क्यों परशुराम ने फरसे के वार से कर दी मां की हत्या, फिर उन्हें जिंदा भी कराया

3 hours ago

ऋषि परशुराम रामायण काल में भी थे और महाभारत काल में भी. उनके क्रोधी स्वाभाव के किस्से दोनों युग में मिलते हैं. परशुराम जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है. इस लिहाज से इस बार 29 अप्रैल यानि आज परशुराम जयंती मनाई जा रही है. परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि थे तो उनकी माता रेणुका थीं. एक बार उनके जीवन में ऐसा मौका आया कि पिता की आज्ञा से उस मां की हत्या करनी पड़ीं, जो उनके लिए बहुत प्रिय थीं.

उनमें क्षत्रियों के प्रति इतनी नाराजगी थी कि उन्होंने उन्हें धरती से खाली करने की शपथ खाई थी. परशुराम को लेकर तमाम किस्से कहानियां हैं.  परशुराम के बारे में एक बड़ी खास बात ये भी है कि उन्हें अमरता का वरदान मिला हुआ था. उन्होंने रामायण और महाभारत, दोनों में अपना असर दिखाया था. इसलिए उनकी जिंदगी के कुछ किस्से महाभारत से जुड़े हैं तो कुछ रामायण से.

क्यों की मां की हत्या
परशुराम ने अपनी मां की हत्या क्यों की. ये घटना भी हैरान करने वाली है. हालांकि उन्होंने अपने मन से ऐसा बिल्कुल नहीं किया था. इसकी वजह इस तरह थी. हालांकि जब परशुराम ने मां की हत्या कर दी तो उनके पिता समेत हर कोई अवाक रह गया. फिर उन्होंने एक और काम किया जो इसी हैरानी को और बढ़ाने वाला था.

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परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि जब अपनी पत्नी रेणुका पर बुरी तरह नाराज हो गए. (News18 AI)

मां से नाराज हो गए ऋषि पिता 
दरअसल परशुराम की मां रेणुका जल का कलश लेकर नदी गईं थीं. उन्हें वहां से कलश में जल भरकर लौटना था. नदी में गंधर्व चित्ररथ अप्सराओं के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था. उसे देखने में रेणुका इतनी तल्लीन हो गईं कि उन्हें जल लेकर लौटने में देर हो गई. उधर उनके पति और ऋषि जमदग्नि यज्ञ के लिए बैठे थे. देर होने से वो यज्ञ नहीं कर पाए. कुछ पौराणिक कहानियों में ये भी कहा जाता है कि जब वो नदी पानी लेने गईं तो वहां गंधर्वों को देखकर मोहित हो गईं. यज्ञ पर बैठे उनके पति और ऋषि जमदग्नि ने अपनी तप से जान लिया कि उनकी पत्नी को क्यों देर हो रही है.

तब परशुराम के पिता ने क्या किया
परशुराम के पिता गुस्से से लाल-पीले हो रहे थे कि तभी रेणुका जल लेकर लौट आईं. उनके आते ही ऋषि जमदग्नि क्रोध में दहाड़े. उन्होंने अपने चार पुत्रों से तुरंत उनकी मां का वध करने को कहा. तीनों बेटों ने ये बात सुनी लेकिन वो सिर झुकाकर खड़े हो गए. लेकिन परशुराम ने ऐसा नहीं किया. बल्कि उन्होंने अपना फरसा उठाया. एक ही वार में मां का सिर धड़ से अलग कर दिया. जबकि मां के तौर पर पर उनसे बहुत ज्यादा प्यार करते थे.

पिता तक को उम्मीद नहीं थी कि ऐसा होगा
परशुराम के ऐसा करते ही हर कोई स्तब्ध रह गया. उनके पिता को उम्मीद नहीं थी कि परशुराम उनकी आज्ञा मानने के लिए यहां तक जा सकते हैं. एक ओर वो अपनी पत्नी की हत्या से दुखी थे तो दूसरी ओर ये देखकर खुश कि उनका ये बेटा उनकी कितनी बात मानता है. उन्होंने परशुराम से वरदान मांगने को को कहा. परशुराम ने तुरंत पिता से चार वरदान मांगे
– मां फिर से जिंदा हो जाएं
– उन्हें ये याद ही नहीं रहे कि उनकी हत्या की गई थी
– उनके सभी भाई भी स्तब्ध अवस्था से सामान्य स्थिति में लौट आएं
इन वरदानों के साथ पिता ऋषि जमदग्नि ने उन्हें अमर रहने का वरदान भी दिया.

कर्ण ऋषि परशुराम का ही शिष्य था. उसने शस्त्र विद्या उन्हीं से सीखी थी. बाद में वो ऋषि के कोप का शिकार भी हुआ, क्योंकि परशुराम को लगा कि वो क्षत्रीय है

इसलिए नाराज हुए थे क्षत्रियों पर 
महर्षि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र परशुराम ब्राह्मण होने के बाद भी कर्म से क्षत्रिय गुणों वाले थे. आखिर क्या बात थी कि उन्होंने धरती से क्षत्रियों के समूलनाश की प्रतिज्ञा कर ली थी.

एक दिन जब परशुराम बाहर गये थे तो राजा सहस्रबाहु हैहयराज के दोनों बेटे कृतवीर अर्जुन और कार्तवीर्य अर्जुन उनकी कुटिया पर आए. उन्होंने राजा द्वारा दान में दी गईं गायों और बछड़ों की जबरदस्ती छीन लिया. साथ ही मां का अपमान भी किया.

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ऋषि परशुराम अपने फरसे के साथ क्रोधित मुद्रा में. वह क्षत्रियों से इतने नाराज हो गए कि 21 बार धरती से उनका सफाया कर दिया. (News18 AI)

परशुराम को मालूम पड़ा तो नाराज होकर उन्होंने राज सहस्रबाहु हैहयराज को मार डाला. परिणामस्वरूप उसके दोनों बेटों ने फिर आश्रम पर धावा बोला. तब परशुराम वहां नहीं थे. उन्होंने मुनि जमदग्नि को मार डाला. जब परशुराम घर पहुँचे तो उन्हें इसकी जानकारी हुई. उन्होंने उसी समय शपथ ली कि वो धरती को क्षत्रियहीन कर देंगे.परशुराम ने इक्कीस बार पृथ्वी के समस्त क्षत्रियों का संहार किया.

क्रोधी स्वभाव
दुर्वासा की भाँति परशुराम भी अपने क्रोधी स्वभाव के लिए विख्यात थे. 21 बार उन्होंने धरती को क्षत्रिय-विहीन किया. हर बार हताहत क्षत्रियों की पत्नियाँ जीवित रहीं और नई पीढ़ी को जन्म दिया. हर बार क्षत्रियों को मारने के बाद वो कुरुक्षेत्र की पाँच झीलों में रक्त भर देते थे. अंत में पितरों की आकाशवाणी सुनकर उन्होंने क्षत्रियों से युद्ध करना छोड़कर तपस्या की ओर ध्यान लगाया.

राम पर भी हुए थे नाराज 
रामायण में उनका जिक्र तब आता है जबकि राम ने सीता स्वयंवर में शिव का धनुष तोड़ा था. तब वो नाराज होकर वहां आए थे.लेकिन राम से मुलाकात के बाद समझ गए कि वो विष्णु के अवतार हैं. इसलिए उनकी वंदना करके वापस तपस्या के लिए चले गए.

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महाभारत काल के बाद ऋषि परशुराम ने अपने सारे शस्त्र छोड़ दिए. कहा जाता है कि अब वो महेंद्र पर्वत पर कुटिया बनाकर वहीं तपस्या करते रहते हैं. माना जाता है कि कल्कि युग में फिर सामने आएंगे. (News18 AI)

ऋषि परशुराम ने महाभारत काल के बाद क्या किया?
महाभारत काल के बाद ऋषि परशुराम ने अपने शस्त्र त्याग दिए. तपस्या के लिए महेन्द्र पर्वत पर आश्रम बनाकर रहने लगे. खुद को तपस्या में लीन कर लिया. वह अपने जीवन के अंतिम चरण में महेन्द्र पर्वत (जो ओडिशा और आंध्र प्रदेश की सीमा पर माना जाता है) पर निवास करने लगे.

परशुराम ने महाभारत काल में भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महान योद्धाओं को शस्त्रविद्या सिखाई थी. कथाएं कहती हैं कि वह कल्कि अवतार के समय फिर प्रकट होंगे. कल्कि को शस्त्रविद्या देंगे.

क्या ऋषि परशुराम अमर हैं? अब कहां रहते हैं?
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान शिव ने परशुराम को चिरंजीवी (अमर) होने का वरदान दिया था. उनके पिता ऋषि जमदग्नि ने भी उनको यही वरदान दिया था. ये माना जाता है कि वे आज भी धरती पर कहीं न कहीं मानव रूप में जीवित हैं. पौराणिक मान्यता है कि वे महेन्द्र पर्वत पर ही तपस्या में लीन हैं. कलियुग के अंत तक वहीं निवास करेंगे.

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