Last Updated:July 11, 2025, 15:12 IST
हिंदू धर्म में सावन के महीने में दाढ़ी न बनाने की परंपरा का संबंध धार्मिक मान्यताओं और सांस्कृतिक प्रथाओं से है, लेकिन क्या इसका कोई वैज्ञानिक कारण भी है

हाइलाइट्स
सावन में दाढ़ी न बनाने से त्वचा संक्रमण से बचाव होता हैदाढ़ी न काटने से त्वचा को प्राकृतिक सुरक्षा मिलती हैसावन में दाढ़ी बढ़ने देना हार्मोनल परिवर्तन का समर्थन करता हैसावन का महीना 11 जुलाई से शुरू हो गया है. ये 9 अगस्त तक चलेगा. सावन का महीना भारतीय संस्कृति में भगवान शिव का पवित्र महीना माना जाता है. ये समय बरसात का भी होता है, लिहाजा कृषि और समृद्धि का भी सीधा रिश्ता इससे है. धार्मिक तौर पर लोग इस महीने में कई बातों का निषेध करते हैं, जिसमें एक ये भी है कि वो दाढ़ी नहीं बनाते. क्या साइंस भी इसे सही ठहराती है.
बेशक हम मानते हों कि सावन के महीने में खान-पान से लेकर रोजाना के जीवन से संबंधित कुछ स्वैच्छिक पाबंदियां हिंदू धर्म की पुरानी मान्यताओं और धार्मिकता से जुड़ होंगी. बहुत से लोग इस पूरे 30 दिन दाढ़ी नहीं बनाते. इसे बढ़ने देते हैं. क्या इसके पीछे कुछ वैज्ञानिक या व्यावहारिक कारण भी हो सकते हैं. हां इसके कुछ वैज्ञानिक पहलू तो हैं. साइंस भी इसे जस्टिफाई करता है.
इससे स्वास्थ्य और त्वचा की सुरक्षा होती है
सावन में बारिश के कारण नमी और फंगस का खतरा बढ़ जाता है. दाढ़ी बनाने से त्वचा पर छोटे कट या घाव हो सकते हैं, जिससे संक्रमण (जैसे रिंगवर्म, फोड़े) का जोखिम बढ़ सकता है. गीली हवा के कारण रेजर से शेविंग करने पर त्वचा में जलन या रैशेज होने की आशंका रहती है. शायद इसी वजह से प्राचीन काल में लोग इस मौसम में शेविंग से बचते थे ताकि त्वचा संबंधी समस्याओं से बचा जा सके.
पुराने समय में जब आधुनिक सैनिटाइजेशन और शेविंग उपकरण उपलब्ध नहीं थे, बारिश के मौसम में शेविंग से इंफेक्शन का खतरा हो सकता था. यह परंपरा उसी से उत्पन्न हो सकती है.
प्राकृतिक सुरक्षा होती है
दाढ़ी या बाल त्वचा को धूप, नमी और कीटाणुओं से बचाने में मदद करते हैं. सावन में इन्हें न काटने से त्वचा को प्राकृतिक सुरक्षा मिल सकती है.
दाढ़ी या बाल त्वचा को धूप, नमी और कीटाणुओं से बचाने में मदद करते हैं. (NEWS18)
हार्मोनल परिवर्तन
कुछ अध्ययनों के अनुसार, मौसमी बदलाव शरीर के हार्मोन्स (जैसे टेस्टोस्टेरॉन) को प्रभावित करते हैं, जिससे बालों की ग्रोथ भी प्रभावित होती है. सावन में दाढ़ी बढ़ने देना इस प्राकृतिक चक्र का समर्थन कर सकता है.
आयुर्वेदिक क्या कहता है
आयुर्वेद के अनुसार, सावन (वर्षा ऋतु) में शरीर की पाचन अग्नि (मेटाबॉलिज्म) कमजोर होती है और शरीर संवेदनशील रहता है. इस दौरान अनावश्यक शारीरिक परिवर्तन जैसे बाल कटवाना से बचने की सलाह दी जाती है.
और मनोवैज्ञानिक कारण भी
सावन को शिवजी की भक्ति और तपस्या का महीना माना जाता है. दाढ़ी न काटने से व्यक्ति का ध्यान बाहरी सजावट की बजाय आध्यात्मिक चिंतन में लग सकता है. दाढ़ी या बाल न कटवाना तप और संयम का प्रतीक माना जाता है. यह एक तरह से आत्म-नियंत्रण और सादगी का पालन करने का तरीका है.
कई समुदायों में यह मान्यता है कि सावन में दाढ़ी या बाल काटने से नकारात्मक ऊर्जा आकर्षित हो सकती है या यह भगवान शिव के प्रति अनादर माना जा सकता है.
सावन के महीने में बाल और दाढी नहीं कटाने के पीछे साइंटिफिक कारण भी हैं. (image generated by Meta AI)
साइंस की ही बात करें तो सावन में और क्या नहीं करना चाहिए
1. भारी या बासी भोजन न खाएं – उसकी वैज्ञानिक वजह ये है कि मानसून में नमी के कारण पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है और पाचक एंजाइमों की गतिविधि धीमी होती है. तला-भुना, अधिक मसालेदार या बासी खाना भी बैक्टीरिया और फंगस के खतरे के कारण नहीं खाना चाहिए. कच्चे सलाद या बाजार की कटी हुई सब्जियों को संक्रमण के ज्यादा जोखिम की वजह से अनदेखा करना चाहिए.
2. खुले पानी में नहाने या तैरने से बचें – इसकी वैज्ञानिक वजह ये है कि बारिश के पानी में लेप्टोस्पायरोसिस (Leptospirosis), हैजा, या स्किन इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए नदियों, तालाबों या जलभराव वाली जगहों पर नहीं नहाएं. साफ गर्म पानी से नहाएं और पैरों को सूखा रखें
3. गीले या नम कपड़े न पहनें – इसकी वैज्ञानिक वजह ये है कि नमी के कारण फंगल इंफेक्शन (दाद, खुजली) हो सकता है. लिहाजा गीले कपड़ों या जूतों को लंबे समय तक पहनकर नहीं रखें.
और किन देशों में बरसात के महीने को पवित्र मानते हैं
थाईलैंड – “फान्सा” (बौद्ध वर्षा ऋतु उपवास) – ये बौद्ध कैलेंडर के अनुसार जुलाई से अक्टूबर तक थेरवाद बौद्ध परंपरा में भिक्षु “वर्षा ऋतु वास” करते हैं. एक स्थान पर रहकर ध्यान और अध्ययन करते हैं. लोग मंदिरों में जाकर दान करते हैं, मोमबत्ती जलाते हैं और नैतिक जीवन जीने का संकल्प लेते हैं.
जापान – “त्सुयू”. यहां ये समय जून से जुलाई के बीच होता है. 100 दिनों की बौद्ध प्रार्थना “ह्याकुमंगोरी” इसी मौसम में की जाती है, जिसमें शांति और अच्छी फसल की कामना की जाती है.
मेक्सिको – “ल्लुविया”. माया सभ्यता में बरसात के देवता “चाक” की पूजा की जाती थी. वर्षा को जीवन और कृषि का आधार माना जाता था. आज भी कुछ क्षेत्रों में बरसात की शुरुआत पर अनुष्ठान किए जाते हैं.
इंडोनेशिया – “मुसिम हुजन”. बाली में इसे गलुंगन त्योहार के तौर पर मनाते हैं. हिंदू-बाली संस्कृति में बरसात के समय कुछ अनुष्ठान किए जाते हैं, जिनमें प्रकृति और देवताओं को धन्यवाद दिया जाता है.
संजय श्रीवास्तवडिप्टी एडीटर
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...और पढ़ें
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...
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