आखिर स्वतंत्रता दिवस के मौके पर क्यों उड़ाई जाती है पतंग? जानें बेहद खास वजह

6 days ago

Last Updated:August 15, 2025, 08:05 IST

भारत में पतंगबाजी सिर्फ एक खेल नहीं बल्कि आजादी और देशभक्ति का प्रतीक है. 1927 में सायमन कमीशन के खिलाफ पतंगों पर लिखे नारों से शुरू हुई यह परंपरा आज भी 15 अगस्त को आसमान में तिरंगे रंग की पतंगों के साथ आजादी क...और पढ़ें

आखिर स्वतंत्रता दिवस के मौके पर क्यों उड़ाई जाती है पतंग? जानें बेहद खास वजहभारत में पतंगबाजी सिर्फ एक खेल नहीं बल्कि आजादी और देशभक्ति का प्रतीक है.

Independence Day 2025: हर साल 15 अगस्त को जब भारत अपनी आजादी का जश्न मनाता है, तब कई शहरों में आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है. लोग अपनी-अपनी पतंग को ऊंचा उड़ाने और दूसरों की पतंग की डोर काटने की कोशिश करते हैं. आज भले ही यह एक शौक और मनोरंजन का तरीका हो, लेकिन पतंग उड़ाने की परंपरा का सीधा संबंध भारत की स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा है. बता दें कि कभी यही पतंगें अंग्रेजों के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध का प्रतीक बनी थीं.

आज भी पतंगबाजी सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि लोगों को आपस में जोड़ने का जरिया है. बहुत सी पतंगों पर देशभक्ति और सामाजिक संदेश लिखे होते हैं, जैसे – “I Love India”, “जय हिंद”, या “बेटी बचाओ” आदि.

आजादी के आंदोलन में पतंग क्यों बनी विरोध का प्रतीक?

सन 1927 में, जब भारत में सायमन कमीशन (Simon Commission) के खिलाफ आंदोलन चल रहा था, तब लोगों ने विरोध दर्ज कराने के लिए पतंगों का सहारा लिया. दरअसल, सायमन कमीशन सात ब्रिटिश सांसदों का समूह था, जिसे भारत पर लागू Government of India Act 1919 की समीक्षा और सुधारों की सिफारिश करने के लिए भेजा गया था. इस कमीशन में कोई भी भारतीय सदस्य शामिल नहीं था, जिससे देशभर में आक्रोश फैल गया.

उस समय विरोध जताने के लिए लोगों ने पतंगों पर “Go Back Simon” जैसे नारे लिखकर उड़ाना शुरू किया. यह विरोध का एक शांतिपूर्ण तरीका था, जिसके ज़रिए जनता ने अंग्रेजों को संदेश दिया कि भारत अपने अधिकारों के लिए लड़ रहा है.

यही वह दौर था, जब पतंग आजादी, विरोध और देशभक्ति का प्रतीक बन गई. 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद से पतंग उड़ाना स्वतंत्रता, गर्व और खुशी का प्रतीक माना जाने लगा.

किस व्यक्ति ने की इस परंपरा की शुरुआत?

दिलचस्प बात यह है कि इस परंपरा को किसी एक व्यक्ति या संगठन से नहीं जोड़ा गया. यह आंदोलन और लोगों के उत्साह से स्वाभाविक रूप से शुरू हुआ और 1920 के दशक से लगातार लोकप्रिय होता गया.

कहां सबसे ज्यादा की जाती है पतंगबाजी?

15 अगस्त पर पतंगबाजी का सबसे ज्यादा उत्साह उत्तर भारत में देखने को मिलता है. दिल्ली – खासकर पुरानी दिल्ली (Old Delhi) पतंगबाज़ी के लिए मशहूर है. यहां छतों पर लोग जमा होकर प्रतियोगिताएं करते हैं, देशभक्ति गीत बजते हैं और यहां के बाजारों में तिरंगे रंग की पतंगें बिकती हैं. यहां के भाई मियां (Syed Mohiuddin) पतंगों की दुकान और शानदार पतंगबाज़ी के लिए प्रसिद्ध रहे.

इसके अलावा, लखनऊ, बरेली और मुरादाबाद जैसे शहर भी पतंगबाज़ी के लिए जाने जाते हैं. वहीं, गुजरात में भी पतंगबाजी की परंपरा है. गुजरात में हर साल इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल आयोजित होता है. जब कोई पतंग काटी जाती है, तो लोग “काई पो चे” चिल्लाकर जीत का इजहार करते हैं. अहमदाबाद का पतंग संग्रहालय (Kite Museum) भी दुनिया भर में मशहूर है, जहां भारत की पतंग संस्कृति को प्रदर्शित किया गया है.

राजस्थान और पंजाब, यहां भी 15 अगस्त पर पतंग उड़ाना आम है. इसके अलावा, पूर्वी भारत में पतंगबाज़ी की परंपरा कोलकाता में देखने को मिलती है.

भारत में कब आई पतंग?

इतिहासकारों का मानना है कि पतंगें भारत में चीनी यात्रियों के जरिए चौथी से सातवीं शताब्दी (4th–7th century) के बीच आईं. मुगल काल में पतंग उड़ाना शाही खेल और शौक बन गया. हिंदू त्योहारों जैसे मकर संक्रांति और बसंत पंचमी में भी पतंग उड़ाने की परंपरा रही है. इसलिए पतंग उड़ाने का शौक भारत में आजादी के आंदोलन से भी पहले से मौजूद था.

क्या पतंगबाजी अब घट रही है?

आज के समय में पतंगबाजी धीरे-धीरे कम हो रही है. इसके पीछे कई कारण हैं –

शहरीकरण (Urbanisation) – अब घरों में छत और खाली जगह कम बची है.

सुरक्षा चिंताएं – खासकर मोटरसाइकिल सवारों के लिए डोर से हादसे होने के मामले सामने आते हैं.

नायलॉन/चाइनीज मांझा पर प्रतिबंध – शीशे और धातु से लेपित डोर पर कई राज्यों में रोक लग चुकी है, क्योंकि इससे इंसानों और पक्षियों को गहरी चोटें लगती हैं.

इन सब कारणों से पतंगबाजी पहले जैसी लोकप्रिय नहीं रही, लेकिन 15 अगस्त का दिन अब भी इस परंपरा को जीवित रखे हुए है.

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First Published :

August 15, 2025, 08:05 IST

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