेश को ठीक करना चाहते थे, जो हमें गलत लगा.’ उन्होंने ये भी कहा कि जब बात न्यायपालिका की गरिमा की आती है, तो सुप्रीम कोर्ट को संविधान के तहत कार्रवाई करनी ही पड़ती है.
हाईकोर्ट के आदेश को कहा था ‘गलती’
सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को ‘एकदम गलत और कानून के खिलाफ’ बताया था. कोर्ट ने कहा कि जब किसी जज का फैसला इतनी बड़ी गलती करता है कि उससे न्यायपालिका की साख पर असर पड़ता है. ऐसे में उसमें दखल जरूरी हो जाता है.
हाईकोर्ट से क्या कहा?
फैसले में कहा गया कि देश के 90% केसों के लिए हाईकोर्ट ही आखिरी अदालत होती है. सिर्फ 10% लोग ही सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच पाते हैं. इसलिए हाईकोर्ट के जजों की जिम्मेदारी ज्यादा बड़ी होती है. कोर्ट ने यह भी कहा था, ‘हाईकोर्ट इस संस्थान से अलग नहीं है. हम जो कुछ कह रहे हैं, वो न्यायपालिका की इज्जत बनाए रखने के लिए है.’
CJI के कहने पर हटाया गया सख्त निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि CJI के आग्रह को सम्मान देते हुए, 4 अगस्त के फैसले की पैराग्राफ 25 और 26 को हटा दिया गया है. अब इस मामले को कैसे आगे बढ़ाना है, ये इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पर छोड़ दिया गया है. कोर्ट ने साफ किया कि हम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के अधिकार में कोई दखल नहीं देना चाहते. लेकिन जब किसी फैसले से इंस्टीट्यूशन की साख पर असर पड़ता है, तो सुधार जरूरी हो जाता है.
क्या था पूरा मामला?
इस केस की शुरुआत हुई थी एक कंपनी, ललिता टेक्सटाइल्स की शिकायत से. इस कंपनी ने एक दूसरी पार्टी पर 7 लाख 23 हजार रुपए न चुकाने का आरोप लगाया. ये पैसे धागा सप्लाई करने के बदले में देने थे. कंपनी ने क्रिमिनल केस दर्ज कराया और जब आरोपी हाईकोर्ट पहुंचा, तो जस्टिस प्रशांत कुमार ने कहा कि ये मामूली मामला नहीं है. चूंकि शिकायत करने वाला एक छोटा व्यापारी है और केस लंबा चल सकता है, इसलिए इसे सिर्फ सिविल केस कहकर खारिज नहीं किया जा सकता.
उन्होंने कहा, ‘छोटे व्यापारी को सिविल कोर्ट में जाकर पैसे के लिए लड़ना, उसके लिए और भी घाटे का सौदा होगा. इससे तो उसका और नुकसान हो जाएगा.’
सुप्रीम कोर्ट को ये दलीलें समझ नहीं आईं
जस्टिस पारदीवाला की बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट का ये तर्क चौंकाने वाला है. अगर कोई जज कहता है कि सिविल केस लंबा चलेगा, इसलिए उसे क्रिमिनल केस मान लिया जाए- तो ये कानून की एकदम गलत समझ है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने बिना नोटिस दिए ही हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और कहा कि अब इस केस को कोई दूसरा जज सुनेगा.
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
August 08, 2025, 12:00 IST