किराना हिल्स, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के सरगोधा जिले में स्थित एक रणनीतिक सैन्य क्षेत्र है, जिसे पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम से जोड़ा जाता है. 1983 से 1990 के बीच, यहां परमाणु परीक्षण किए गए, जिन्हें “किराना-I” के नाम से जाना जाता है. इन परीक्षणों का उद्देश्य परमाणु हथियारों के डिज़ाइन का मूल्यांकन करना था. इसके अलावा, इस क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से रेडियो-एक्टिव खनिज जैसे सोडीयाइट, थोराइट और कार्बोनाटाइट पाए गए हैं. हाल ही में भारत पाकिस्तान सैन्य संघर्ष के बाद से, रेडियो-एक्टिव रिसाव की खबर ज़ोरों पर है.
मिस्र का विमान पंहुचा पाकिस्तान
11 मई को पाकिस्तान के मरी ज़िले के एक हवाई अड्डे से मिस्र की वायु सेना का एक मालवाहक विमान उड़ान भरता हुआ देखा गया. यह विमान अचानक आया और कुछ समय बाद ही वहां से रवाना हो गया. यह घटना ऐसे समय हुई जब भारत ने पाकिस्तान के कई इलाकों में हवाई हमले किए. इसके बाद यह कयास लगाए जा रहे हैं कि विमान बोरोन लेकर वहां उतरा है, कहीं इन हमलों के कारण किसी तरह की रेडियो-एक्टिव रिसाव की स्थिति तो नहीं बनी. इन हमलों में जिन स्थानों को निशाना बनाया गया, उनमें एक नाम रावलपिंडी स्थित नूर खान एयरबेस का भी है, जो पाकिस्तान के परमाणु कमांड का मुख्यालय माना जाता है.
Courtesy: Flightradar24
बोरॉन परमाणु बिजली बनाने की प्रक्रिया में न्यूट्रॉन को पकड़ने में काम आता है. इससे रिएक्शन की रफ्तार को घटाया या रोका जा सकता है, जब जरूरत हो. न्यूक्लियर रेडिएशन (परमाणु विकिरण) इंसानों और पर्यावरण के लिए खतरनाक होती है. बोरॉन कार्बाइड एक ऐसा खास पदार्थ है जो न्यूट्रॉन को अच्छे से रोक सकता है, इसलिए इसे रेडिएशन से बचाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
न्यूक्लियर सेफ्टी सपोर्ट एयरक्राफ्ट
इसी से जुडी एक और खबर चर्चा में है, दावे किए जा रहे हैं कि पाकिस्तान की एक परमाणु सुविधा को नुकसान पहुंचा है, और अमेरिका का एक न्यूक्लियर सेफ्टी सपोर्ट एयरक्राफ्ट – B350 AMS – उस क्षेत्र में भेजा गया है ताकि रेडियो-एक्टिव गतिविधियों की जांच की जा सके.
तीन दिनों में तीन भूकंप
वहीं पाकिस्तान में तीन दिनों में तीन भूकंपों से हिल उठा है, जिससे न सिर्फ जमीन पर झटके महसूस हुए बल्कि अटकलों का बाजार गर्म हो गया है. यह भूकंपीय गतिविधि मुख्य रूप से देश के उत्तरी और पश्चिमी इलाकों में हुई है. यह घटना उस समय आई है जब इस्लामाबाद और नई दिल्ली के बीच तनाव चरम पर है, खासकर पहलगाम आतंकी हमले और उसके बाद भारत की सैन्य कार्रवाई के बाद. 12 मई, सोमवार को पाकिस्तान में 4.6 तीव्रता का भूकंप आया, इससे पहले 10 मई को दो लगातार भूकंप आए थे—सुबह 4.7 तीव्रता का और बाद में 4.0 तीव्रता का.
“परमाणु ठिकाने पर हमला निराधार”
भारतीय वायुसेना ने भी किसी भी परमाणु ठिकाने पर हमले को निराधार बताया है और स्पष्ट किया है कि उनके हमले केवल विशिष्ट सैन्य ठिकानों तक सीमित थे और किराना हिल्स को निशाना नहीं बनाया गया था. वहीं, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने स्पष्ट रूप से इन दावों को खारिज किया है और कहा है कि पाकिस्तान के किसी भी परमाणु प्रतिष्ठान से कोई रेडियो-एक्टिव रिसाव नहीं हुआ है.
किराना हिल्स, जिन्हें उनके भूरे रंग की जमीन के कारण ब्लैक माउंटेन्स भी कहा जाता है, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के सर्गोधा जिले में स्थित एक पहाड़ी इलाका है. यह पहाड़ियाँ लगभग 80 किलोमीटर लंबी हैं, यह जगह भारतीय सीमा से करीब 170 किलोमीटर दूर है. किराना हिल्स के आस-पास जंगल है.
पाकिस्तान ने यहां यूरेनियम की तलाश में खुदाई भी करवाई थी. किराना हिल्स से अगर किसी भी प्रकार का रेडियो-एक्टिव रिसाव होता है तो पाकिस्तान बड़ी मुसीबत में पड़ जाएगा, और किसी भी रूप में इसे छिपाना उसके लिए घातक होगा. न केवल आसपास रहने वाले नागरिक बल्कि जानवर, हरियाली, खेती सब बड़े खतरे के घेरे में आ जाएंगे. इसका अंदाज़ा आप 1986 के सोवियत संघ में हुए “चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट” के हादसे से लगा सकते हैं.
“चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट हादसा”
25 अप्रैल 1986 को, रूस के चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट के रिएक्टर नंबर 4 में मरम्मत का काम चल रहा था. इस दौरान काम करने वाले लोग यह जांचना चाहते थे कि अगर प्लांट में बिजली चली जाए तो रिएक्टर को ठंडा कैसे रखा जा सकता है. एक रुटीन टेस्ट के दौरान सिर्फ 20 सेकंड के लिए सिस्टम को बंद किया गया था, लेकिन टेस्ट के सात सेकंड बाद ही अचानक ऊर्जा में तेजी से बढ़ गई. रिएक्टर को बंद करने की कोशिश की गई, लेकिन फिर एक और तेज़ धमाका हुआ. इसके बाद रिएक्टर का अंदरूनी हिस्सा खुल गया और ज़हरीली रेडियो-एक्टिव गैस हवा में फैल गई.
इस विस्फोट से लगभग 520 खतरनाक रेडियो-एक्टिव तत्व वातावरण में फैल गए. इस हादसे के तुरंत बाद दो कर्मचारियों की मौत हो गई, और संयंत्र के 134 कर्मचारी और आपातकालीन कर्मी गंभीर विकिरण रोग से पीड़ित हो गए, जिनमें से 28 की मृत्यु हो गई थी.
Source: unscear.org, chernobyl
कई मज़दूर और दमकलकर्मी अस्पताल में भर्ती हुए थे, और रेडियो-एक्टिव गैस व आग से बड़ा खतरा था — फिर भी आस-पास के इलाकों, जैसे कि पास का शहर प्रिप्यात, जो प्लांट के कर्मचारियों के लिए 1970 के दशक में बसाया गया था, से लोगों को हादसे के शुरू होने के करीब 36 घंटे बाद तक नहीं निकाला गया.
Surface ground deposition of caesium-137 on the territories of Belarus, Russian and Ukraine. Source: unscear.org
इस हादसे में शुरू में कम से कम 28 लोगों की मौत हुई और 100 से ज़्यादा लोग घायल हुए. संयुक्त राष्ट्र की एक वैज्ञानिक समिति ने बताया कि इस दुर्घटना की रेडिएशन के कारण 6,000 से ज़्यादा बच्चों और किशोरों को थायरॉयड कैंसर हुआ. अनुमान है कि चेर्नोबिल हादसे से करीब 235 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. आज का बेलारूस, जिसकी लगभग 23% ज़मीन इस हादसे से दूषित हो गई थी, अपनी कुल कृषि भूमि का पाँचवां हिस्सा खो बैठा. 1991 में बेलारूस इस आपदा से निपटने में सबसे ज़्यादा सक्रिय था, उसने अपने कुल बजट का 22% हिस्सा सिर्फ चेर्नोबिल से जुड़े कामों में खर्च कर दिया.
इस धमाके की ताकत इतनी थी कि इसके ज़हरीले कण सोवियत संघ (अब के बेलारूस, यूक्रेन और रूस) के बड़े हिस्से में फैल गए. आधिकारिक रिपोर्टों के मुताबिक, हादसे में तुरंत 31 लोगों की मौत हुई और करीब 6 लाख आग बुझाने और सफाई में लगे लोग को भारी मात्रा में रेडिएशन झेलना पड़ा. करीब 4 लाख लोगों को अन्य स्थानों पर बसाया गया, लेकिन लाखों लोग ऐसे इलाकों में ही रह गए, जहां लगातार कम मात्रा में रेडिएशन के संपर्क में आने से उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ा.
Surface ground deposition of caesium-137 in Europe / Source: unscear.org
करीब 84 लाख लोगों को रेडिएशन के संपर्क में आने की बात कही गई, यह संख्या ऑस्ट्रिया की पूरी आबादी से भी ज्यादा है. तीन देशों की लगभग 1.55 लाख वर्ग किलोमीटर ज़मीन दूषित हुई, जो इटली के कुल क्षेत्रफल का लगभग आधा हिस्सा है. इनमें से 52,000 वर्ग किलोमीटर खेती की ज़मीन थी, जो डेनमार्क से भी बड़ी है. रिएक्टर के आस-पास के इलाकों से लगभग 1,15,000 लोगों को सुरक्षित जगहों पर भेजा और उसके बाद बेलारूस, रूस और यूक्रेन से लगभग 2,20,000 लोगों को पुनः बसाया.
Source: unscear.org, chernobyl
इस दुर्घटना के कारण पर्यावरण में अब तक की सबसे बड़ी अनियंत्रित रेडियो-एक्टिव पदार्थ का रिसाव हुआ. लगभग 10 दिनों तक भारी मात्रा में रेडियो-एक्टिव पदार्थ हवा में फैलते रहे. इस रेडियो-एक्टिव बादल ने पूरे उत्तरी गोलार्ध में फैल गया और पूर्व सोवियत संघ के बड़े इलाकों समेत यूरोप के कई हिस्सों में रेडियो-एक्टिव पदार्थ जमा हो गए. इससे जमीन, पानी और जीव-जंतुओं को नुकसान पहुंचा, खासकर बेलारूस, रूस और यूक्रेन के बड़े हिस्सों में लोगों के जीवन और आर्थिक स्थिति पर गंभीर प्रभाव पड़ा.
दुर्घटना के दो तरह के रेडियो-एक्टिव तत्व थे जो खास थे
– आयोडीन-131, जो जल्दी खत्म होता है (जिसका आधा जीवन 8 दिन होता है)
– सीज़ियम-137, जो बहुत धीरे खत्म होता है (जिसका आधा जीवन लगभग 30 साल है)
आयोडीन-131 ने गले को ज्यादा रेडियेशन दिया, जो दुर्घटना के कुछ हफ्तों के अंदर हुआ.
सीज़ियम-137 ने पूरे शरीर को थोड़ा-थोड़ा रेडियेशन दिया, जो कई सालों तक जारी रहा.
दूध में आयोडीन-131 मिल जाने और जल्दी बचाव न करने की वजह से बच्चों की थायरॉयड में ज्यादा रेडियेशन हुआ. समय के साथ, रेडियो-एक्टिव सीज़ियम की वजह से आम लोगों को भी रेडियेशन हुआ, जो जमीन पर जमा रेडियो-एक्टिव पदार्थों और दूषित खाना खाने से उन्हें मिला था. 1986 की दुर्घटना में जो बच्चे या जवान थे, उनमें थायरॉयड कैंसर के मामले बढ़े. खासकर बेलारूस, यूक्रेन और रूस के कुछ इलाकों में ये बढ़ोतरी ज्यादा देखी गई. 1991 से 2005 तक 6,000 से ज्यादा लोग इसके शिकार हुए, जिनमें से कई ने 1986 में दूषित दूध पीया था.
मई 1986 में सोवियत सरकार ने चेर्नोबिल के टूटे हुए रिएक्टर को ढकने के लिए एक कंक्रीट की ढांचा बनाया. यह काम छह महीने में पूरा हुआ. इसे अस्थायी तरीका माना गया था ताकि रिएक्टर खुला न रहे. बेलारूस, रूस और यूक्रेन में लगभग 1,50,000 वर्ग किलोमीटर इलाका रेडियो-एक्टिव सामग्री से दूषित हो गया है. यह इलाका न्यूक्लियर प्लांट के उत्तर में लगभग 500 किलोमीटर तक फैला हुआ है. प्लांट के चारों ओर 30 किलोमीटर का क्षेत्र “निकास क्षेत्र” (exclusion zone) कहा जाता है, जहाँ लोग नहीं रहते.
“सरगोधा जिला – किराना हिल: एक छिपा खतरा”
2023 की जनगणना के अनुसार, पाकिस्तान के सरगोधा जिले की जनसंख्या 43 लाख है. यह पंजाब प्रांत में स्थित है, जिसकी कुल जनसंख्या 12.76 करोड़ है. पूरे पाकिस्तान की जनसंख्या 24.149 करोड़ है, जिसमें 51.48% पुरुष और 48.51% महिलाएं हैं. सरगोधा के पास स्थित किराना हिल्स एक पहाड़ी इलाका है, जहां यूरेनियम की खुदाई हो चुकी है. यह इलाका रेडियो-एक्टिव गतिविधियों से जुड़ा रहा है.
इसके पास के जिलों में:
खुशाब (जनसंख्या 15 लाख) – पश्चिम में
झांग (जनसंख्या 30 लाख) – पूर्व में
अगर किराना हिल से रेडियो-एक्टिव रिसाव होता है, तो यह लाखों लोगों के जीवन के लिए बड़ा खतरा बन सकता है. सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं, इसका असर सीमा पार भारत तक भी महसूस किया जा सकता है.