Muslims have a Centuries-Old Relationship with Hindu Temples: भारत में चाहे हिंदू मंदिर हों, गुरुद्वारे, चर्च या मुस्लिम दरगाहें इन धार्मिक स्थलों पर दूसरी कौमों की भागीदारी कोई नई बात नहीं है, ये भारत की साझी विरासत और सांझी संस्कृति का हिस्सा है. अजमेर शरीफ दरगाह में हर धर्म के लोग मन्नत मांगने जाते हैं. तमाम प्रतिष्ठित हिंदू परिवार भी वहां चादर चढ़ाने जाते हैं. शिरडी के साई बाबा में भी हिंदू-मुस्लिम दोनों ही बराबर श्रद्धा रखते हैं. इसी तरह से दिल्ली में हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर हर धर्म के लोग जाते हैं. इसी को गंगा-जमुनी तहजीब कहा जाता है.
लेकिन देश में इस सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जा रही है. हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले का विरोध कर रहे एक दक्षिणपंथी संगठन ने सुझाव दिया था कि वृंदावन के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में सेवा करने वाले मुसलमानों का बहिष्कार किया जाना चाहिए. हालांकि मंदिर प्रशासन इस सुझाव को खारिज कर दिया है. हिंदूवादी संगठन ने आग्रह किया था कि मथुरा और वृंदावन में हिंदू दुकानदार और तीर्थयात्री अल्पसंख्यक समुदाय के साथ व्यापार न करें. इन संगठन ने मुस्लिम दुकानदारों से व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर मालिक का नाम लिखने के लिए भी कहा.
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वृंदावन में शांति से रहते हैं दोनों समुदाय
काशी विद्वत परिषद के सदस्य नागेंद्र महाराज ने कहा कि उन्होंने उन दुकानों की पहचान कर ली है जो मुस्लिमों द्वारा चलाई जाती हैं. परिषद ने मांग की है कि बांके बिहारी के मामलों से मुसलमानों को अलग रखा जाए. उन्होंने कहा, “हमने उनसे दुकानों पर अपना नाम लिखने को कहा है और हिंदू दुकानदारों से कहा है कि वे उनके साथ काम न करें और उस समुदाय के लोगों को नौकरी पर न रखें.” टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक इस पर बांके बिहारी के पुजारी और मंदिर की प्रशासन समिति के सदस्य ज्ञानेंद्र किशोर गोस्वामी ने कहा, “यह व्यावहारिक नहीं है. मुसलमानों, खासकर कारीगरों और बुनकरों का यहां गहरा योगदान है. उन्होंने दशकों से बांके बिहारी के कपड़े बुनने में प्रमुख भूमिका निभाई है. उनमें से कई की बांके बिहारी में गहरी आस्था है और वे मंदिर भी जाते हैं.”
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भगवान के मुकुट बनाते हैं मुसलमान
ज्ञानेंद्र किशोर गोस्वामी ने कहा, “इसके अलावा, वृंदावन में भगवान के लिए कुछ मुकुट और चूड़ियां भी उन्हीं (मुसलमानों) द्वारा बनाई जाती हैं.” अधिकांश पुजारी और स्थानीय लोग गोस्वामी की बात से सहमत हैं. ज्ञानेंद्र किशोर गोस्वामी ने कहा कि वृंदावन में हिंदू और मुसलमान शांति और सद्भाव के साथ रहते हैं. मंदिर से कुछ ही दूर पर ‘स्टार मुकुट’ नाम से दुकान चलाने वाले जावेद अली ने कहा कि पुजारियों के रुख से उन्हें बहुत राहत मिली है. अली ने कहा, “वे (प्रदर्शनकारी) मेरी दुकान पर आए और हमसे साइनबोर्ड पर मालिक का नाम लिखने को कहा. मैं 20 साल से यह दुकान चला रहा हूं. मेरे पिता यहां दर्जी का काम करते थे. जब भी कोई ग्राहक यहां से सामान खरीदता है, तो मैं आमतौर पर उन्हें अपना नाम और मोबाइल नंबर छपा बिल देता हूं. हमारे पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है.” निखिल अग्रवाल ने कहा कि उन्हें कभी कोई समस्या नहीं हुई और वे अक्सर एक-दूसरे का सहयोग करते हैं. निखिल की दुकान अली की दुकान के बगल में है.
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बांके बिहारी में मुसलमानों की भागीदारी
वृंदावन का बांके बिहारी मंदिर उत्तर भारत के सबसे प्रसिद्ध और भीड़-भाड़ वाले मंदिरों में है. यहां मुख्य रूप से हिंदू श्रद्धालु ही आते हैं, लेकिन ऐसा नहीं कि वहां मुस्लिम नहीं जाते. मंदिर प्रबंधन की ओर से किसी भी धर्म के व्यक्ति के आने पर रोक नहीं है. वहां बहुत से मुस्लिम कलाकार जैसे मृदंग, पखावज और हारमोनियम वादक मंदिर की रसिया, झूला या होली उत्सवों में पारंपरिक रूप से भाग लेते आए हैं इसके अलावा त्योहारों पर लंगर, प्रसाद वितरण या सेवा में भी कुछ मुस्लिम परिवार स्थानीय तौर पर जुड़े होते हैं। हां, यह जरूर है कि धार्मिक पहचान के आधार पर मंदिर के गर्भगृह (जहां ठाकुरजी के दर्शन होते हैं) में पुजारियों के साथ मुस्लिम भाग नहीं लेते.
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राम मंदिर-काशी विश्वनाथ से जुड़े मुस्लिम कारीगर
भारत में मंदिर निर्माण, मूर्ति निर्माण, झांकियां, पोशाकें और सजावट में मुस्लिम कारीगरों का योगदान बहुत पुराना है. मुगल काल से लेकर आजादी तक और आज भी बहुत-से कारीगर हिंदू धार्मिक आयोजनों और मंदिर निर्माण से जुड़े हैं. सांची स्तूप से लेकर अयोध्या राम मंदिर तक, हर जगह मुस्लिम शिल्पकारों की दस्तकारी शामिल रही है. काशी विश्वनाथ कॉरिडोर (वाराणसी) प्रोजेक्ट में भी कई मुस्लिम कारीगरों ने पत्थर की नक्काशी, संगमरमर की जड़ाई और झरोखा निर्माण का काम किया. बनारस में गुलाम रसूल अंसारी जैसे दर्जनों मुस्लिम परिवार पीढ़ियों से मंदिर के लिए मेटल आर्ट, झालर और वस्त्र तैयार कर रहे हैं. अयोध्या राम मंदिर की नक्काशी, दरवाजे, पत्थर की कटाई में राजस्थान के मुसलमान शिल्पकार जुड़े रहे हैं. फतेह मोहम्मद नाम के कारीगर का परिवार पीढ़ियों से मंदिर निर्माण में लगा है. यहां तक कि मंदिर के लिए कांसे की घंटियां और सजावटी आइटम भी मुस्लिम कारीगर बना रहे हैं.
जगन्नाथ पुरी मंदिर से भी जुड़े हैं
ओडिशा के जगन्नाथ पुरी मंदिर की रथ यात्रा में इस्तेमाल होने वाले रथ के पहिए, मूर्तियों के वस्त्र और झंडे तैयार करने वाले कई कारीगर मुस्लिम हैं. पुरी में रहने वाले इस्माइल मियां और उनका परिवार कई पीढ़ियों से रथ निर्माण से जुड़ा है. कुल कितने मंदिर होंगे, जिनसे मुस्लिमों का संबंध है इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है. लेकिन अनुमान है कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा, बिहार, बंगाल, कर्नाटक, और तमिलनाडु के हजारों मंदिरों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मुस्लिम कारीगर काम करते हैं. धार्मिक मेलों, रामलीला आयोजनों, रथ यात्राओं और मंदिर शिल्पकला में दसियों हजार मुस्लिम परिवार पारंपरिक रूप से शामिल हैं. राजस्थान के नागौर और जैसलमेर के मुस्लिम कारीगर संगमरमर की नक्काशी में मास्टर माने जाते हैं. इनका काम देशभर के मंदिरों में दिखता है.