Last Updated:April 21, 2025, 14:23 IST
Chirag Paswan News: चिराग पासवान के बयान से बिहार की राजनीति में हलचल मच गई है. एनडीए से अलग होने की अटकलें भी तेज हो गई हैं. चिराग-प्रशांत गठबंधन से त्रिकोणीय मुकाबला संभव है, जिससे एनडीए और महागठबंधन दोनों को...और पढ़ें

क्या चिराग पासवान की नजर सीएम की कुर्सी पर पड़ गई है?
हाइलाइट्स
चिराग पासवान के बयान से बिहार की राजनीति में हलचलएनडीए से अलग होने की अटकलें तेजचिराग-प्रशांत गठबंधन से त्रिकोणीय मुकाबला संभवपटना. लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान अचानक से चर्चा में आ गए हैं. चिराग के उस बयान ने तहलका मचा दिया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि बिहार बुला रहा है. क्या चिराग पासवान एनडीए से अलग हो रहे हैं या फिर एनडीए में रहते हुए सीएम पद की दावेदारी ठोक रहे हैं? या फिर सीट शेयरिंग को लेकर एनडीए में प्रैशर पॉलिटिक्स खेल रहे हैं? क्या चिराग पासवान की नजर नीतीश कुमार की सीएम कुर्सी पर है? चिराग पासवान के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं. चिराग पासवान के बहनोई और जमुई के सांसद अरुण भारती ने तो दो कदम आगे बढ़कर बोल दिया है कि बिहार को युवा नेतृत्व की जरूरत है. भारती ने नीतीश सरकार के कामकाज पर भी इशारों-इशारों में सवाल उठा दिए.
क्या बिहार की राजनीति, जो पहले से ही गठबंधनों और जातिगत समीकरणों के जटिल मायाजाल में लिपटी है, अब चिराग के संभावित कदम से नया आयाम लेगी? चिराग एनडीए से अलग होते हैं तो क्या इस फैसले से न केवल एनडीए, बल्कि महागठबंधन और अन्य छोटे दलों के समीकरण भी प्रभावित हो सकते हैं? क्या चिराग पासवान वह काम कर पाएंगे, जो उनके स्वर्गीय पिता रामविलास पासवान ने अपने राजनीतिक करियर में कभी नहीं कर पाए? क्या 2025 में चिराग पासवान का सीएम बनने का सपना साकार होगा? या फिर उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का हश्र वैसा ही होगा, जैसे उनके पिता का हुआ?
चिराग पासवान क्या कर पाएंगे इस बार कमाल?
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो चिराग पासवान खराब स्थिति में भी 2 से 3 प्रतिशत दलित वोटों पर पकड़ रखने का माद्दा रखते हैं. अभी तो वह केंद्रीय मंत्री हैं और दलित और महादलितों की लगभग 5-6% आबादी पर उनकी अच्छी-खासी पकड़ है. 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने एनडीए से अलग होकर जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे. इस चुनाव में दलित वोटों के साथ-साथ सवर्णों का भी वोट एलजेपी को मिला था. क्योंकि, उस चुनाव में बीजेपी से टिकट कटने के बाद कई सवर्ण उम्मीदवारों को उन्होंने टिकट दिया था, जिन्होंने काफी वोट हासिल किए थे. उनकी पार्टी ने लगभग 6% वोट हासिल किए, जिसने कई सीटों पर जेडीयू की हार सुनिश्चित की. अब, यदि चिराग स्थायी रूप से एनडीए से बाहर जाते हैं और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी जैसे नए सहयोगी के साथ गठबंधन करते हैं तो बिहार में त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना बढ़ जाएगी.
दलित-महादलित-ब्राह्मण समीकरण
राजनीतिक जानकारों की मानें तो एनडीए के लिए चिराग का जाना एक बड़ा झटका हो सकता है. बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन बिहार में मजबूत रहा है, लेकिन दलित वोटों का नुकसान बीजेपी को कई सीटों पर कमजोर कर सकता है. खासकर हाजीपुर, जमुई और वैशाली जैसे क्षेत्रों में चिराग का प्रभाव ठीक-ठाक है. दूसरी ओर, जेडीयू पहले ही चिराग के 2020 के विद्रोह से सबक ले चुकी है. नीतीश कुमार के लिए यह गठबंधन का टूटना मुश्किल साबित हो सकता है, क्योंकि चिराग उनके महादलित और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) वोटों में सेंध लगा सकते हैं.
क्या प्रशांत किशोर और चिराग पासवान एक साथ आएंगे?
बिहार को करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेश श्रीवास्तव कहते हैं, ‘अगर प्रशांत किशोर और चिराग पासवान की पार्टी का गठबंधन होता है तो जेडीयू और बीजेपी के वोटों को अधिक नुकसान पहुंच सकता है. इस स्थिति में आरजेडी को फायदा हो सकता है. हालांकि, प्रशांत किशोर की रणनीति यदि यादव और मुस्लिम वोटों में सेंध लगाती है तो आरजेडी का कोर वोट बैंक भी कमजोर हो सकता है. अभी कहना जल्दबाजी होगा कि चिराग पासवान कितना असरदार साबित हो सकते हैं. अगर यह स्थिति बनती है तो यह एनडीए के लिए बड़ा झटका होगा, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि 2020 के चुनाव में चिराग साथ नहीं थे तो भी बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया था.’
चिराग-पीके के साथ आने से किस गठबंधन को ज्यादा नुकसान?
बिहार की राजनीति को करीब से जानने वाले एक और पत्रकार मनीष कुमार कहते हैं, ‘यदि चिराग-प्रशांत का गठबंधन जेडीयू और आरजेडी के वोटों में अधिक सेंध लगाता है तो बीजेपी को अप्रत्यक्ष लाभ हो सकता है. 2020 में चिराग ने जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारकर नीतीश कुमार को नुकसान पहुंचाया था, जिससे बीजेपी को गठबंधन में अधिक सीटें मिलीं. प्रशांत किशोर की पार्टी यदि मुस्लिम और यादव वोटों को बांटती है तो आरजेडी कमजोर होगी, जिससे बीजेपी को फायदा हो सकता है. हालांकि, चिराग का बीजेपी के साथ वर्तमान गठबंधन मजबूत है. यदि चिराग बीजेपी से अलग होकर प्रशांत किशोर के साथ जाते हैं तो बीजेपी को दलित वोटों का नुकसान हो सकता है, जो एनडीए के लिए महत्वपूर्ण है. चिराग और प्रशांत का गठबंधन जेडीयू और बीजेपी के वोटों को अधिक नुकसान पहुंचाता है तो आरजेडी को अप्रत्यक्ष लाभ हो सकता है, खासकर उन सीटों पर जहां मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण मजबूत है.’
कुलमिलाकर चिराग पासवान के संभावित कदम से बिहार का चुनावी परिदृश्य अप्रत्याशित और रोमांचक हो सकता है. त्रिकोणीय मुकाबला, जातिगत समीकरणों का एक बार फिर से बनना और युवा मतदाताओं का रुझान इस चुनाव को एक राजनीतिक थ्रिलर बना सकता है. इसमें कोई शक नहीं कि अगर चिराग पासवान एनडीए से अलग होते हैं तो उनका अगला कदम बिहार की सत्ता की दौड़ को नया रंग दे सकता है.
First Published :
April 21, 2025, 14:23 IST