कनाडा में खालिस्तान समर्थकों को झटका, लिबरल पार्टी की दमदार वापसी, नहीं चला ट्रंप कार्ड

6 hours ago

Canada Election Result 2025: कनाडा के आम चुनाव से पहले हार की कगार पर दिख रही लिबरल पार्टी नतीजों में पासा पलटते दिख रही है. भला हो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का, जिन्होंने जनवरी में सत्ता संभालते ही कनाडा पर बम फोड़ा. ट्रंप ने कनाडा पर 75 फीसदी टैरिफ लगाने और उस पर कब्जा कर 51वां प्रांत बनाने की धमकी दे डाली. इससे कनाडा में राष्ट्रवाद की जो लहर चली, उस पर सवार लिबरल पार्टी के नेता मार्क कार्नी दोबारा प्रधानमंत्री बनने की ओर बढ़ रहे हैं. कार्नी ने जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे के बाद पार्टी और प्रधानमंत्री पद संभाला था. भारत विरोधी ट्रूडो को पार्टी में बगावत के बाद इस्तीफा देना पड़ा था.   

सिख नेता जगमीत सिंह क्या बनेंगे किंगमेकर
हालांकि लिबरल पार्टी (Mark Carney Liberal Party) अपने बलबूते सत्ता में काबिज हो पाएगी या फिर उसे दूसरे छोटे दलों से गठबंधन करना पड़ेगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है. कार्नी कनाडाई के ऐसे पीएम हैं, जो संसद के सदस्य नहीं रहे हैं. 60 साल के कार्नी चार बच्चों के पिता हैं. हार्वर्ड औऱ ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से उन्होंने पढ़ाई की है. वो गोल्डमैन सॉक्स कंपनी के लिए न्यूयॉर्क, लंदन, टोक्यो-टोरंटो में काम कर चुके हैं. उन्होंने कनाडा में सिविल सेवा ज्वाइन की और फिर पूर्व पीएम स्टीफन हार्पर की सरकार के दौरान 2008 में बैंक ऑफ कनाडा के गवर्नर रहे. लिबरल पार्टी को बहुमत के लिए 172 सीटें चाहिए. लेकिन संभावना है कि वो बहुमत से 10 से 20 सीटें पीछे रह जाए. ऐसे में सिख नेता जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी से दोबारा गठबंधन हो सकता है. ट्रूडो के सत्ता में रहने के दौरान भी दोनों दलों में गठजोड़ था.

कनाडा के नए प्रधानमंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर और उनके देश पर कब्जा करने की चुनौती होगी. कनाडा का 75 फीसदी निर्यात अमेरिका को करता है. चुनाव में रिकॉर्ड 7.3 करोड़ लोगों ने वोट किया. ट्रंप ने कनाडा को अमेरिका में मिलाने की धमकी तक चुनाव के दौरान दी थी, जिस पर कनाडा में तीखी प्रतिक्रिया हुई थी.

हाउस ऑफ कॉमंस में कौन जीतेगा
कनाडा में 343 संसदीय सीटें हैं, जो भारत में लोकसभा की तरह निचले सदन हाउस ऑफ कॉमंस में अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती हैं. हाउस ऑफ कॉमंस में बहुमत पाने वाली पार्टी का नेता ही प्रधानमंत्री बनता है.अगर चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता है तो गठबंधन सरकार की नौबत आ सकती है.चुनाव में सबकी नजर एनडीपी नेता जगमीत सिंह पर भी होगी, जिन्होंने जस्टिन ट्रूडो की पिछली गठबंधन सरकार को समर्थन देकर उन्हें सत्ता में बनाए रखा. उनकी पार्टी तीसरे स्थान पर खिसकते दिख रही है. 

ट्रूडो ने खालिस्तान समर्थकों को समर्थन दिया
कनाडा के लेक ओंटेरियो, टोरंटो, क्यूबेक जैसे प्रांतों में बढ़त तय करेगी कि सत्ता में लिबरल पार्टी की वापसी होगी या नहीं. अल्बर्टा प्रांत में लिबरल पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है. अटलांटिक कनाडा की 32 सीटों पर भी दारोमदार टिका है. 2021 चुनाव रिजल्ट की बात करें तो लिबरल पार्टी को 33.12 फीसदी वोट के साथ 157 सीटें मिली थीं. जबकि कंजरवेटिव पार्टी को 34.34 फीसदी वोटों के बावजूद 119 सीटें ही मिल सकी थीं. ब्लॉक क्यूबक्वाइस को 32 सीटें मिली थीं. हालांकि जगमीत सिंह की एनडीपी के समर्थन से जस्टिन ट्रूडो सत्ता में आए. ट्रूडो ने सरकार को बचाए रखने और कट्टरपंथियों को खुश रखने के लिए खालिस्तान समर्थकों को बढ़ावा दिया. उन्होंने भारत विरोधी भावनाओं को कनाडा में उभारने में कोई कसर नहीं छोड़ी. आम चुनाव 2021 में तो रिकॉर्ड 18 सिख सांसद कनाडाई संसद में पहुंचे थे.

कनाडा में सिखों की आबादी और ताकत बढ़ी
कनाडा में सिखों की आबादी 8 लाख के करीब पहुंच गई है. कनाडा की कुल जनसंख्या में सिखों की भागीदारी 2.2 फीसदी के आसपास है. कनाडा में हिंदुओं की जनसंख्या भी आठ लाख के करीब है. कनाडा के आम चुनाव में एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर सिख सांसद चुने जाते हैं. लिबरल पार्टी, कंजरवेटिव पार्टी भी सिखों को लुभाने के लिए हर जतन करती है. कनाडा में फ्रेंच, अंग्रेजी और मैंडरिन के साथ पंजाबी सबसे लोकप्रिय भाषाओं में एक है.टोरंटो, वैंकूवर और मांट्रियल  जैसे इलाकों में बड़े पैमाने पर प्रवासी भारतीय रहते हैं. 

निज्जर की हत्या पर बढ़ा था तनाव
खालिस्तानी नेता निज्जर की हत्या के मुद्दे को लेकर  ट्रूडो ने भारत के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोला था. उन्होंने कनाडा में मंदिरों पर हुए हमलों पर भी चुप्पी साधे रखी. खालिस्तान समर्थकों के उच्चायोग के बाहर विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा पर भी खामोशी अख्तियार की. ट्रूडो ने भारतीय एजेंसियों पर भी सवाल उठाए थे, लेकिन भारत ने इससे साफ तौर पर इन्कार किया था.

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