Last Updated:January 15, 2025, 19:13 IST
Genome India Project: जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट के तहत 10,000 भारतीयों के जीनोम का अध्ययन किया जाएगा. इससे कई बीमारियों के आनुवंशिक कारणों को समझने में मदद मिलेगी. इससे कई आनुवंशिक बीमारियों की नई दवाएं और इलाज उपलब्ध हो सकता है.
: जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट के तहत 10,000 भारतीयों के जीनोम का अध्ययन किया जाएगा.
हाइलाइट्स
जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट 10,000 भारतीयों के जीनोम का अध्ययन करेगायह प्रोजेक्ट बीमारियों के आनुवंशिक कारणों को समझने में मदद करेगाइससे आनुवंशिक बीमारियों की नई दवाएं और इलाज मिल सकता हैGenome India Project: बॉयोटेक्नोलॉजी विभाग ने हाल ही में अपने 10,000 मानव जीनोम डेटासेट को साझा करने के लिए अपने नए प्लेटफार्म और फ्रेमवर्क की घोषणा की है. देश की एथनिक आबादी से स्वस्थ व्यक्तियों के सीक्वेंस ने भारत की आनुवंशिक विविधता का आधारभूत मानचित्र बनाने में मदद की है. दूसरे चरण में शोधकर्ता विशिष्ट बीमारियों वाले लोगों के जीनोम को सीक्वेंस करने की योजना बना रहे हैं.
क्या है जीनोम सीक्वेंस?
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार मानव जीनोम अनिवार्य रूप से एक निर्देश पुस्तिका है जो हमें अपने माता-पिता से विरासत में मिलती है. वो यह तय करती है कि हमारा शरीर कैसे विकसित होता है और कैसे काम करता है. यह आनुवंशिक जानकारी किसी व्यक्ति की ऊंचाई से लेकर उसके बालों और आंखों के रंग तक, उसे विरासत में मिलने वाली बीमारियों या उसके लिए पहले से ही तैयार रहने वाली बीमारियों तक सब कुछ निर्धारित करती है. चार बेस हैं जो मिलकर हर किसी की अनूठी आनुवंशिक संरचना बनाते हैं. पूरे मानव जीनोम में बेस के लगभग तीन बिलियन जोड़े हैं.
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जीनोम को सीक्वेंसिंग करने के लिए, शोधकर्ता सबसे पहले ब्लड से जानकारी निकालते हैं. हालांकि, पूरे जीनोम को संभालना बेहद मुश्किल है. इसलिए, शोधकर्ता इसे छोटे टुकड़ों में काटते हैं और उन्हें टैग करते हैं. फिर आनुवंशिक सामग्री के इन छोटे टुकड़ों को डिकोड करने के लिए एक सीक्वेंसर का उपयोग किया जाता है. एक बार हो जाने के बाद, इसे टैग का उपयोग करके एक संपूर्ण जीनोम बनाने के लिए एक साथ रखा जाता है. भारत ने पहली बार 2006 में मानव जीनोम की सीक्वेंसिंग की थी.
क्या है जीनोम इंडिया परियोजना?
भारत एक ऐसा देश है जो न केवल भूगोल, बोली जाने वाली भाषाओं, भोजन और संस्कृति में विविधतापूर्ण है, बल्कि यह आनुवंशिक संरचना में भी विविधतापूर्ण है. यहां 4,600 से अधिक अलग-अलग तरह के लोग रहते हैं. जीनोम इंडिया परियोजना को पहली बार 2020 में मंजूरी दी गई थी जिसका उद्देश्य जीनोमिक स्तर पर इस विविधता को पकड़ना था. परियोजना के तहत पहले 10,000 जीनोम को सिक्वेसिंग या अनुक्रमित करने के लिए 20 अलग-अलग वैज्ञानिक संस्थानों के शोधकर्ता एक साथ आए हैं. सब कुछ ठीक होने के साथ – एक सफल सहयोग, एक डेटा भंडारण सुविधा, डेटा साझा करने वाला प्लेटफार्म और एक फ्रेमवर्क – बॉयोटैक्नोलॉजी विभाग का लक्ष्य कार्यक्रम को और आगे बढ़ाना और एक मिलियन जीनोम तक सिक्वेंसिंग करना है.
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डाटाबेस बनाने से क्या मदद मिलेगी
आनुवंशिक विविधता का जो आधारभूत मानचित्र है वो विभिन्न रोगों के लिए आनुवंशिक आधार या आनुवंशिक जोखिम कारकों की पहचान करने में मदद कर सकता है. फिर इनका उपयोग उपचार और नैदानिक परीक्षणों के विकास के लिए लक्ष्य के रूप में किया जा सकता है. कई बीमारियों के लिए नई चिकित्सा कुछ जीनों को संशोधित, हटाकर या जोड़कर काम करती है – ऐसा कुछ जो आनुवंशिक मानचित्र और इस बात की समझ के बिना संभव नहीं होगा कि कौन से जीन बीमारी का कारण बनते हैं.
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क्या होगा परियोजना के दूसरे चरण में?
परियोजना के दूसरे चरण में विशिष्ट रोग से पीड़ित लोगों के जीनोम को सीक्वेंस करना शामिल होगा. इससे शोधकर्ता रोगग्रस्त जीनोम की तुलना स्वस्थ जीनोम से कर सकेंगे, जिससे उन जीनों की पहचान करने में मदद मिलेगी जो किसी व्यक्ति को कुछ बीमारियों के लिए जिम्मेदार हैं या उन्हें होने से पहले ही बीमार कर देते हैं. वे किसी व्यक्ति के रोग, उदाहरण के लिए कैंसर होने पर होने वाले आनुवंशिक परिवर्तनों का अध्ययन करने में सक्षम हो सकते हैं. टीम वर्तमान में विशेषज्ञों के साथ चर्चा कर रही है ताकि उन रोगों की पहचान की जा सके जिनके जीनोम को सीक्वेंसिंग किया जाना चाहिए तथा सार्थक परिणाम प्राप्त करने के लिए प्रत्येक रोग के लिए कितने जीनोम की आवश्यकता होगी. इस सूची में शामिल होने वाली बीमारियों में विभिन्न प्रकार के कैंसर, डॉयबिटीज जैसी पुरानी बीमारियां और विभिन्न न्यूरोलॉजिकल या न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियां शामिल होंगी. जीनोम इंडिया परियोजना के अगले चरण के लिए अध्ययन की जाने वाली बीमारियों की सूची में भारतीय आबादी में पाई जाने वाली दुर्लभ बीमारियों को भी शामिल किए जाने की संभावना है.
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दुश्वारियां भी कम नहीं है राह में
द हिंदू के अनुसार एक व्यक्ति के लिए, बीमारी का केवल एक छोटा सा हिस्सा मोनोजेनिक (एक जीन द्वारा निर्धारित) होता है. इस बात की जानकारी बावजूद कि कैसे दुर्लभ और विरासत में मिले जीन दुर्बल करने वाली बीमारी का कारण बनते हैं, इनका जोखिम बहुत कम किया जा सका. क्योंकि आवश्यक दवाएं अगर खोजी जातीं तो आमतौर पर जरूरतमंदों के लिए बहुत महंगी होतीं. दूसरे शब्दों में, जीनोम सिक्वेंसिंग ने जटिलता के नए क्षेत्र ही खोले. जीनोम इंडिया को 10,000 के आंकड़े से आगे जाना चाहिए, लेकिन इसे सही मायने में लोकतांत्रिक भी होना चाहिए. निष्कर्षों को अकादमिक जगत की अल्मारियों में बंद नहीं किया जाना चाहिए. इसमें वैज्ञानिकों, छात्रों, प्रौद्योगिकी कंपनियों, नैतिकतावादियों और सामाजिक वैज्ञानिकों के साथ कल्पनाशील सहयोग शामिल होना चाहिए. ताकि भारत की खुद की समझ को आगे बढ़ाया जा सके.
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
January 15, 2025, 19:13 IST