SC/ST क्रीमीलेयर में आरक्षण पर क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला, कौन करेगा लागू

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Last Updated:January 10, 2025, 14:58 IST

सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2024 में अनुसूचित जाति और जनजाति में क्रीमीलेयर को रिजर्वेशन संबंधी जो फैसला दिया था, वो क्या था. अभी सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा कि इसको लागू करने् का काम अब सरकारों का है.

SC/ST क्रीमीलेयर में आरक्षण पर क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला, कौन करेगा लागू

हाइलाइट्स

SC/ST क्रीमीलेयर पर फैसला लागू करने की ज़िम्मेदारी सरकारों कीसुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल SC/ST क्रीमीलेयर आरक्षण पर दिया था फैसला सुप्रीम कोर्ट ने क्रीमीलेयर को लेकर सबकैटेगरी बनाने की बात की थी

सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में क्रीमीलेयर के रिजर्वेशन को लागू कराने संबंधी याचिका पर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि उसने इस बारे में अगस्त 2024 में आदेश दे दिया है . अब इसे लागू कराने का फैसला केंद्र और राज्य सरकारों को करना है. जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में क्या फैसला दिया था.

सवाल – भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एसटी-एससी क्रीमीलेयर को आरक्षण पर क्या फैसला दिया था?
– पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के पुनर्विचार निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2028 में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें राज्यों को आरक्षण के संबंध में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) जैसे आरक्षित श्रेणी समूहों को उप-वर्गीकृत करने का अधिकार दिया गया. कोर्ट ने कहा कि एसटी-एसटी क्रीमीलेयर को लेकर रिजर्वेशन में कैटेगरी बनाई जा सकती है.
उसने ये फैसला 6-1 के बहुमत से किया था. इस फैसले ने ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में 2004 के फैसले को पलट दिया, जिससे भारत में आरक्षण नीतियों का परिदृश्य मौलिक रूप से बदल गया.

सवाल – एससी और एसटी के उप-वर्गीकरण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या था?
– न्यायालय ने फैसला दिया कि राज्यों को संवैधानिक रूप से पिछड़ेपन के विभिन्न स्तरों के आधार पर अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को उप-वर्गीकृत करने की अनुमति है.
सात न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाया कि राज्य अब सबसे वंचित समूहों को बेहतर सहायता प्रदान करने के लिए 15% आरक्षण कोटे के भीतर अनुसूचित जातियों को उप-वर्गीकृत कर सकते हैं.
न्यायालय ने कहा कि उप-वर्गीकरण मनमाने या राजनीतिक कारणों के बजाय अनुभवजन्य आंकड़ों और प्रणालीगत भेदभाव के ऐतिहासिक साक्ष्य पर आधारित होना चाहिए. न्यायालय ने स्पष्ट किया कि किसी भी उप-वर्ग के लिए 100% आरक्षण स्वीकार्य नहीं है.

सवाल – क्या सुप्रीम कोर्ट ने क्रीमीलेयर को आरक्षण से बाहर करने के लिए कहा था?
– सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि ‘क्रीमी लेयर’ सिद्धांत, जो पहले केवल अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) पर लागू होता था (जैसा कि इंद्रा साहनी मामले में उजागर किया गया था ) अब एससी और एसटी पर भी लागू होना चाहिए. इसका मतलब है कि राज्यों को एससी और एसटी के भीतर क्रीमी लेयर की पहचान करनी चाहिए. उसे आरक्षण के लाभ से बाहर करना चाहिए. अदालत ने कहा कि आरक्षण केवल पहली पीढ़ी तक ही सीमित होना चाहिए. यदि परिवार में किसी पीढ़ी ने आरक्षण का लाभ ले लिया है और उच्च दर्जा प्राप्त कर लिया है, तो आरक्षण का लाभ तार्किक रूप से दूसरी पीढ़ी को उपलब्ध नहीं होगा.

सवाल – सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्या महत्व है?
– सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने ईवी चिन्नैया के निर्णय को पलट दिया है, जिसमें पहले कहा गया था कि एससी और एसटी एक समरूप समूह हैं, इसलिए राज्यों द्वारा आरक्षण के प्रयोजनों के लिए उन्हें उप-विभाजित नहीं किया जा सकता है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत यह असंवैधानिक है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को उप-वर्गीकृत करने का नया फैसला संविधान के अनुच्छेद 14 या 341 का उल्लंघन नहीं करता है.
इस निर्णय में विभिन्न राज्य कानूनों को बरकरार रखा गया, जिन्हें पहले रद्द कर दिया गया था, जैसे कि पंजाब और तमिलनाडु के कानून, जो राज्यों को एससी और एसटी समूहों के भीतर उप-श्रेणियां बनाने की अनुमति देते हैं.

सवाल – एससी/एसटी में क्रीमी लेयर के प्रमुख पहलू कौन से होंगे?
परिभाषा और पहचान: क्रीमी लेयर में एससी और एसटी समुदायों के वो व्यक्ति शामिल होंगे, जिन्होंने आर्थिक और शैक्षिक उन्नति का एक स्तर हासिल कर लिया है, जो उन्हें अपने समुदाय के अधिकांश सदस्यों से अलग करता है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को इस समूह की पहचान करने के लिए स्पष्ट मानदंड विकसित करने की जरूरत पर जोर दिया है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उन्हें सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण लाभ से क्यों बाहर रखा जा रहा है.
कानूनी ढांचा: सुप्रीम कोर्ट ने इस सिद्धांत को बरकरार रखा है कि क्रीमी लेयर को आरक्षण के लाभ से बाहर रखा जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एससी और एसटी के सबसे पिछड़े और आर्थिक रूप से वंचित व्यक्तियों को उनकी जरूरत का समर्थन मिले.
तर्क: क्रीमी लेयर को बाहर करने के पीछे तर्क एससी और एसटी के एक छोटे, अधिक समृद्ध वर्ग द्वारा आरक्षण लाभों के एकाधिकार को रोकना है, जो बार बार कई पीढ़ियों से इसका लाभ लेता जा रहा है. लेकिन बहुत से ऐसे वर्ग या लोग हैं, जिन्हें इसका लाभ नहीं मिल पाया है. इसका उद्देश्य सच्ची सामाजिक समानता को बढ़ावा देना और इन समुदायों के सबसे हाशिए पर रहने वाले सदस्यों को ऊपर लाना है.

सवाल – क्या इसे डाटा के आधार पर तय किया जाएगा, क्या जाति जनगणना इसमें कारगर होगी?
– ओबीसी में ये आधार अच्छी तरह स्थापित हो चुका है लेकिन एससी और एसटी के लिए इसे लागू करना कम सुसंगत रहा है. जाति जनगणना से इसमें लाभ मिलेगा, क्योंकि उससे पर्याप्त डाटा उपलब्ध हो सकेगा, जो ये बताएगा कि क्रीमी लेयर की नीति कहां लागू की जाए. हालांकि एससी और एसटी के भीत कई तरह के उपसमूह हैं, जिनकी सामाजिक और आर्थिक वास्तविकताएं भी जाति जनगणना के जरिए सामने आएंगी.

सवाल – कुल मिलाकर एससी-एसटी की सब कैटेगरी में आरक्षण तय करने के क्या फायदे हैं और क्या चुनौतियां?
– उप-वर्गीकरण अधिक अनुकूलित नीतियों की अनुमति देता है जो एससी और एसटी के भीतर कई उप-समूहों की जरूरतों को समझ पाए.
– इससे उन उप-समूहों के लिए राजनीतिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व बढेगा. इससे सुनिश्चित होगा कि एससी और एसटी श्रेणियों के भीतर सभी आवाजें सुनी जाएं.
– ये ऐसा जोखिम है कि जिसमें सब कैटेगरी के कारण एससी और एसटी समुदायों के भीतर सामाजिक तनाव और विभाजन बढ़ सकता है.
– विभिन्न उप-समूहों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर विश्वसनीय और ताजा डाटा की अक्सर कमी होती है, जिससे न्यायसंगत नीतियों को लागू करना मुश्किल हो जाता है.
– उप-समूहों के चयन में राजनीतिक पक्षपात की संभावना के बारे में चिंताएं व्यक्त की गई हैं.
– ये कहा जा सकता है कि एससी और एसटी कोटा के भीतर उप-वर्गीकरण एक जटिल मुद्दा है जिसका उद्देश्य इन समूहों के भीतर असमानताओं को संबोधित करना है.

सवाल – अब तक ओबीसी में क्रीमी लेयर किस तरह लागू, कौन आता है उसमें?
– यद्यपि सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी के लिये 27% कोटा निर्धारित है, किंतु जो लोग ‘क्रीमी लेयर’ (आय और माता-पिता के रैंक के आधार पर विभिन्न श्रेणियां) के अंतर्गत आते हैं, उन्हें इस कोटा का लाभ नहीं मिलता है.
– इसमें वो लोग आते हैं जो सरकार में नहीं हैं, उनके लिये मौजूदा सीमा 8 लाख रुपए प्रतिवर्ष हैय
– आय सीमा हर तीन वर्ष में बढ़ाई जानी चाहिए. इसे पिछली बार वर्ष 2017 में संशोधित किया गया था.
– सरकारी कर्मचारियों के बच्चों के लिये सीमा उनके माता-पिता की रैंक पर आधारित होती है, न कि आय पर.
उदाहरण के लिये एक व्यक्ति को क्रीमी लेयर के अंतर्गत माना जाता है यदि उसके माता-पिता में से कोई एक संवैधानिक पद पर हो, यदि माता-पिता को सीधे ग्रुप-A में भर्ती किया गया है या यदि माता-पिता दोनों ग्रुप-B सेवाओं में हैं.
– सेना में कर्नल या उच्च पद के अधिकारी के बच्चे और नौसेना तथा वायु सेना में समान रैंक के अधिकारियों के बच्चे भी क्रीमी लेयर के अंतर्गत आते हैं. ऐसे ही अन्य कई मानदंड भी मौजूद हैं.

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