जब राष्ट्रपति ट्रंप ने इस हफ़्ते भारत पर रूसी तेल की भारी मात्रा में ख़रीदारी करने के लिए निशाना साधा. साथ 25 प्रतिशत टैरिफ शुल्क के अलावा “जुर्माना” शुल्क लगाने की धमकी दी, तो ये एक अप्रत्याशित कदम था, जिससे भारत में ज्यादातर लोग सकते में आ गए. 03 साल पहले यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से भारत रूसी ऊर्जा का एक प्रमुख खरीदार रहा है. तब ज़्यादातर पश्चिमी देशों ने रूस से अपनी ख़रीदारी कम कर दी थी या पूरी तरह से बंद कर दी थी.
रूस को वित्तीय नुकसान पहुंचाने और उसके राष्ट्रपति व्लादिमीर वी. पुतिन को दंडित करने के अमेरिका और यूरोप के प्रयासों ने तेल की कीमतों को कम कर दिया था. भारत ने इसे एक सौदा समझा. इसे लपक लिया.
भारत को लगता था कि ट्रंप भारत के दोस्त हैं. वह लगातार भारत और प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते रहे थे, लिहाजा भारत ने मान लिया था कि अगर ट्रंप दोबारा चुने गए, तो वो रूस को लेकर पूर्व अमेरिकी प्रेसीडेंट बाइडेन और अन्य पश्चिमी नेताओं की ओर से रूस का पक्ष लेने पर बढ़े दबाव में ढील देंगे. लेकिन ट्रंप ने इसे ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया, जो भारत के लिए बहुत बड़े झटके की तरह ही है.
भारत और रूस के बीच लंबा व्यापारिक इतिहास
भारत और रूस का एक लंबा व्यापारिक इतिहास रहा है. रूस के पास तेल का प्रचुर भंडार है. भारत को इसका बहुत अधिक आयात करने की जरूरत है. फरवरी 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के बाद उसका तेल भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो गया. उस वर्ष की शुरुआत में भारत के कच्चे तेल के आयात में रूस का हिस्सा केवल 0.2 प्रतिशत था. इसके बाद रूस से भारत को तेल का निर्यात बढ़ने लगा. मई 2023 तक, रूस भारत को रोज दो मिलियन बैरल से अधिक कच्चा तेल बेच रहा था, जो उसके आयात का लगभग 45 प्रतिशत था, जो चीन के अलावा किसी भी अन्य देश से अधिक था.
दो सालों से रूसी तेल खरीद रहा भारत
भारत पिछले दो सालों से लगातार रूसी तेल खरीद रहा है. हर साल बिक्री करीब 275 अरब डॉलर की रही है. इराक और सऊदी अरब परंपरागत रूप से भारत के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता रहे हैं लेकिन अब भारत उनसे तेल नहीं खरीदता.
भारत ने उससे छूट पर तेल खरीदा. उसकी तेल कंपनियों ने कुछ तेल घरेलू खपत के लिए प्रोसेस किया. बाकी को डीज़ल और अन्य उत्पादों के रूप में निर्यात किया, जिनमें से कुछ यूरोप को भी निर्यात किया गया.
ये भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी अच्छा रहा
विदेशी वस्तुओं के लिए कम भुगतान करना भारत की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा रहा है, जिससे उसकी मुद्रा की सुरक्षा में मदद मिली है. भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद पर ट्रंप का अप्रत्याशित हमला भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है , क्योंकि वे व्यापक व्यापार मुद्दों पर ट्रंप के साथ बातचीत कर रहे हैं.
ट्रंप ने स्पष्ट कर दिया है कि वह भारत के साथ अमेरिका के 44 अरब डॉलर के व्यापार घाटे को कम करना चाहते हैं. संभव है कि भारत अमेरिकी तेल या प्राकृतिक गैस खरीदना शुरू कर दे.
क्या ट्रंप भारत को नीचा दिखा रहे हैं
न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट कहती है कि ट्रंप जून से ही पाकिस्तान के साथ भारत के युद्धविराम समझौते का श्रेय लेकर उन्हें नीचा दिखा रहे हैं. भारत में भी इसको लेकर विपक्ष सियासी तौर पर माहौल को गर्म कर रहा है. बुधवार देर रात अमेरिकी राष्ट्रपति ने दो और अपमानजनक बातें कहीं, जिनमें से प्रत्येक में तेल का ज़िक्र था. ट्रंप ने सोशल मीडिया पर लिखा, “मुझे इसकी परवाह नहीं कि भारत रूस के साथ क्या करता है. वे अपनी डेड अर्थव्यवस्थाओं को मिलकर गिरा सकते हैं, मुझे इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता.”
हाल के हफ्तों में रूसी तेल खरीदना कम हुआ
ट्रंप ने ये भी दावा किया कि अमेरिका पाकिस्तान के साथ एक समझौता कर रहा है, जिसके तहत अमेरिकी कंपनियां पाकिस्तानी तेल भंडारों का दोहन करेंगी. कमोडिटी और शिपिंग डेटा पर नज़र रखने वाली कंपनी केप्लर के अनुसार, हाल के हफ़्तों में भारत की रिफ़ाइनरियां सामान्य से कम रूसी तेल ख़रीद रही हैं. हालांकि, भारत के लिए रूसी ईंधन को पूरी तरह से बदलना महंगा और रसद की दृष्टि से चुनौतीपूर्ण होगा. केप्लर ने गुरुवार को एक नोट में लिखा, “रूस से दूर जाना – यदि मजबूर किया गया – महंगा, जटिल और राजनीतिक रूप से कठिन होगा.”
इसने भारत की मुद्रास्फीति को भी संभाले रखा
विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि 25 प्रतिशत अमेरिकी टैरिफ से भारत की आर्थिक वृद्धि प्रभावित हो सकती है, लेकिन फिर भी वे इसे दुनिया में सबसे तेजी से विस्तार करने वाला देश मानते हैं, जो कुल आकार में जापान और जर्मनी से प्रतिस्पर्धा कर रहा है. भारतीय अधिकारियों के अनुसार, टैरिफ पर ट्रंप प्रशासन के साथ पहले चार महीनों की बातचीत के दौरान रूसी तेल का मुद्दा कभी नहीं उठा. वैसे ये भी सही है कि कम दाम में खरीदे गए रूसी तेल ने वैश्विक अस्थिरता के दौरान भारत को मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद की है.
आखिर रूसी तेल की खरीद से ट्रंप नाराज क्यों
ट्रंप का मानना है कि रूस से तेल खरीदने वाले देश विशेष रूप से भारत और चीन, रूस को आर्थिक रूप से मजबूत कर रहे हैं, जिससे वह यूक्रेन के खिलाफ युद्ध जारी रखने में सक्षम है. ट्रंप ने रूस को युद्ध रोकने के लिए 50 दिनों का अल्टीमेटम दिया था. रूसी तेल की खरीद को वो इस युद्ध को वित्तीय सहायता देने के रूप में देखते हैं.
भारत द्वारा रूसी तेल की भारी खरीद (35-40% आयात) को वो अमेरिका-भारत संबंधों में “झुंझलाहट” का कारण मानते हैं. भारत 2022 से रूस से सस्ता तेल (ब्रेंट क्रूड से 4-5 डॉलर प्रति बैरल कम) खरीद रहा है, जिससे उसे 11-25 अरब डॉलर की बचत हुई. ये अमेरिका को खटक रहा है, क्योंकि भारत ने रूसी तेल पर पश्चिमी प्रतिबंधों का पूरी तरह पालन नहीं किया
क्या ट्रंप इसके जरिए दबाव बना रहे हैं
ट्रंप भारत से अमेरिकी बाजार में अधिक पहुंच चाहते हैं, जैसे कृषि, डेयरी, और अन्य उत्पादों के लिए. भारत के रूसी तेल आयात को वे व्यापार वार्ताओं में दबाव बनाने के लिए एक मुद्दा बना रहे हैं.