Explainer: कौन थी फातिमा शेख, क्या वाकई थीं कोई काल्पनिक किरदार?

4 hours ago

Last Updated:January 10, 2025, 16:27 IST

हाल ही में लेखक दिलीप मंडल यह दावा किया है कि भारत की पहली महिला मुस्लिम शिक्षिका फातिमा शेख का किरदार काल्पनिक है. उनका कहना है कि इस किरदार को उन्होंने ही 15 साल पहले रचा था. लेकिन कई पड़ताल बताती हैं कि फातिमा...और पढ़ें

 कौन थी फातिमा शेख, क्या वाकई थीं कोई काल्पनिक किरदार?

फातिमा शेख के बारे में यह दावा कई जगह मिलता है कि वह पहली महिला मुस्लिम शिक्षिका थीं. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

हाइलाइट्स

फातिमा शेख को भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका माना जाता हैलेखक दिलीप मंडल ने दावा किया कि उन्होंने यह किरदार गढ़ा थाऐतिहासिक दस्तावेजों में फातिमा के अस्तित्व पर बहस जारी है

गूगल पर आप सर्च कीजिए, “भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका” गूगल आपको कुछ इस तरहकी जानकारी देगा. “फातिमा शेख (9 जनवरी 1831 – 9 अक्टूबर 1900) एक भारतीय शिक्षिका और समाज सुधारक थीं, जो समाज सुधारक ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले की सहयोगी थीं. उन्हें व्यापक रूप से भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका माना जाता है.” देश के खास तौर से महाराष्ट्र के कई हिस्सों में फातिमा शेख को इसी तरह से याद किया जाता है. लेकिन हाल ही में उनके जन्मदिन पर एक लेखक, दिलीप मंडल ने दावा किया कि फातिमा शेखअसल में एक काल्पनिक चरित्र है जिसे खुद उन्होंने गढ़ा है. और इसके लिए उन्होंने माफी भी मांगी है. तो सच क्या है?  दिलीप मंडल के दावे पर इतना हंगामा क्यों है?

कौन थी फातिमा शेख?
फातिमा शेख को भारत की पहली महिला मुस्लिम शिक्षिका के तौर पर याद किया जाता है. बताया जाता है कि उन्होंने 19वीं सदी के मध्य में समाज सेवक ज्योतिबा फूले और सावित्री बाई फूले के साथ मिल कर दलित वर्गों के परिवारों के बच्चों के लिए स्कूल खुलवाने में अपने भाई उस्मान के साथ सहायता की थी.

दिलीप मंडल का दावा
लेखक, एक्टिविस्ट और भारत के सूचना और प्रसारण मंत्रलाय के मीडिया एडवाइजर दिलीप मंडल ने 9 जनवरी को यह दावा कर सनसनी फैला दी कि भारत की पहली मुस्लिम महिला स्कूल शिक्षिका, फातिमा शेख का कोई अस्तित्व ही नहीं था. उनके किरदार को खुद उन्होंने ही रचा था और उनके नाम का कोई शख्स तक इतिहास में नहीं था.

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बताया जाता हैकि फातिमा शेख ने ज्योतिबा फूले और सावित्री फूले के साथ मिल कर शिक्षा का प्रसार किया था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

काल्पनिक चरित्र होने का दावा
मंडल ने एक के बाद कई ट्वीटकर दावा किया कि फातिमा शेख एक आधुनिक कथाओं की पात्र या कल्पनिक चरित्र है जिसे बिना किसी ऐतिहासक और दस्तावेजी प्रमाण के बनाया गया था. इसके लिए मंडल ने अपने ट्वीट में माफी भी मांगी थी. इसकी भूमिका भी कम रोचक नहीं है.

क्या कहा था मंडल ने
एक समय हिंदुत्व की राजनीति के प्रखर आलोचक रहे मंडल को अगस्त 2024 में ही  भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय में मीडिया सलाहकार के तौर पर नियुक्त किया गया था. 9 जनवरी क ट्वीट में उन्होंने लिखा, “मैने फातिमा शेख के किरदार को रचा था और उसे फातिमा शेख नाम दिया था. मुझे माफ करें. सच ये है कि फातिमा शेख का असित्व ही नहीं था. वह कोई एतिहासिक चरित्र नहीं थी ना ही कोई असली इंसान थी. यह मेरी गलती थी कि मैंने इसे बनाया और मैंने यह जानबूझ कर किया था.”

एक एतिहासिक दस्तावेज में जिक्र है कि सावित्री फूले ने अपने पति के लिखे एक पत्र में फातिमा का जिक्र किया था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

कई सवाल पर मंडल भी साफ नहीं बता रहे
दिलचस्प बात ये है कि मंडल ने यह नहीं बताया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, लेकिन उन्होंने यह जरूर कहा कि वह समय और हालात की बात थी. और इसे फिर कई लोगों ने अपने राजनैतिक विचारधारा के हिसाब से इसका फायदा उठाना शुरू कर दिया. उन्होंने यह भी दावा किया कि उनके इस किरदार के रचने से पहले गूगल के सर्च में यह नाम आता भी नहीं था.

प्रमाणिक दस्तावेजों की कमी का सवाल
रोचक बात ये है कि मंडल के बयान के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया. विकीपीडिया पर वह पेज डिलीट कर दिया गया, लेकिन अब जरूर वह दिखने लगा है. वहीं अभी गूगल पर फातिमा शेख की काफी जानकारी भी मिल रही है. लेकिन 2022 से पहले गूगल पर भी फातिमा शेख पर कुछ नहीं मिलता था. उन्होंने यह भी कहा कि  ना ही बाबा साहेब अंबेडकर, ज्योतिबा फूले या सावित्री फूले यहां तक कि किसी अंग्रेजी दस्तावेज तक में फातिमा शेख का नाम नहीं मिलता है.

कब रचा था मंडल ने किरदार?
मंडल का कहना है कि उन्होंने फातिमा शेख का किरदार 15 साल पहले रचा था. लेकिन  जब इस पर कई मीडिया मंचों पर पड़ताली लेख सामने आए उनमें ऐसे कई उल्लेख आए जब सन 2000 से पहले भी फातिमा शेख का उल्लेख था. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में उल्लेख है कि मंडल के दावों के विपरीत जो फातिमा के होने का सबसे बड़ा संकेत महराष्ट्र साहित्य मंडल के 1988 में प्रकाशित “सावित्रि बाई फूले- समग्र वांगमय” में मिलता है जिसका संपादन शोधकर्ता एमजी माली ने किया था.  इसमें एक पत्र का उल्लेख है जो सावित्री फूले ने अपने पति ज्योतिराव फूले  को लिखा था जिसमें फातिमा का नाम के साथ जिक्र है.

फातिमा के होने के संकेत
इतना ही नहीं कई लोग सोशल मीडिया पर यह भी दावा कर रहे हैं कि फातिमा शेख का जन्म दिन तो महाराष्ट्र में कई जगह 2006 और उससे पहले भी मनाया जाता रहा है. इसके अलावा सावित्री बाई फूले की जीवनी लिखने वाली रीता राममूर्ति गुप्ता ने भी फातिमा के अस्तित्व के बारे में पड़ताल की थी. उनका भी कहना है कि फातिमा सावित्री फूले की साथी थी और जब सावित्री बीमार थी तब फातिम ने उनकी जगह ली थी और उन्होंने बच्चियों को स्कूल जाने के लिए प्रचार किया था.

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फिलहाल ऐसा कुछ नहीं है कि केवल मंडल के बयान के आधार पर फातिमा शेख के अस्तित्व को खारिज किया जा सके. क्योंकि अभी तक फातिमा का जहां जहां जिक्र है, उन्हें खारिज करना आसान नहीं होगा. यह भी सच है कि फातिमा का जिक्र कम जगह है. फिलहाल विकीपीडिया पर फातिमा का पेज है और उनके बारे जानकारी के संदर्भों के लिंक भी हैं.

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