'मांस खींचने की इजाजत...' NGT ने दिया ED को ऑर्डर, भड़क गया SC, खींच दी लकीर

5 hours ago

Last Updated:August 26, 2025, 06:51 IST

एनजीटी ने प्रदूषण फैलाने की आरोपी एक कंपनी पर 50 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाने के साथ प्रवर्तन निदेशालय (ED) को भी मामले की जांच करने का निर्देश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी के इस ऑर्डर पर सख्त टिप्पियां की...और पढ़ें

'मांस खींचने की इजाजत...' NGT ने दिया ED को ऑर्डर, भड़क गया SC, खींच दी लकीरसुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) को लेकर सख्त टिप्पणी करते हुए उसके आदेश को रद्द कर दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) को लेकर सख्त टिप्पणी करते हुए उसके एक आदेश को रद्द कर दिया है. इस आदेश में एनजीटी ने प्रदूषण फैलाने की आरोपी एक कंपनी पर 50 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाने के साथ प्रवर्तन निदेशालय (ED) को भी मामले की जांच करने का निर्देश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एनजीटी ने 145 पन्नों का फैसला सुनाया, लेकिन यह कानून के दायरे से बाहर और अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन था. चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि ‘सोच-समझ का असर पन्नों की संख्या से नहीं मापा जाता.’

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एनजीटी के पास ED को शामिल करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि यह शक्ति केवल PMLA के तहत बनी अदालतों या संवैधानिक अदालतों को है. एनजीटी का गठन पर्यावरण संरक्षण और उससे जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए हुआ है, इसलिए उसे अपने अधिकार क्षेत्र में रहकर ही काम करना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने इस कंपनी पर लगाए गए 50 करोड़ रुपये के जुर्माने को भी आधारहीन बताया. अदालत ने कहा कि किसी कंपनी के सालाना टर्नओवर के आधार पर जुर्माना तय करना कानून के सिद्धांतों से बाहर है. कोर्ट ने कहा, ‘कानून का राज राज्य या उसकी एजेंसियों को ‘एक सेर मांस’ (A pound of Flesh) खींचने की अनुमति नहीं देता, चाहे मामला पर्यावरण का ही क्यों न हो.’

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एनजीटी ने अपने आदेश में पर्यावरण कानूनों, दिशा-निर्देशों और कई रिपोर्टों का विस्तार से जिक्र किया, लेकिन मामले के तथ्यों से उनका कोई सीधा संबंध नहीं था. अदालत ने टिप्पणी की कि यह पूरी कवायद व्यर्थ रही क्योंकि अंतिम रिपोर्ट में कंपनी को पूर्ण रूप से अनुपालन करता पाया गया था.

बेंच ने कहा कि न्यायिक फैसलों में ज़रूरी है कि ध्यान तथ्यों और तर्कों पर हो, न कि केवल लंबे-चौड़े विवरण पर. कोर्ट ने कहा, ‘न्यायपूर्ण विचार ही न्याय का सार है. अदालतों और ट्रिब्यूनलों को सामान्य कानून की बातें दोहराने के बजाय मामले के तथ्य और परिस्थितियों पर केंद्रित होना चाहिए.’

Saad Omar

An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...और पढ़ें

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Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

August 26, 2025, 06:51 IST

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