Last Updated:August 01, 2025, 12:56 IST
Before Independence 1 August 1947: आजादी 14 दिन दूर थी. देश बंटने वाला था. घटनाक्रम और गतिविधियां बहुत तेज थीं. हिंसा और तनाव भी चरम पर था.

हाइलाइट्स
भारत में 1 अगस्त 1947 को तनाव और हिंसा चरम पर थीब्रिटिश अफसर भारत छोड़ने की तैयारी कर रहे थेरेडक्लिफ सीमा आयोग भारत-पाक सीमा तय कर रहा था1 अगस्त 1947 को अखबारों की हेडलाइंस
द स्टेट्समैन (कोलकाता से प्रकाशित, अंग्रेज़ी)
“सत्ता हस्तांतरण निकट होने पर वाइसराय ने नेताओं से मुलाकात की”
“पंजाब और बंगाल में सांप्रदायिक तनाव जारी”
“संविधान सभा 15 अगस्त की तैयारी कर रही है”
हिंदुस्तान टाइम्स (दिल्ली)
“स्वतंत्रता के निकट आते ही कांग्रेस ने शांति का आह्वान दोहराया”
“स्वतंत्रता दिवस से पहले माउंटबेटन ने सुरक्षा की समीक्षा की”
आज (हिंदी अख़बार, बनारस/इलाहाबाद)
“स्वतंत्रता निकट, लेकिन दंगे थमने का नाम नहीं ले रहे”
“सरदार पटेल बोले – रियासतें भारत में आएं वरना अराजकता होगी”
आजादी से 14 दिन पहले 1 अगस्त 1947 का दिन. भारत में स्वतंत्रता की तैयारियां चरम पर थीं. ब्रिटिश सरकार ने 3 जून 1947 को माउंटबेटन योजना की घोषणा की. जिसमें भारत को दो स्वतंत्र देशों भारत और पाकिस्तान में विभाजित करने का प्रस्ताव था. भारत में संविधान सभा, ब्रिटिश अधिकारियों और भारतीय नेताओं के बीच गहन चर्चाएं और तैयारियां चल रही थीं.
संविधान सभा का गठन 1946 में हुआ. ये स्वतंत्र भारत के लिए संविधान के निर्माण की प्रक्रिया में थी. 1 अगस्त 1947 को संविधान सभा के सदस्य नए भारत की नींव रखने के लिए विचार-विमर्श कर रहे थे. जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ. बी.आर. आंबेडकर जैसे नेता इस प्रक्रिया में सक्रिय थे.
रेडक्लिफ सीमा बांटने में व्यस्त थे
1 अगस्त 1947 को सिरिल रेडक्लिफ के नेतृत्व में सीमा आयोग (बाउंड्री कमीशन) भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा निर्धारित करने में व्यस्त था. रैडक्लिफ लाइन पंजाब और बंगाल को दो हिस्सों में बांटने वाली थी, जो अब तक पूरी तरह से अंतिम रूप नहीं ले पाई थी. इस काम हिंदू, मुस्लिम और सिख के हितों को ध्यान में रखने की कोशिश की जा रही थी लेकिन ये काम कठिन था.
पंजाब और बंगाल में सांप्रदायिक हिंसा
विभाजन की प्रक्रिया ने देश में तनाव को बढ़ा दिया था. विशेष रूप से पंजाब और बंगाल जैसे क्षेत्रों में सांप्रदायिक हिंसा की आशंका बढ़ रही थी. 1 अगस्त 1947 को कई जगहों पर छोटे-मोटे दंगे और तनाव की खबरें सामने आ रही थीं. लोग अपने भविष्य को लेकर चिंतित थे, क्योंकि यह साफ नहीं था कि कौन सा क्षेत्र भारत में रहेगा और कौन सा पाकिस्तान में जाएगा. मतलब आप सोचिए कि आजादी सामने नजर आ रही थी लेकिन लोगों को ये नहीं साफ था कि उनका इलाका अब भारत में रहेगा या पाकिस्तान में जाएगा.
1 अगस्त 1947 को भारत में सामाजिक और सांप्रदायिक तनाव चरम पर था. मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच लंबे समय से चले आ रहे मतभेदों ने देश में एक विभाजनकारी माहौल बना दिया था. मुस्लिम लीग मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में पाकिस्तान की मांग पर अड़ी हुई थी जबकि कांग्रेस एक अखंड भारत की पक्षधर थी. हालांकि ये साफ था कि विभाजन तो होगा ही. इस वजह से हिंदू, मुस्लिम और सिख समुदायों के बीच अविश्वास और भय का माहौल था.
गांधीजी कोलकाता में थे
इसी तरह बंगाल में हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव बढ़ रहा था. 1 अगस्त 1947 को कई जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा की छोटी-मोटी घटनाएं हो रही थीं, जो बाद में बड़े पैमाने पर दंगों में बदल गईं. गांधीजी 1 अगस्त 1947 को कोलकाता में थे, जहां वे सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे थे.
कई ब्रिटिश अफसर अपना सामान पैक कर रहे थे
1 अगस्त 1947 को ब्रिटिश प्रशासन भारत से अपनी सत्ता हस्तांतरण की अंतिम तैयारियों में था. लॉर्ड माउंटबेटन सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने में व्यस्त थे. ब्रिटिश अधिकारियों और भारतीय नेताओं के बीच नियमित बैठकें हो रही थीं, जिनमें प्रशासनिक, आर्थिक और सैन्य मामलों पर चर्चा हो रही थी. ब्रिटिश सेना और प्रशासनिक अधिकारियों का भारत से वापसी की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी. कई ब्रिटिश अधिकारी अपने सामान पैक कर रहे थे, जबकि कुछ भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में रहने की तैयारी कर रहे थे. भारत और पाकिस्तान के बीच सेना, रेलवे, और अन्य सरकारी संपत्तियों के बंटवारे पर भी चर्चा चल रही थी.
भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य वित्तीय संस्थानों को भारत और पाकिस्तान के बीच बांटने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी. ये एक जटिल काम था, क्योंकि दोनों देशों को अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए संसाधनों की आवश्यकता थी.
दिल्ली के बिरला हाउस में बैठकें
दिल्ली में बिरला हाउस और माउंटबेटन हाउस में प्रमुख नेता बैठकें कर रहे थे, जिसमें नेहरू, पटेल, राजेन्द्र प्रसाद, माउंटबेटन आदि शामिल थे. शहर में जगह-जगह “स्वतंत्रता दिवस समारोह की तैयारी” के पोस्टर और झंडे दिखने लगे थे. सांप्रदायिक हिंसा के डर से सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी.
लाहौर में हालात बेकाबू
लाहौर 1 अगस्त 1947 के दिन पूरी तरह तनाव में डूबा हुआ था. हिंदू-मुस्लिम-सिख मोहल्लों में एक-दूसरे के खिलाफ़ हमले की खबरें थीं. बाज़ार बंद, स्कूल बंद और लोग पलायन की तैयारी में थे. पुलिस और सेना गश्त कर रही थी लेकिन हालात बेकाबू होते जा रहे थे. लाहौर हाईकोर्ट के जजों को पाकिस्तान और भारत में बांटे जाने की बात शुरू हो चुकी थी.
कोलकाता में अपेक्षाकृत शांति थी, हालांकि निगरानी बहुत सख्त थी. बंगाल के विभाजन की चिंता बढ़ रही थी क्योंकि पूर्वी बंगाल पाकिस्तान में जाएगा, ये तय हो चुका था.
संजय श्रीवास्तवडिप्टी एडीटर
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...और पढ़ें
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...
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Location :
Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh
First Published :
August 01, 2025, 12:56 IST