Bangladesh Violence: बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट और मोहम्मद युनूस की अंतिरम सरकार के आने के बाद से हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है. अब एक बार फिर छात्र आंदोलन के चलते ढाका की सड़कों पर में खून देखने को मिला है. दरअसल बांग्लादेश के 2 गुटों का मानना है कि आदिवासी शब्दों को कक्षा 8 और 9 के पाठ्यक्रम में जोड़ा जाए और उनके बारे में पढ़ाया जाए. इसको लेकर 'नेशनल करिकुलम एंड टेक्सटबुक बोर्ड' के सामने प्रदर्शन किया जा रहा था, हालांकि दूसरा गुट इसका विरोध कर रहा था. इसको लेकर ये दोनों गुट आमने-सामने आ गए. मामला बढ़ता गया और उपद्रवियों ने अल्पसंख्यकों पर जमकर लाठी बरसाना शुरू कर दिया. इससे ढाका की सड़के खून से सन गईं.
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आदिवासी शब्द को लेकर मारा-मारी
'ढाका ट्रिब्यून' की एक रिपोर्ट के मुताबिक दोनों गुटों के प्रदर्शनकारी आमने-सामने आकर एक दूसरे पर लाठी-डंडों से हमला करने लगे. इस हिंसा में उपद्रवियों ने कई छात्रों के सिर फोड़ डाले. बता दें कि स्टूडेंट्स फॉर सॉवरेनिटी की मांग है कि उनकी किताबों से आदिवासी शब्द को हटा दिया जाए. इसकी जगह जुलाई अपराइजिंग शब्द का इस्तेमाल किया जाए. वहीं जिन लोगों ने पाठ्यक्रम में आदिवासी शब्द को शामिल किया है उन्हें दंड दिया जाए.
किताबों से हटाया जाए आदिवासी शब्द
अल्पसंख्यकों का मानना है कि आदिवासी इस मुल्क का हिस्सा हैं. ऐसे में उनके बारे में बताया जाना चाहिए. वे इस शब्द को बनाए रखने की डिमांड कर रहे थे कि तभी स्टूडेंट्स फॉर सॉवरेनिटी के प्रदर्शनकारी उनके सामने आकर बहस और मारपीट करने लगे.
seriously injured in an attack by reactionary terrorists called Students for Sovereignty during a protest against the removal of graffiti containing tribal words from the back cover of the Bengali Second Paper of Class 9-10 by the NCTB.#BBC #BBCNEWS #CNN #dhaka #BangladeshCrisis pic.twitter.com/ompxBCoZ9J
— Nami Trym (@NamiTrym) January 15, 2025
इस घटना में कई छात्रों के गंभीर चोटें आई हैं. हमले की तस्वीरें सोशल मीडिया पर काफी वायरल भी हो रही हैं, जिसमें छात्रों को खून से सना हुआ देखा जा सकता है.
सरकार ने टेके घुटने
हमले को स्टूडेंट्स फॉर सॉवरेनिटी का दावा है कि आदिवासी छात्रों की ओर से उनपर हमले किए गए और उनके कपड़े फाड़े गए. प्रदर्शन की गंभीरता को देखते हुए बांग्लादेशी सरकार ने छात्रों के सामने घुटने टेक दिए हैं. आखिरकार आदिवासियों की तस्वीरें और उनके बारे में जानकारियां हटा दी गई हैं. वहीं जल्दी-जल्दी में नई कॉपियां भी PDF में जारी कर दी गई हैं. बता दें कि यह आंदोलन गांवों-कस्बों में खूब फैल रहा है. शहरों में भी इसका खूब प्रदर्शन देखने को मिल रहा है.